ग़ज़ल- जब भी इंसाँ ख़ुदी को भूल गया वो हक़ीक़तन, ख़ुशी को भूल गया ख़ुदी=स्व, निजित्व आमजन के सुने मसाइल तो, मैं भी कमफ़ुर्सती को भूल गया। मसाइल= प्रकरण, मामले, समस्याएं कम फुर्सती=वक़्त की कमी फ़र्ज़ यूँ हैं किए अदा, जिनमें, मैं निजी दुश्मनी को भूल गया। काम की दौड़-भाग में फँसकर, आदमी, आदमी को भूल गया। फेसबुक के हसीन ख़्वाबों में, अस्ल की ताज़गी को भूल गया काम में डूब के सुकूँ वो मिला मैं ग़म-ए-ज़िंदगी को भूल गया इसक़दर याद में डूबा, उसकी, जब मिला वो, उसी को भूल गया।