प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- मिला जो ख़ुदा बंदगी माँग लेंगे, ज़माने की ख़ातिर ख़ुशी माँग लेंगे। हिमाक़त अमीरों की देखो जो कहते, दवा से जवानी नई माँग लेंगे। कभी कर सके तो यही हम करेंगे, ग़रीबों से बेचारगी माँग लेंगे। सँवारे गए हम जो नाहक़ ज़ियादा, तो तूफ़ान से बरहमी माँग लेंगे। दुआ सोच रक्खी थी अपने लिए जो, तुम्हारे लिए अब वही माँग लेंगे। बहुत मतलबी हैं ज़माने में'maahir', मिले'नूूर'गर शायरी माँग लेंगे। 'नूर'=Khuda हिमाकत= दुस्साहस, बेवकूफ़ी; नाहक=बिना वजह, बरहमी= क्रोध, गुस्सा, अप्रसन्नता, नाराज़ी, अस्त-व्यस्तता, 'Maahir'