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Ghazal-72

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- सियासत का बाज़ार कितना हसीं है, ये ताक़त का आधार कितना हसीं है। उसूलों की ख़ातिर अलग राह पकड़ी, वो रूठा हुआ यार कितना हसीं है। हमें क्या पड़ी जो उसूलों की सोचें, शरीफ़ों का इंकार कितना हसीं है। करी कोशिशें और अंडे से निकली, ये तितली का इजहार कितना हसीं है। गुज़ारिश करे पसलियों से जो चाकू, दबंगों का इसरार कितना हसीं है। सभी कुछ है इसमें,वफ़ा-बेवफ़ाई, हक़ीक़त का संसार कितना हसीं है। मिले और बन के हर इक शख़्स अब तो, नुमाइश का बाज़ार कितना हसीं है। हवा है रजाई,ज़मीं बिस्तरा है, ज़माना ये सरकार कितना हसीं है। 'Maahir'(collected by)

Shri Raam Vanvaas Pathgaman

श्रीराम के बनवास काल के संस्मरण 14 वर्ष के वनवास काल में राम कहां-कहां रहे? प्रभु श्रीराम ने १४ वर्षों के वनवास काल में कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और सभी तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस कालखंड में उनके साथ कुछ ऐसा भी घटित हुआ जिसने उनके जीवन को बहुत प्रभावित किया और बदल कर रख दिया। रामायण में वर्णित और अनेक शोधकर्ताओं के अनुसार, भगवान राम ने वनवास के लिए अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए, पहले रामेश्वरम् तत्पश्चात् श्रीलंका में समाप्त की थी। इस समयावधि में उनके साथ जहां भी जो घटित हुआ उनमें से २०० से अधिक घटनास्थलों की पहचान की गई है। लब्धप्रतिष्ठ इतिहासकार, पुरातत्वशास्त्री और अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे २०० से भी अधिक स्थानों को चिन्हित किया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या ठहरे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की परख वैज्ञानिक तरीकों से की गयी है। आईए, उनमें से कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में जानते हैं...... पहला पड़ाव : केवट प्रसंग वाल्मीकि रामायण और रामायण पर शोधकर्ताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने सबसे पहले तमसा नदी पार किया जो अयोध्या से २० किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से २०-२२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित "श्रृंगवेरपुर" पहुंचे, जो उनके मित्र निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार कराने के लिए कहा था। श्रृंगवेरपुर : प्रयागराज से २२ मील (लगभग ३५.२ किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से जाना जाता था। रामायण में इस नगर का उल्लेख श्रीराम के मित्र निषाद राज गुह के राज्य के रूप में आया है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है। कुरई : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के इस किनारे सिंगरौर और उस किनारे कुरई‌ है। सिंगरौर घाट से गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी कुरई स्थान पर उतरे थे। इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था। दूसरा पड़ाव : प्रयागराज कुरई से आगे चलकर श्रीराम, माता सीता और अपने अनुज लक्ष्मण सहित प्रयाग पहुंचे थे। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह बड़ा तीर्थस्थान है। चित्रकूट : प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और चित्रकूट पहुंचे। यहां स्थित स्मारकों में वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि हैं। चित्रकूट वही स्थान है, जहां, पिता महाराज दशरथ के स्वर्गवास के बाद, श्रीराम को लौटा कर वापस अयोध्या लेजाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। लेकिन श्रीराम की अस्वीकृति के पश्चात निराश भरत को यहां से राम की चरण पादुका लेकर ही लौटना पड़ा। श्रीराम की चरण पादुका को ही सिंहासन पर रखकर राज-काज करते रहे। तीसरा पड़ाव : ‌अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) में अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ समय व्यतीत किया था। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया, दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी। अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रकट हुई और 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई। त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) ने एकबार माता अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब त्रिदेवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम "दत्तात्रेय" जो महायोगी थे। अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र अत्यंत क्रोधी 'दुर्वासा' ऋषि को कौन नहीं जानता ? अत्रि के आश्रम के समीपवर्ती क्षेत्र में राक्षसों के समूह सक्रिय थे जिनके आतंक से अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध करके चित्रकूट क्षेत्र को मुक्त किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के अरण्यकाण्ड में इसका वर्णन मिलता है। प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, 'हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।' राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्यों को ग्रास बना उनका प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देकर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान किया। चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी नदियों, छोटी पहाड़ियों, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम दंडकारण्य के सघन वन प्रदेश में पहुंच गये। चौथा पड़ाव : दंडकारण्य चित्रकूट में अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद, श्रीराम ने सघन जंगलों से घिरे क्षेत्र में प्रवेश किया और यहीं अपना आश्रय स्थल बनाया। वास्तव में श्रीराम का वनवास काल यही था। अत्रि-आश्रम क्षेत्र से निकलते ही 'दंडकारण्य' आरंभ हो जाता है। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकांश भाग शामिल हैं। वास्तव में, उड़ीसा की महानदी से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। दंडक राक्षस के आतंक से प्रभावित होने के कारण इस क्षेत्र का नाम दंडकारण्य पड़ा। छत्तीसगढ़ के इस क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर राम के नाना का और कुछ पर रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की 'बारसूर' नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपने वनवास के लगभग १० वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत किया था। 'अत्रि-आश्रम' से निकल कर भगवान श्रीराम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां 'रामवन' हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध, सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि के आश्रमों में गए। बाद में सुतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक, उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि विद्यमान हैं। राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होने की संभावना है। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम 'रामगढ़' है। ३० फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे 'सीता कुंड' कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है। वर्तमान में लगभग ९२,३०० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के भू-भाग शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब ३२० किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग ४८० किलोमीटर है। आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम इसी दंडकारण्य का ही भू-भाग है। गोदावरी नदी के तट पर बसा भद्राचलम शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर भी व्यतीत किये थे। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है। दंडकारण्य क्षे‍त्र की विस्तृत चर्चा पुराणों में मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अतिरिक्त एक अन्य आश्रम भी था। डॉ. रमानाथ त्रिपाठी ने अपने बहुचर्चित उपन्यास 'रामगाथा' में रामायणकालीन दंडकारण्य का विस्तृत उल्लेख किया है। पांचवां पड़ाव...पंचवटी 'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'। दंडकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद भगवान श्रीराम कई नदियों, पर्वतों और गहन वनों से गुजरने केे पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम पहुंचे। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां भी व्यतीत किया था। उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडकवन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग २० मील (लगभग ३२ किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक के पंचवटी में श्रीराम रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वट वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे - पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। । नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है। मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। यहां पर मारीच के वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है। छठा पड़ाव : सर्वतीर्थ नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा की नाक काटने के विवाद में, श्रीराम द्वारा खर व दूषण के वध के बाद ही, मारीच के सहयोग से रावण ने सीता का अपहरण किया और जटायु का भी वध किया।जटायु का स्मारक नासिक से ५६ किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी सुरक्षित है। जटायु की मृत्यु "सर्वतीर्थ" नाम के स्थान पर हुई थी जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी। पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग १ घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का अपहरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थान से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था अर्थात् सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से अपहरण का वास्तविक स्थल यही माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर भी है। सातवां पड़ाव : "सर्वतीर्थ" जहां रावण द्वारा जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद सीता की खोज करते हुए श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेकों स्थलों पर वे सीता की खोज में गए। आठवां पड़ाव : शबरी आश्रम तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार कर राम और लक्ष्‍मण सीता की खोज में आगे बढ़ने लगे।जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं, उसका नाम श्रमणा था। पम्पा नदी केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। नौवां पड़ाव : ऋष्यमूक पर्वत मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़ चले। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की भेंट हनुमान से हुई थी। तत्पश्चात्, हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से निष्कासित कर दिया तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही छिपकर रहने लगा था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के जिला बेल्लारी के हम्पी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था। दसवां पड़ाव : कोडीकरई हनुमान और सुग्रीव से सेना को संगठित कर श्रीराम लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना समुद्र तट पहुंच गयी। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग १,००० किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उपयुक्त भी नहीं है। अतः,श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर प्रस्थान किया। ग्यारहवां पड़ाव : रामेश्‍वरम रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और धूप-स्नान के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। संस्कृत महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पूर्व यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिव ज्योतिर्लिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है। ारहवां पड़ाव : धनुषकोडी वाल्मीकि रामायण के अनुसार तीन दिन के अन्वेषण के पश्चात श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ ही़ निकाला, जहां से सुगमता से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का निर्णय लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब १८ मील पश्‍चिम में है। इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका पहुंचने के लिए नल और नील ने जिस पुल (रामसेतु) का निर्माण किया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इस पूरे क्षेत्र को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है। छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं। वस्तुतः, यहां एक पुल डूबा हुआ है। सन् १८६० में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे "एडम ब्रिज" कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले तो रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में और बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया। ३० मील लंबा और १.२५ मील चौड़ा यह रामसेतु ५ से ३० फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार, नौवहन हेतु उसे तोड़कर हटाना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था। तेरहवां पड़ाव : "नुवारा एलिया" पर्वत श्रृंखला वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग ९० किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है। श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं। श्री वाल्मीकि ने रामायण की रचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष ५०७५ ई.पू. के आसपास की होगी (१/४/१-२)। श्रुति-स्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिचलित रहने के बाद वर्ष १००० ई.पू. के आसपास इसको लिपिबद्ध किया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं। रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्ध हैं:- * कौशाम्बी में खुदाई में मिलीं टेराकोटा (पक्की मिट्‍टी) की मूर्तियां (दूसरी शताब्दी ईपू) * बौ‍द्ध साहित्य में दशरथ जातक (तीसरी शताब्दी ईपू) * नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) में खुदाई में मिले स्टोन पैनल (तीसरी शताब्दी) * कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दी ईपू) * नचार खेड़ा (हरियाणा) में मिले टेराकोटा पैनल (चौथी शताब्दी) * श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्य रचना 'जानकी हरण' (सातवीं शताब्दी)

