ग़ज़ल - इश्क़ में कुछ मज़ा नहीं होता, उनसे जब फ़ासला नहीं होता। इश्क़ अक्सर फ़रेब देता है, ख़त्म पर सिलसिला नहीं होता। इश्क़ का दर्द ही वो दर्द है जो, कुछ भी हो,बेमज़ा नहीं होता। दर्द-ए-दिल एक बार उट्ठा तो, मौत से भी जुदा नहीं होता। तुम नहीं जान पाए क्या अब तक? इश्क़ का कुछ सिला नहीं होता। ज़ुल्म करते हुए समझते हो, बेकसों का ख़ुदा नहीं होता। बात अब ख़त्म भी हो जल्वों की, तज़किरों से भला नहीं होता। इश्क़ में अब ख़बर नहीं "र", दर्द होता है या नहीं होता। सिला=प्रतिफल, इनाम, बेकस= मज़बूर, असहाय, तज़किरा=ज़िक्र, चर्चा