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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:19 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XI : प्रज्ञा आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तम् अहम् एव इति निश्चयी । निर्विकल्प: शुचि : शान्त: प्राप्त अप्राप्त विनिर्वृत : ॥७॥ मैं ब्रह्मा से लेकर तुच्छ तृण पर्यन्त हूँ समाहित सब में समभाव से । यह जानकर शंका से मुक्त हो प्राप्त एवं अप्राप्त का छोड़ मोह तू शान्त एवं पवित्र मन से निवृत्त हो जा ॥७॥ नाना आश्चर्यम् इदम् विश्वम् न किंचित् इति निश्चयी । निर्वासन : स्फूर्तिमात्र : न किंचित् इव शाम्यति ॥८॥ दृढ़ निश्चयी यह जानकर कि नाना आश्चर्यों से भरा यह जगत कुछ भी नहीं । वासनाओं से मुक्त यह चैतन्य पूर्ण शान्ति को पा लेता सहज ॥८॥ ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त
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