ग़ज़ल- इरादा किया दोस्तो ये अटल है, लिखूँगा वही सत्य जो आजकल है। तुम्हारे सवालों को अल्फ़ाज़ देकर, तुम्हें ही सुनाने को लिक्खी ग़ज़ल है। बिना सोचे समझे जो राय बनाता, वो अहमक़ है यारो कहाँ वो सरल है। हिक़ारत से देखे ग़रीबों को अब वो, पसीने से उनके बना जो महल है। जिसे आज वंचित किए जा रहे वो, तुम्हारी अमरता को पीता गरल है। अज़ल से मेरा दिल रहा है तुम्हारा, न ये इश्क़ तुमसे हुआ आजकल है। न है इसका कोई भी अपवाद"र", मिला है हमेशा,जो कर्मों का फल है।