Ghazal-71

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- जन-मन का दुख हरना होगा। निस-दिन मुझे सँवरना होगा। तल तक मुझे उतरना होगा, जो कर सकते,करना होगा। सुख पाने की इच्छा है तब, दुख से स्वयं उबरना होगा। लालच के फंदों से निकलें, ग़लत कहीं कुछ वर्ना होगा। कर्म कहाँ रुकता है उसको, सोच-समझ के,करना होगा। अहं बढ़ा तो उसका खप्पर, कुछ भी करके भरना होगा। कवि-हृदय में झांक के देखो, वहाँ भाव का झरना होगा। 'Maahir'(collected by)

Ghazal-70

है मेरी आरज़ू की मेरे अंदाज़ निकले कलम की इल्तिज़ा पर मेरे अल्फ़ाज़ निकले//1 ज़रा सी कशमकश से संवरता है सुखन मेरा मेरे कुछ शेरों से अब मेरी आवाज़ निकले//2 मोहब्बत कर ली मैं ने इसी उम्मीद से की मोहब्बत से इबादत का इक आगाज़ निकले//3 मेरी इक शर्त ये थी मेरे इन होंसलों से मेरी इस जिंदगी से कोई परवाज़ निकले//4 वफादारी भी मैंने सभी से इसलिए की की अब मेरी वफ़ा से सभी के राज़ निकले//5 बनाया इस तरह से मोहब्बत का ये माहौल कोई तो इश्क़ में अब मेरा हमराज़ निकले//6 'Maahir'(collected by)

