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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:03 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- ज़ह्न उसका कुछ न बदला आज तक, आदमी जैसा था वैसा आज तक। यह समझने में तनिक अरसा लगा, कष्ट का कारण है माया आज तक। माँ के ॠण से कौन उॠण हो सका, ज़िन्दगी में माँ का जाया आज तक। ग़म को जिसने चाँद से साझा किया, चाँद में महबूब पाया आज तक। शायरी विज्ञान से आगे रही, जिसने सच को पहले पाया आज तक। सोच में आलस्य से इंसाँ रुके, किन्तु है गतिमान दुनिया आज तक। घोर अँधियारों भरे संसार में, आदमी दिल को जलाता आज तक। शोषितों के हक़ में जिसने जो किया, उसको माथे से लगाया आज तक। जो इबादत में लिखा था दोस्तो, गीत वो ही गुनगुनाया आज तक। राह की सब अड़चनों को पार कर, प्रेम का पौधा लगाया आज तक। शुक्रिया ऐ शायरी तूने मुझे, रू-ब-रू मुझ से कराया आज तक।
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