प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- कभी सोचा नहीं वो भी दिखा मंज़र चुनावों में। हुआ है हाल बद से अब बहुत बदतर चुनावों में। बड़े नेता सभी दिखते हैं जोड़े कर चुनावों में, सजा पाए जो नेता तो,लड़े दुख़्तर चुनावों में। (दुख़्तर=बेटी) बहुत मासूम लगते हैं बड़े अफ़सर चुनावों में। ग़लत हुक्मों पे जो कहते रहे सर,सर चुनावों में। न होना था वही होता रहा अक्सर चुनावों में, बहुत बदहाल होता दिख रहा वोटर चुनावों में। सभी नेता किए वादे तो बढ़-चढ़ कर चुनावों में। सभी पहले के वादों पर फिरा डस्टर चुनावों में। नियम-क़ानून नेता तोड़ते रहते धड़ल्ले से, ग़लत सब काम होते हैं यहाँ अक्सर चुनावों में। बिठा पाते जुगत दो वक़्त रोटी की जो मुश्किल से उन्हें खाने को मिलता है ज़रा कुछ तर चुनावों में। मंज़र=दृष्य,दुख़्तर = बेटी 'Maahir'