Ghazal-69

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल - दबाते ही रहे वो जब दिखीं इज़हार की सोचें, सुहाती हैं जिन्हें औरों में बस इक़रार की सोचें. मुसलसल घट रही हैं दोस्तों परिवार को सोचें, घरों को बाँटती रहतीं हैं,ये दीवार की सोचें। समेटे वो सभी कुछ,ये रहीं ज़रदार की सोचें, ज़माने को बड़ा करती रहीं फ़नकार की सोचें। सियासत में ग़रीबी भी रही बस वोट का जरिया, ग़रीबों के भले की कब रहीं सरकार की सोचें। समस्या का नहीं मिलता कभी भी हल झगड़ने से, खड़े जो इस तरफ़,वो भी ज़रा उस पार की सोचें। गवाही दे रहा इतिहास इसकी ही, यही सच है, सदा हारीं हैं'maahir'ढाल से, तलवार की सोचें। 'Maahir'

Kavita( Maare Jaayenge-01)

मारे जाएँगे जो बोलेंगे वे तो मारे ही जाएँगे वे भी मारे जाएँगे जो चुप रहेंगे जो गाएँगे विरुदावलियाँ पढ़ेंगे क़सीदे चाटेंगे तलवे बचेंगे वे भी नहीं आग की दुकान खोले बसे हैं बीच बजार एक हों या हों हज़ार जलेगी उनकी भी होली विवेकहीन होती है आग कुछ मरेंगे जलकर कुछ मारकर जलाए जाएँगे जो जुलूस में शामिल हैं वे तो मरेंगे ही जो छिपे आरामगाहों में एक रोज़ वे भी मारे जाएँगे मारे जाने से ठीक पहले कुछ लोग होंगे ज़िंदा पर जो पहले से ही मरे हैं वे भी मारे जाएँगे 'Paavan Teerth'

Ghazal Writting(Radeef/Kaafia)

क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ निभाना- ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया में एक और बहुत महत्वपूर्ण बात है वो है क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ को निभाना अर्थात क़ाफ़िया और रदीफ़ के बीच तालमेल बिठाना!ये तालमेल सिर्फ़ व्याकरण की दृष्टि से नहीं बल्कि अर्थ-संगतता की दृष्टि से भी आवश्यक है!आइए,इसे एक उदाहरण के द्वारा समझने के लिए हम आल की तुक पर कुछ क़ाफ़िये देखते हैं,मसलन सवाल,ख़्याल,जमाल इत्यादि.इस तुक पर ग़ालिब साहब की एक मशहूर ग़ज़ल की क़ाफ़िया-रदीफ़ की जो जुगलबंदी है वो है-'ख़्याल अच्छा है','साल अच्छा है','कमाल अच्छा है' इत्यादि!अब अगर इसी क्रम में कोई ये लिखे कि उसका,'जमाल अच्छा है' तो इसका क्या अर्थ होगा?जमाल का जो सर्वसामान्य अर्थ है वो है सौंदर्य,सुंदरता,ख़ूबसूरती,इत्यादि!अब यदि मैं कहता हूँ कि उसका जमाल अच्छा है,या मेरा जमाल अच्छा है,या किसी का जमाल अच्छा है तो इसका अर्थ होगा कि उसका या मेरा या किसी का सौंदर्य अच्छा है!किसी के सौंदर्य को या स्वयं सौंदर्य को अच्छा अथवा बुरा कहने का अर्थ कितना अटपटा होगा!निश्चय ही ये भाषा के साथ कथ्य का ग़लत प्रयोग है,यद्यपि यहाँ व्याकरण का कोई दोष नहीं है!किसी के जमाल के बारे में कुछ कहना,सोचना या लिखना अच्छा-बुरा हो सकता है,मगर सीधे-सीधे किसी के जमाल को हम अच्छा-बुरा नहीं कह सकते हैं!मेरा ख़्याल है कि इस उदाहरण के द्वारा क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ निभाने की बात को समझा जा सकता है. 'Maahir'(collected by)

Ghazal-68

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- खरे सिक्के सहमते जा रहे हैं, जो खोटे थे,वो चलते जा रहे हैं। हमारी आर्थिक हालत जो बदली, सभी रिश्ते बदलते जा रहे हैं। जहाँ मैं धूल उड़ती देखता हूँ, वहीं कुछ लोग बनते जा रहे हैं। निखरता आ रहा है रूप उनका, तो खर-पतवार जलते जा रहे हैं। हुआ जो इश्क़ तो हमने ये जाना, कि दुनिया को समझते जा रहे हैं। समझ वाले नहीं बर्दाश्त उनको, तुम्हें हुशियार करते जा रहे हैं। किसी भी बात पे सोचा,तो पाया, नए पहलू निकलते जा रहे हैं। 'Maahir'(cpollection)

Ghazal-67

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- मौत तो एक बार आती है, ज़िन्दगी रोज आजमाती है। सीखते पुस्तकों से हम बेशक़, पर अधिक ज़िन्दगी सिखाती है। आस्तिक-नास्तिक, कोईभी हो, ज़िन्दगी सब को आज़माती है जोश के साथ जो नहीं होती, नेक कोशिश वो हार जाती है। कोई जब रास्ता नहीं दिखता, रोशनी, तीरगी से आती है। ख़्वाब से लौट के भी आना है, याद ठोकर भी ये दिलाती है। अंश कुछ ब्रह्म का तो है मुझ में मेरी आवारगी जताती है। कुछ कदम साथ थे जहाँ हम-तुम, राह वो याद कुछ दिलाती है। आज तक हम समझ नहीं पाए, याद जाती कहाँ, जो आती है। भूलने का अहद कराया था, आज फिर उसकी याद आती है। आजमाने से क्या मिला यारो, ज़िन्दगी तल्ख़ होती जाती है। दिल लगी, दिल्लगी नहीं “maahir” इक हँसी सारे गम भुलाती है। 'Maahir'

