क़लम की आरज़ू है की कोई अल्फ़ाज़ अब निकले हुनर से इल्तिज़ा है की मेरा अंदाज अब निकले//1 ज़रा सी कशमकश से भी संवरता है सुखन मेरा मेरे कुछ शेरों से भी तो मेरी आवाज़ अब निकले//2 मोहब्बत कर भी ली मैं ने इसी उम्मीद से यारो मोहब्बत से इबादत का कोई आगाज़ अब निकले//3 मेरी इक शर्त ये भी थी मेरे इन होंसलों से अब मेरी इस जिंदगी से ही कोई परवाज़ अब निकले//4 वफादारी भी मैंने की सभी से इसलिए शायद की मेरी इस वफ़ा से ही किसी के राज़ अब निकले//5 बनाया इस तरह मैंने मोहब्बत का भी ये माहौल कभी तो इश्क़ में मेरा कोई हमराज़ अब निकले/6 'Maahir'