गौमुखी तेरी----! मेरे मन के गंगा तट पे,सिर्फ तेरा ही आना है। क्यों रहते हो दूर मुझे तो,केवल तुमको पाना है।। गाऊँ मैं मल्हार अगर,सावन बन तुम आ जाना जी। मन के मौन सरोवर में,प्रेम का पुष्प खिलाना जी। सावन ऋतु की मोरनी बन के,अश्रु तेरे पी जाऊंगी। अश्रु मिलन से मुझमें होगा,इक जीवन सन्धान, आलिंगन में तेरी मुझको तन,बगियां महकाना है। क्यों रहते हो दूर मुझे तो केवल तुम को पाना है जीवन बहती धारा जैसा,हम ठहरा ही किनारा हैं। तुझसे संगम की खा़तिर ही कितनी बार पुकारा है। गौमुखीं में तेरी उद्गम मेरा बस,तुमसे ही हैं । थम जाएगा वेग भाव का,तेरे मन के तट आकर , युगों-युगों से तुम तक आई,अब तुमको मुझ तक आना है।। क्यों रहते हो दूर,मुझे तो केवल तुम को पाना है। आओ सांसो की सरगम पर,गीत नेह के गाएं हम। सीप और मोती के जैसे,एक दूजे में खो जाएं हम।। में हुं साधक,साध्य मेरा तुम,मेरी तुम आराधना हो, बन के पूजन'प्रीत'को बस,तुझमें ही खो जाना है।। मेरे मन के गंगा तट पर,सिर्फ तेरा ही आना है। क्यों रहते हो दूर,मुझे तो केवल तुम को पाना है।। 'Paavan Teerth'(collected by)