Kavita-Khandhar

कविता : खंडहर ************* गांव छूटा तो कितना कुछ छूट गया, कितनी छोटी-बड़ी चीज़ों से, बना-बनाया संबंध टूट गया! छूटा ओसारा,आंगन,दरवाज़ा, पोखर,कुआं,चापाकल कहे आजा। मैना,गुमैना,कठखोद्दी और पड़ोकी, सुग्गा,नीलकंठ,धोबिन,सिल्ही,बनमुर्गी, बगुले,गरुड़ कुछ भी तो यहां नहीं दिखते, बकोध्यानं का हितोपदेश कैसे बच्चे सीखते! चाचा,ताऊ,फूफा,मौसा अंकल के पेट में आ गए चाची,ताई,फूफी,मौसी आंटी की चपेट में समा गए; बच्चे अब जानते हैं ज़्यादा से ज़्यादा दादा का नाम, उनके पीछे के पुरखे से,वे अपना संबंध तुड़वा गए। गांव में बहुत-कुछ भी नहीं था, पर जो था,वो सब अनोखा ही था, मिट्टी के कितने करीब थे,कितना मोल था मिट्टी का! मिट्टी की हांडी,कड़ाही,रोटपक्का,सरपोश भी मिट्टी का; घर,दीवार,पाया होते थे मिट्टी के,मिट्टी-मिट्टी थी हर कहीं, अब बड़े शहरों में तो,गमले में डालने को भी मिलती नहीं! बहुत कुछ है शहर में, रोड-जाम,रेल-जाम जैसा, वी आई पी के कारण रास्ता-बदइंतज़ाम जैसा, हादसा,झपटमारी,ब्लैकमेलिंग,अपहरण जैसा, कदम-कदम पर हो रहे मानवीय-मूल्यों के क्षरण जैसा! समझ में आता है अब, कि क्यों जाते थे कवि,शहर छोड़ गांव, क्यों अच्छा लगता था उन्हें धूल-धूसरित पांव, गांवों में सुख-दुःख मिश्रित साधना सा जीवन था, आदमी-आदमी के दुःख से था दुःखी,उनमें अपनापन था। हां,सच है हमारी तरह ही उन भावों ने भी छोड़ दिया है गांव, पक्की सड़कों के रास्ते जा,शहर ने जमा लिए हैं पांव, किन्तु,बचा है बहुत-कुछ,जो दिखता है गांव जाने पर, जैसे,"कभी भव्य इमारत थी यहां!" बोल उठते हैं खंडहर! 'Paavan Teerth'

Ghazal-66

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहिब की एक मशहूर ग़ज़ल है- आए कुछ अब्र कुछ शराब आए, उसके बाद आए जो अज़ाब आए! पेश है इसी ज़मीन पर कही ये ग़ज़ल,अर्ज़ किया है- इश्क़ में गर हमारे ताब आए, उसके भी हुस्न पे शबाब आए//1 फ़ेल मैं हो गया मुहब्बत में, मेरे नंबर बहुत ख़राब आए//2 उसने रक्खी ये शर्त मिलने ी, पहले दारू,मटन क़बाब आए//3 दुन्या कहती है इश्क़ है लेकिन उसके मुँह से भी कुछ जवाब आए//4 हिज्र की शब है आरज़ू मेरी जब भी नींद आए,उसका ख़्वाब आए//5 बस वो हो जाए बोसा-ज़न मेरा फिर जो आए तो इंक़िलाब आए//6 मिलने को आए जो भी कह दो उसे साथ लेकर ख़ुम-ए-शराब आए//7 तुमने बोये हैं ख़ार मिट्टी में और है आरज़ू गुलाब आए//8 इतनी ग़ज़लें लिखी हैं क्या बोलूँ मुझमें इल्हाम बेहिसाब आए//9 उसका बोसा भी लें लूँ मैं गर वो मिलने को बेनक़ाब आए//10 ताब- शक्ति,ज़ोर,ताक़त,बल,सामना,विरोध करने की शक्ति,मजाल या हिम्मत,सामर्थ्य,मक़्दूर,आराम,चैन ज्योति,आभा,चमक,दीप्ति,जैसे:मोती या हीरे की ताब! शबाब-उठती जवानी,तरूणाई,युवाकाल,यौवनकाल,युवावस्था,जवानी,यौवन,तारुर्म्य,किसी वस्तु या भाव की उत्तम अवस्था! बोसा-ज़न-चूमनेवाला,चुंबन करने वाला! इंक़िलाब-उलट-पलट,परिवर्तन,स्थित उलटना,समय का उलट-फेर,किसी स्थित की विपरीत में होने की अवस्था,तबदीली,क्रांति ख़ुम-ए-शराब-शराब से भरा मदिरा का मटका अथवा पीपा ख़ार-काँटा इल्हाम-ईश्वर की ओर से हृदय में आई हुई बात,ईश्वरीय ज्ञान या प्रेरणा बोसा-प्रेम के आवेग में होने से(किसी दूसरे के)गाल,होंठ आदि अंगों को स्पर्श करने या या दबाने की क्रिया,चुंबन में होठों से एक स्पर्श,चुम्मा,चुंबन बेनक़ाब-जिसपर नक़ाब या परदा न हो,जिसकाचेहरा ढका न हो! 'maahir'(collected by)

A few kata'at-

प्रस्तुत हैं चंद कतआत - मुसाफ़िर जहाँ रास्ता चाहते हैं, वहीं रास्ते हौसला चाहते हैं! मिले हक़ सभी को जो उनका है यारो, हम इसके सिवा और क्या चाहते हैं। अज़ल से,निहाँ हैं,नज़र में नज़ारे, जो करते हैं जुर्अत,वो पाते इशारे! ग़रीबी उसे अलविदा कह गयी फिर, जहालत के जिसने भी ज़ेवर उतारे। अजब दुनिया का कारोबार देखा, बिना ख़बरों के अब अख़बार देखा! ग़रीबी ख़ूब फलती फूलती अब, तरक़्क़ी में ये कारोबार देखा। मुझे इस बात का शिकवा बहुत है, हुआ मरना भी अब महँगा बहुत है! ज़रूरत जब पड़ी,वो व्यस्त थे कुछ, मुझे इस बात का सदमा बहुत है। कभी उलझा जो कोई मसअला है, मिला फिर गुफ़्तगू से रास्ता है! यही जम्हूरियत की ख़ास ख़ूबी, जगी जनता को ही बस हक़ मिला है। 'Maahir'(COLLECTED BY)

