ग़ज़ल- ज़रूरी है जो सबके वास्ते,वो काम हो जाए, तो मेरी ज़िन्दगी में भी ज़रा आराम हो जाए। जहाँ में एक भी कण एक भी क्षण रुक नहीं सकता, सफल होती वही बस सोच,जो निष्काम हो जाए। बहुत हैं चाहतें लेकिन टिका हूँ एक चाहत पे, अहं कुछ दूर रख पाऊँ,तो मेरा काम हो जाए। तुम्हारी ज़िंदगी में भी खिलेंगे फूल चाहत के, तुम्हें भी इश्क़ की दौलत अगर इनआम हो जाए। सताने में जुटे हैं वो कि सब चुपचाप बैठे हैं, न गहरी ख़ामुशी ये बाइस-ए-कुहराम हो जाए। मेरी मजबूरियाँ समझो मुझे ख़ामोश रहने दो, वफ़ा बदनाम होती है,अगर ये आम हो जाए। थकन होती है होने दो,मेरा मकसद है चलूँ इतना कि सबके वास्ते आराम हो जाए। आवश्यक शब्दार्थ - निष्काम=वह व्यक्ति जिसमें निजी स्वार्थगत लाभ की इच्छा नहीं होती,परन्तु जो सबके हित के लिए काम करता है,इनआम=इनाम,ख़ामुशी=ख़ामोशी,वाइस= कारण,कुहराम = हंगामा,बहुत अधिक शोर शराबा