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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:19 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
कस्तूरी गंध तुमको क्या मालूम कि,कितना प्यार किया करती हूं। ठोकर खाकर संभल-संभल,कर सदा बढ़ा करती हूं।। रुसवा ना हो जाए मोहब्बत की ये,दुनियां हमारी। मिले उमर लंबी इसको ये,दुआ किया करती हूं।। आशाओं के दीप जलाएं,हृदय अंधेरी कुटिया। बाती बन में जली प्रियतम,सदा तुम्हारी सुधियां।। मिल के दिया बाती सजना,प्रीत की रीत निभाएं। मैं ही पिघली मोम सरीखी,तन्हाई की रतियां।। तुमको क्या मालूम कि कितना,प्यार किया करती हूं। सुध- बुध खो में बावरी हो गई,बोली वीणा जैसी। गीतों में शब्दों की सरिता,बहीं ये सजना कैसी।। बिरही मन का दर्द बना,कस्तूरी गंध के जैसा। यौवन धन की मैंने वसीयत,की है साजन तुमको।। तुमको क्या मालूम कि कितना,प्यार किया करती हूं। अब और ना भटकाओ,मेरे इस पागलपन को। मेरे प्यार की मंज़िल हो तुम,रोको न इस मन को।। चंदन वन सी देह महकती,कैसे इसे छुपाऊं। कई निगाहें गिद्ध बनी है,देखे यौवन धन को।। तुमको क्या मालूम कि कितना,प्यार किया करती हूं। ठोकर खाकर संभल संभल,कर सदा बढ़ा करती हूं।। रुसवा ना हो जाएं मोहब्बत की,ये दुनियां हमारी। मिले उमर लंबी इसको ये,दुआ किया करती हूं।।
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