Tarhi Mushayra(Ghazal)

आदाब दोस्तो, 'अंजुमन ’ तरही मुशायरे की पूरी टीम बेहद ख़ुलूस ओ एहतराम के साथ 'अंजुमन ' मुशायरे की सफलतम 100 वीं कड़ी लेकर बेहद खुशी के साथ आप सबों के बीच फिर हाज़िर है। इस तरही मुशायरे में आज हम बहरे मीर के तहत आने वाली साढ़े पांच रुक्नी बहर को अभ्यास हेतु लेकर आएं हैं और इसी सिलसिले में पेश कर रहे हैं मशहूर शायर " जनाब असद भोपाली साहब ” की ग़ज़ल का ये ख़ूबसूरत मिसरा, आशा करते हैं कि आप सभी पूर्ववत इस आयोजन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे, तो प्रस्तुत है आज का तरही मिसरा...... मिसरा-ए-तरह का विवरण- -------------------------- #मापनी 👇 22-22-22-22-22-2 --------------------------------- ‘ Shar का सूना साज़ तराना ढूंढेगा ’ ---------------------------------------- पूरा शे'र (मतले सहित)👇 ---------------------------------------- पूरा शे'र(अन्य शे'र सहित)👇 दिल का सूना साज़ तराना ढूँढेगा मुझको मेरे बाद ज़माना ढूंढेगा //१// प्यार धड़कते दिल का ठिकाना ढूँढेगा, वक्त मेरे गीतों का खज़ाना ढूँढेगा //२// क़ाफिया की तुक - ' आना ' का तुकान्त। उदाहरण - निशाना,पुराना,खजाना,तराना, ज़माना,खाना, गाना,दाना,परवाना,याराना,आदि, रदीफ़ -ढूँढेगा, ********************** तरही मुशायरा ,अंजुमन के नियम 👇: ---------------------------------------------------- 1. हर मुशायरे का तरही मिसरा प्रत्येक शनिवार को ग्रुप के पटल पर प्रस्तुत किया जाएगा। 2. प्रत्येक प्रतिभागी को कम से कम 2 अशआर (आवश्यक रूप से एक मतला एवं एक शेर या मक़ता) एवं अधिक से अधिक 7 अशआर (एक मतला और छह शे'र अथवा एक मतला, पांच शे'र, एवं एक मक़ता, अथवा दो मतला, दो शेर, एवं एक मक़ता) कहने हैं, न दो अशआर से कम, और न ही 7 अशआर से ज़्यादा. ज़ाहिर सी बात है एक से अधिक मतला होने की स्थिति में अन्य अशआर की संख्या कम हो जाएगी. इस 7 शेर के कोटे में कोई भी प्रतिभागी अधिकतम 3 मतला कह सकेगा. 3. प्रत्येक प्रतिभागी को अपने सातों शेर अथवा सात शेर की पूरी ग़ज़ल एक बार और एक कमेंट बॉक्स में ही डालनी है, अलग-अलग दिन, अथवा अलग-अलग कमेंट बॉक्स में नहीं. बिना मतले के कोई भी प्रविष्टि स्वीकार नहीं की जाएगी अर्थात डिलीट कर दी जाएगी. कृपया ध्यान दें कि कमेंट बॉक्स गुरुवार को रात्रि 12.00 बजे बंद कर दिया जाएगा जिसके बाद कोई भी कमेंट कर पाना संभव नहीं होगा। 4. प्रत्येक प्रतिभागी के लिए आवश्यक होगा- a. प्रविष्टि में सबसे ऊपर उसकी मापनी लिखी जाएगी, b. उसके बाद सभी शेरों की प्रविष्टि लिखी जाएगी, c. प्रविष्टि के प्रत्येक शेर का क्रमांक लिखा जाएगा, d. उसके बाद नीचे उन्हीं सात अशआर को बह्र के अनुरूप तक़तीअ कर के लिखा जाएगा, यहाँ भी शेर क्रमांक लिखना आवश्यक होगा, e. उसके बाद प्रतिभागी का नाम, एवं f. अंत में कठिन शब्दों के अर्थ। 5. प्रत्येक प्रतिभागी के लिए आवश्यक होगा कि वो समीक्षक मंडल द्वारा दिए गए सुझावों पर गौर करें तथा उसके आधार पर, मिसरे, शे’र अथवा ग़ज़ल में आवश्यक रद्दोबदल करें। 6. प्रत्येक प्रतिभागी के लिए यह आवश्यक होगा कि वो दूसरे प्रतिभागियों की प्रस्तुति पर अपनी उपस्थिति लाइक करके एवम अपनी टिप्पणी के माध्यम से दर्शाए । 7. जब तक चल रहा तरही मुशायरा संपन्न नहीं हो जाता है, तब तक कोई भी प्रतिभागी अपनी ग़ज़ल को न तो MGIGL के मंच पर प्रस्तुत करेगा, और न ही कहीं अन्य समूह या अपनी वॉल पर। 8. पुनः, कृपया ध्यान दें कि कमेंट बॉक्स गुरुवार को रात्रि 12.00 बजे बंद कर दिया जाएगा जिसके बाद कोई भी कमेंट कर पाना संभव नहीं होगा। 'Maahir'

Ghazal-65

रखेंगे न कोई निशाँ मेरे बाद वो बेचेंगे मेरा मकाँ मेरे बाद /1 वसीयत में सब लिख दिया साफ़ साफ़ रहेगा न कोई गुमाँ*मेरे बाद /2 *संदेह लिखा है इसे मैंने चट्टान पर न बदलेगा मेरा बयाँ मेरे बाद /3 मेरी क़ब्र पाओगे ख़ामोश तुम सुनोगे न मेरा फ़ुग़ाँ*मेरे बाद /4 *रोना अभी हैं सलामत मेरे दोस्त सब न वीरान होगा मुग़ाँ*मेरे बाद /5 *शराबखाना न काँटे चुभेंगे न महकेंगे गुल न लहराएंगी डालियाँ मेरे बाद /6 ये मोती छुपा कर रखें हैं अभी दिखेंगे ये दर्द-ए-निहाँ*मेरे बाद /7 *छुपी हुई पीड़ा चराग़ों को रौशन करेंगे नहीं न खोलेंगे वो खिड़कियाँ मेरे बाद /8 मेरे बाद सामान सारा जुटा लगाई गईं कुर्सियाँ मेरे बाद /9 ज़माना कहे मुझ को आतिश-फ़िशाँ* रहेगा ज़रा सा धुआँ मेरे बाद /10 *ज्वालामुखी जो सुन कर ग़ज़ल फेर लेते हैं मुँह बजाएंगे वो तालियाँ मेरे बाद /11 अभी राज़ मुझ से समझ सब न सुलझेंगी ये गुत्थियाँ मेरे बाद /12 'Maahir'(collected by)

