प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- हमारी अस्मिता, आदर्श की, पहिचान है हिन्दी। हमारी संस्कृति की आन-बान औ शान है हिन्दी। इसी के माध्यम से हम ज़माने को समझ पाए, हमारे राष्ट्र की अवधारणा की आन है हिन्दी। सभी भावों, विचारों को वहन करने में है सक्षम, हमारे देश के चिंतन की अविरल शान है हिन्दी। कुछ इसकी बोलियाँ तो हैं कई भाषाओं पर भारी, बहुत सी बोलियों का दोस्तो उन्वान है हिन्दी। वो जो हम बोलते हैं बस वही लिखते हैं हिन्दी में, सभी भाषाओं के सापेक्ष कुछ आसान है हिन्दी। प्रफुल्लित या दुखी होकर, इसी में बोलते हैं हम, सनातन सोच की यारो सहज सन्तान है हिन्दी। इसे विज्ञान, जन-जीवन, कला, व्यापार से जोड़ें, तरक़्क़ी, शान्ति, ख़ुशहाली की अद्भुत खान है हिन्दी। 'Maahir'