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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:37 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- दोस्तो गुलशन हमारा अब से लाला-ज़ार हो। भूख,बीमारी,जफ़ा,से मुक्त अब संसार हो। लाला-ज़ार=फूलों से भरा हुआ,समृद्ध,जफ़ा=अत्याचार अब सभी के क़ायदे से काम हों,इसके लिए, ऑफ़िसों की पारदर्शी आज से दीवार हो। भागते रहते मशीनों की तरह हम लोग क्यों? दोस्तो कुछ देर थम कर आपसी गुफ़्तार हो। गुफ़्तार=बातचीत सोचने,कहने की तो आज़ादी मिलती जन्म से, आज जैसा हो गया,वैसा न अब अख़बार हो। झूठ, आलस,स्वार्थ का हो ख़ात्मा व्यवहार में, बस सचाई मेहनतों का अब से कारोबार हो। हैं बराबर लोग सब,मानें सभी इस सत्य को, पेट की ख़ातिर न क़दमों में कोई दस्तार हो। दस्तार=पगड़ी,इज़्ज़त फ़ैसले करते रहें हम,लोकहित में रात-दिन, फिर तो तेज़ चाहे जितनी वक़्त की रफ़्तार हो। ताक़तें जो हैं मुख़ालिफ़ आमजन के,उन से अब, जंग हो जिसका नतीजा आर हो या पार हो। मुख़ालिफ़=विरोध में सांसदों को चुन सकें,आईन देता हक़ हमें, वोट को देते समय तो आदमी हुशियार हो। आईन= संविध
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