ग़ज़ल- अब तो कुछ ये दुआ भी की जाए, ज़िन्दगी सादगी से जी जाए। तेज़ रफ़्तार है ज़माने की, अब क़दम ताल कैसे की जाए? पूछ कर उनसे हम उठें बैठें, ज़िन्दगी ऐसे तो न जी जाए। दोस्त मेरी ख़बर नहीं रखते, अब ख़बर दोस्तों की ली जाए। काम कुछ वो भी हों, ज़माने में, जिससे बेबस की बेबसी जाए। सोच में ताज़गी जो चाहें तो, बात कुछ शायरी की की जाए। जब उसूलों की बात हो , जा रही हो तो ज़िन्दगी जाए। 'Maahir'(collected by)