Anyay mev jayate

न्याय व्यवस्था हमारी अभी तक मैं सोचता था कि अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था,पर कृष्ण ने उसे लड़वा दिया,यह अच्छा नहीं किया। लेकिन अर्जुन युद्ध नहीं करता तो क्या करता? कचहरी जाता!जमीन का मुकदमा दायर करता। अगर वन से लौटे पांडव,जैसे तैसे कोर्ट-फीस चुका भी देते,तो वकीलों की फीस कहां से देते,गवाहों को पैसे कहां से देते? और कचहरी में धर्मराज का क्या हाल होता?वे क्रॉस एक्जामिनेशन के पहले ही झटके में उखड़ जाते।सत्यवादी भी कहीं मुकदमा लड़ सकते! कचहरी की चपेट में भीम की चर्बी उतर जाती। युद्ध में तो अट्ठारह दिन में फैसला हो गया,कचहरी में अट्ठारह साल भी लग जाते,और जीतता दुर्योधन ही,क्योंकि उसके पास पैसा था। सत्य सूक्ष्म है,पैसा स्थूल है। न्याय देवता को पैसा दिख जाता है,सत्य नहीं दिखता। शायद पांडव मुकदमा लड़ते-लड़ते मर जाते,क्योंकि दुर्योधन पेशी बढ़वाता जाता। पांडवों के बाद उनके बेटे लड़ते,फिर उनके बेटे। बड़ा अच्छा किया कृष्ण ने जो अर्जुन को लड़वाकर,अट्ठारह दिनों में फैसला करा लिया, वरना आज कौरव-पांडव के वंशज किसी दीवानी कचहरी में वही मुकदमा लड़ रहे होते! Paavan Teerth

Ghazal-63

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- कितनी गड़बड़ फैलाते हैं अंधों में ये काने लोग। समझ न पाते ख़ुद, वो भी तो, आते हैं समझाने लोग। कुर्सी पाने पर कैसे ये हो जाते बेगाने लोग, वक़्त पड़ा तो काम न आए कुछ जाने पहचाने लोग। भेदभाव, शोषण, मक्कारी को देकर पंथों का रूप, सीधे-साधे इंसानों को आ जाते बहकाने लोग। भू, जल, हवा, गगन, अनल का लालच में करके उपभोग, मुस्तक़बिल बर्बाद कर रहे, कितने हैं दीवाने लोग। बहुत कशिश है उस ग़लती में जो क़स्दन हम करते थे, बचपन की यादों में खोकर लगते हैं शर्माने लोग। लालच के अंधों को भाता कब सुख-चैन ज़माने का, अमन-चैन गर टिकता कुछ दिन, आ जाते भड़काने लोग। प्रकृति के सब नियम क़ायदे हैं जन-जीवन के हक़ में, नियम तोड़ते हैं जब भी, तब भरते हैं हर्जाने लोग। मुस्तक़बिल=भविष्य 'Maahir'

Ghazal=62

रहता है दिल ये मेरा हाल ए ख़राब में हूं पाता ख़ुद को मैं दुनिया के सराब में/१ آتی نہیں ہے نیندیں مجھ کو تو رات میں جگتی ہیں میری آنکھیں اس کے گلاب میں आती नहीं हैं नींदें मुझ को तो रात में जगती हैं मेरी आँखें उस के गुलाब में/२ کچھ سال پہلے کی لذت ہی عجیب تھی آتا نہیں مزا دلی کے کباب میں कुछ साल पहले की लज़्जत ही अजीब थी आता नहीं मज़ा दिल्ली के कबाब में/३ یہ کیا کہ ہم کو ان کا دیدار بھی نہیں رخ زلف میں چھپایا یا پھر حجاب میں ये क्या कि हम को उनका दीदार भी नहीं रुख जुल्फ में छुपाया या फिर हिजाब में/४ گر تنہا پیتے تو کچھ غیرت کی بات تھی ہم نے انہیں اٹھایا جو تھے شراب میں गर तन्हा पीते तो कुछ गैरत की बात थी हम ने उन्हें उठाया जो थे शराब में/५ 'Maahir'

Kavita-Hindi

हमारी आन है हिंदी, हमारी शान है हिंदी। मगर अब तक न पा पाई, राष्ट्र भाषा का सम्मान हिंदी। यही तुलसी यही मीरा इसी के बन गए कबीरा। मिलता बरस में सिर्फ एक दिन है इसी बात ने मन चीरा। पितृ पक्ष सा पक्ष मनाते, जन जन की है प्यारी हिंदी! मान यही है हिन्द देश की, पूजित सबकी भाषा हिंदी। भाव सुधा से परिपूरित है, स्नेहसिक्त इसकी बोली है! प्रेम भाव फैलाने वाल,ी प्यारी है मातृ भाषा हिंदी। 'Paavan'

