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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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6:37 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
नज़र का वार अरमां की खुशामद में नही रक्खा कभी मेंने सियासत को किसी कद में नही रक्खा//1 मिरा खित्ता किसी दुन्या के हिस्से में नही होगा ग़ज़ल को भी यहाँ मैंने तो सरहद में नही रक्खा//2 कहानी को कहाँ मेरी बड़ी ही साफ़-गोई से मेरे किरदार को मैंने यूँ शायद में नहीं रक्खा//3 हुनर को भी सितारों की नज़र में बांध रक्खा है सुख़न को भी यहाँ मैंने तो कागद में नही रक्खा//4 हजारों हुस्न से मैं भी शरारत को मचलता हूँ मचलती चाह को मैंने है मकसद में नही रक्खा//5 वफ़ा की राह में चलकर कभी जो ख़्वाब देखे थे उन्ही ख्वाबों को मैंने भी कभी मद में नही रक्खा//6 दीवानों के शहर का मैं हूँ इक हँसता हुआ आशिक़ मुहब्बत की गुज़ारिश को यहाँ हद में नही रक्खा//7 'Maahir'
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