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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:30 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता ; अध्याय XII : आत्म- स्थित जनक उवाच : कायकृत्यासह : पूर्वम् तत : वाग्विस्तरासह : । अय चिन्तासह : तस्मात् अहम् एवम् एवं आस्थित : ॥१॥ जनक ने कहा: पहले हुआ मैं असहिष्णु कायिक कृत्यों पर फिर वाणी की वाचालता तत्पश्चात् विचार पर इन सबके ऊपर उठकर अब मैं हुआ अवस्थित आत्म में ॥१॥ प्रीत्यभावेन शब्दादे : अदृश्यत्वेन च आत्मन : । विक्षेपैकाग्रह्रदय एवम् एव अहम् आस्थित: ॥२॥ शब्द-जाल से प्रीति तोड़करदेखा यह आत्म को छू नहीं पाता । मन का ध्यान हटाकर इन सबसे एकाग्रचित्त हो मैं हुआ अवस्थित आत्म में ॥२॥
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