Ghazal-61

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- हमारी अस्मिता, आदर्श की, पहिचान है हिन्दी। हमारी संस्कृति की आन-बान औ शान है हिन्दी। इसी के माध्यम से हम ज़माने को समझ पाए, हमारे राष्ट्र की अवधारणा की आन है हिन्दी। सभी भावों, विचारों को वहन करने में है सक्षम, हमारे देश के चिंतन की अविरल शान है हिन्दी। कुछ इसकी बोलियाँ तो हैं कई भाषाओं पर भारी, बहुत सी बोलियों का दोस्तो उन्वान है हिन्दी। वो जो हम बोलते हैं बस वही लिखते हैं हिन्दी में, सभी भाषाओं के सापेक्ष कुछ आसान है हिन्दी। प्रफुल्लित या दुखी होकर, इसी में बोलते हैं हम, सनातन सोच की यारो सहज सन्तान है हिन्दी। इसे विज्ञान, जन-जीवन, कला, व्यापार से जोड़ें, तरक़्क़ी, शान्ति, ख़ुशहाली की अद्भुत खान है हिन्दी। 'Maahir'

Ghazal-60

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- ज़माने में अक्सर यही तो दिखा है, किसी को बनाने में कोई मिटा है। रुई-तेल को श्रेेय देता न कोई, सभी कहते देखो,दिया जल रहा है। समझना न चाहे,वो समझेगा कैसे ? समझ का इरादे से ही सिलसिला है। बढ़ी भुखमरी,जिंस मँहगी हुईं सब, मगर वोट का कुछ अलग मुद्दआ है। बदल के अमीरों की फ़ितरत दिखाओ, हर इक शय बदलती है,मैंने सुना है। जो सुख - दुःख के गहरे हुए हैं तजारिब, उन्हें ही तो हमने ग़ज़ल में कहा है। लगी चोट दिल पे,तो तड़पा बदन कुछ, मगर कुछ फरिश्तों को इस पर गिला है। 'Maahir'

Ghazal-59

मिलती नही निस्बत कभी चाहत नही मिलती अफसोस ही करते तो मोहब्बत नहीं मिलती//1 घर छोड़ के कर दी थी मैं ने जिंदगी बर्बाद इस काम से अब मुझको विरासत नही मिलती//2 दिल फेंक के आया था तेरी शान के आगे इससे बड़ी तुझको कभी ज़िल्लत नही मिलती//3 जब सर को छुपाना पड़ा दिह़के को कहीं पर उस रोज़ दिहाड़ी में मशक़्क़त नही मिलती//4 दो जून की रोटी के लिए क्या नही होता क्यों ऐसी अमीरों को मुसीबत नही मिलती//5 हमको भी सियासत में है किरदार की चाहत सरकार मैं क्यों हमको ये शोहरत नही मिलती//6 "Maahir'

Ghazal-58

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहिब की एक मशहूर ग़ज़ल है- आए कुछ अब्र कुछ शराब आए, उसके बाद आए जो अज़ाब आए ! पेश है इसी ज़मीन पर कही ये ग़ज़ल, अर्ज़ किया है- इश्क़ में गर हमारे ताब आए उसके भी हुस्न पे शबाब आए //1 फ़ेल मैं हो गया मुहब्बत में मेरे नंबर बहुत ख़राब आए //2 उसने रक्खी ये शर्त मिलने की पहले दारू, मटन क़बाब आए //3 दुन्या कहती है इश्क़ है लेकिन उसके मुँह से भी कुछ जवाब आए //4 हिज्र की शब है आरज़ू मेरी जब भी नींद आए, उसका ख़्वाब आए //5 बस वो हो जाए बोसा-ज़न मेरा फिर जो आए तो इंक़िलाब आए //6 मिलने को आए जो भी कह दो उसे साथ लेकर ख़ुम-ए-शराब आए //7 तुमने बोये हैं ख़ार मिट्टी में और है आरज़ू गुलाब आए //8 इतनी ग़ज़लें लिखी हैं क्या बोलूँ मुझमें इल्हाम बेहिसाब आए //9 उसका बोसा भी बेनक़ाब आए//10 (collected by) 'maahir ताब-शक्ति,ज़ोर,ताक़त,बल,सामना,विरोध आदि करने की शक्ति,मजाल या हिम्मत,सामर्थ्य,मक़्दूर,आराम,चैन ज्योति,आभा,चमक,दीप्ति,जैसे:-मोती या हीरे की ताब! शबाब-उठती जवानी,तरूणाई,युवाकाल,यौवनकाल,युवावस्था,जवानी,यौवन,तारुर्म्य,किसी वस्तु या भाव की उत्तम अवस्था बोसा-ज़न-चूमनेवाला,चुंबन करने वाला इंक़िलाब-उलट-पलट,परिवर्तन,स्थित उलटना,समय का उलट-फेर,किसी स्थित की विपरीत में होने की अवस्था,तबदीली,क्रांति ख़ुम-ए-शराब-शराब से भरा मदिरा का मटका अथवा पीपा ख़ार-काँटा इल्हाम-ईश्वर की ओर से हृदय में आई हुई बात,ईश्वरीय ज्ञान या प्रेरणा बोसा-प्रेम के आवेग में होने से(किसी दूसरे के)गाल,होंठआदिअंगों को स्पर्श करने या या दबाने की क्रिया,चुंबन में होठों से एक स्पर्श,चुम्मा,चुंबन बेनक़ाब-जिसपर नक़ाब या परदा न हो,जिसका चेहरा ढका न हो!

Ghazal-57

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- मौत तो एक बार आती है, ज़िन्दगी रोज आजमाती है। सीखते पुस्तकों से हम बेशक़, पर अधिक ज़िन्दगी सिखाती है। आस्तिक-नास्तिक,कोईभी हो, ज़िन्दगी सब को आज़माती है जोश के साथ जो नहीं होती, नेक कोशिश वो हार जाती है। कोई जब रास्ता नहीं दिखता, रोशनी,तीरगी से आती है। ख़्वाब से लौट के भी आना है, याद ठोकर भी ये दिलाती है। अंश कुछ ब्रह्म का तो है मुझ में मेरी आवारगी जताती है। कुछ कदम साथ थे जहाँ हम-तुम, राह वो याद कुछ दिलाती है। आज तक हम समझ नहीं पाए, याद जाती कहाँ,जो आती है। भूलने का अहद कराया था, आज फिर उसकी याद आती है। आजमाने से क्या मिला यारो, ज़िन्दगी तल्ख़ होती जाती है। दिल लगी, दिल्लगी नहीं “maahir” इक हँसी सारे गम भुलाती है। 'Maahir'

