ग़ज़ल अर्ज़ किया है- हस्ती का मरहला मेरा एक इक गुज़र गया आई जो साअत-ए-क़ज़ा, मैं अपने घर गया //1 होकर शुऊर-ए-ज़ात में दाख़िल दमे वफ़ात ज़िंदा हुआ मशाम-ए-जाँ, तन जबकि मर गया //2 सस्ते में दाम-ए-बूद से मुझको मिली नजात निकला ख़ुदी की क़ैद से, यज़दाँ के घर गया //3 आँखों में तेरे इश्क़ का था बार-ए-इंकिसार दार-ए-ख़ुदा भी करके मैं नीची नज़र गया //4 जिस दिन गली के सग को यूँ पहुंचाई तुमने चोट उस दिन ऐ यार तू मेरे दिल से उतर गया //5 ता-देर उड़ सका नहीं ताइर अना का'maahir' सय्याद बनके तजरिबा डैने क़तर गया //6 'Maahir' हस्ती का मरहला- जीवन का गंतव्य स्थान, मंज़िल; पड़ाव; ठिकाना साअत-ए-क़ज़ा- मौत की घड़ी होकर शुऊर-ए-ज़ात में दाख़िल दमे वफ़ात- मरने के समय स्वचेतना में प्रवेश करके मशामे जाँ- आत्मा दामे बूद- अस्तित्व की क़ैद नजात- मुक्ति, रिहाई, छुटकारा, आज़ादी, क्षमी, माफ़ी, मोक्ष, निर्वाण ख़ुदी- अहंकार, अहंवाद, यह भाव कि बस हमीं हम हैं, गर्व, अभिमान, घमंड, 'खुद' का भाव, अहंभाव यज़दाँ- ख़ुदा, ख़ुदा-ए-ताला के नामों में से एक नाम, असीम शक्ति, क़ादिर-ए-मुतलक़ अर्थात ईश्वर होने की अवस्था बार-ए-इंकिसार- विनम्रता का भार दार-ए-ख़ुदा- ईश्वर का घर सग- कुत्ता ता-देर- देर तक ताइर- पक्षी, परिंदा सय्याद-:शिकारी