Kavita-Nayaa Saal

नया साल जो गुज़र गया,सो गुज़र गया, अब सपने पूरे हो जायें। इक घाट पे शेर बकरी हों, नया साल मुबारक हो जाये।। हम आज कितने बेबस हुये, जन पीड़ा को कहने वाले, दोषी को गर सज़ा हो जाये। नया साल ---------------------------- ।। नन्ही कलियां मसलीं जातीं, औरतों पर क्यूं पहरा है, ये आशियाने हैं पुरखों के, प्रशासन अंधा व बहरा है, नया साल --------------------------- ।। हर इन्सां हो मयस्सर रोटी, नियत न हो हाकिम की खोटी, नया साल ---------------------------- ।। हर साल दें मुबारकबादें, फिर वही चीख़ वा फ़रियादें, नफ़रत - नफ़रत खेल रहे सब, मज़लूमों की ख़ूनी यादें, काश ! पुराना वक़्त आ जाये। नया साल --------------------------- ।। आज मसीहा ऐसा आये, नफ़रत की दीवार गिराये, जियो - जीने दो का हो नारा, फ़सल मुहब्बत की लहराये, धरतीपुत्र संतुष्ट हो जाये। नया साल --------------------------- ।। नव प्रभात की हर्षित बेला, सलमा विदा हो जाये तेईस, लोकतंत्र को साथ में लाना, स्वागत है तथागत चौबीस, वसुधैव कुटुंबकम आ जाये। नया साल -----------................II

Ghazal-56

एक ग़ज़ल- भला इंसांनियत का चाहती हो, ज़ुबां पे अब से, बस वो शायरी हो। सुने जो भी, लगे उसको कि जैसे, ग़ज़ल में बात उसकी ही कही हो। ख़ुदा से बस मेरी ये इल्तिजा है, न मुश्किल में किसी की ज़िन्दगी हो। इल्तिजा=प्रार्थना, निवेदन, मेरी ख़्वाहिश यही है दोस्तो बस, करूँ वो काम जिससे बन्दगी हो। हुआ है इश्क़ जब से, बस ये चाहा, जुदा कोई न अपनों से कभी हो। सियासत झेल के मैंने क़सम ली, ग़ज़ल अब जो लिखूँ वो आग सी हो। सुनेगा ग़ौर से तुमको ज़माना, तुम्हारी बात में कुछ बात भी हो। 'Maahir'

Ghazal-55

प्रस्तुत है एक ग़ज़ल - आँख से ओझल है पर वो देखता है दोस्तो जो दिया उसने वो कर्मों से सिवा है दोस्तो। ढूँढते हो क्या है मुझमें, मैं बताता दोस्तो, आत्मा, जल, क्षिति, गगन, पावक, हवा है दोस्तो। उसने पैगम्बर हैं भेजे पर न जाने क्यूँ यहाँ , आदमी अब तक गुनाहों में फँसा है दोस्तो। क्या कहीं अहसान उतरेगा ज़माने में कभी, उसने जो तुम को बिना मांगे दिया है दोस्तो। डूबते हो कर्म में जो मान के पूजा उसे, हर बुलंदी के लिए रास्ता खुला है दोस्तो। कोशिशों से ज़िंदगी में चैन- सुख संभव सभी , आदमी ने स्वर्ग धरती पर रचा है दोस्तो। कब कहा उसने कि फल पाओगे कर्मों का नहीं, पर यहाँ इंसान पंथों में फँसा है दोस्तो। वो कहाँ कहता कि जग को भूल कर पूजा करो , ये तो झंझट आप-हम ने ही रचा है दोस्तो। क्यूँ क़यामत के मुझे तुम अद्ल से बहका रहे ज़िंदगी सबसे बड़ी ख़ुद में सज़ा है दोस्तो। हाथ की रेखाएं सब बनती बिगड़तीं कर्म से, सब ने कर्मों से ही किस्मत को लिखा है दोस्तो। इश्क़ से दुनिया बनी है इश्क़ से क़ायम है ये, इश्क के ही नूर से हर दिल खिला है दोस्तो। एक ही जो नूर से उपजा है “maahir” विश्व ये, आज इंसां क्यों ये इंसां से जुदा है दोस्तो। अद्ल=न्याय

Ghazal-54

पास वो आता नहीं क्यों आजकल, इश्क़ भी करता नहीं क्यों आजकल।१ साथ है उम्मीद, यादें तेरा ज़िक्र, वक़्त फिर कटता नहीं क्यों आजकल।२ बेसबब झगड़ा है करता मुझसे वो, बनता वो मेरा नहीं क्यों आजकल।३ दौर कोई पीने का होता नहीं, ज़हर भी मिलता नहीं क्यों आजकल।४ किससे अब फ़रियाद करनी है मुझे, तुझको मैं भूला नहीं क्यों आजकल।५ हाथ में कोई नहीं है जब लक़ीर, रब से फिर रूठा नहीं क्यों आजकल।६ बात है छेड़ी बज़्म में, अपना भी तड़पा नहीं क्यों आजकल।७ 'Maahir'(collection by)

Ghazal-53

ग़ज़ल- अब तो कुछ ये दुआ भी की जाए, ज़िन्दगी सादगी से जी जाए। तेज़ रफ़्तार है ज़माने की, अब क़दम ताल कैसे की जाए? पूछ कर उनसे हम उठें बैठें, ज़िन्दगी ऐसे तो न जी जाए। दोस्त मेरी ख़बर नहीं रखते, अब ख़बर दोस्तों की ली जाए। काम कुछ वो भी हों, ज़माने में, जिससे बेबस की बेबसी जाए। सोच में ताज़गी जो चाहें तो, बात कुछ शायरी की की जाए। जब उसूलों की बात हो , जा रही हो तो ज़िन्दगी जाए। 'Maahir'(collected by)

Rasleela Nathdwara Style | Twin Eternals - Matter & Energy

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