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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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9:05 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल गुरु प्रोग्राम के विद्यार्थियो- ---------------------------------------------- ग़ज़ल गुरु प्रोग्राम के विद्यार्थियो, आइए मैं आज आपको अपने ग़ज़ल लेखन की प्रक्रिया के बारे में कुछ बताऊँ!आज सुब्ह मैंने ये सोचा कि कल मैंने कोई ग़ज़ल नहीं लिखी है, इसीलिए आज मुझे कोई नयी ग़ज़ल लिखनी चाहिए! मैं अमूमन मतला पहले लिखता हूँ, उसके बाद दूसरे अशआर! मगर आज मतला लिखे बग़ैर एक शेर मेरे ज़हन में आ गया जो इस प्रकार है- मुझको तो फ़क़त चाहिए दो जून की रोटी हर शख़्स मोहब्बत का तलबगार नहीं है //2 ये शेर मुझे अच्छा लगा, ठीक-ठाक लगा, मगर अब इसके बाद मुझे एक मतला लिखना था जो मैंने जल्दी में इस प्रकार लिख दिया- मत पूछिओ क्यूँ आशिक़ी का दार नहीं है छत होगी किधर जब कोई दीवार नहीं है //1 यहाँ दार का अर्थ घर,बड़ा मकान,महल इत्यादि है! इस प्रकार, मतला भी मुझे ठीक-ठाक लगा क्योंकि मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि ये मत पूछो कि क्यों आशिक़ी या मोहब्बत का कोई घर नहीं है क्योंकि,घर होने के लिए छत चाहिए और छत बनेगी कैसे जब कोई दीवार ही नहीं हो! 😁 मगर,मैं फिर भी कुछ और भी कहना चाह रहा था और मन में इच्छा हो रही थी कि कुछ और भी लिखूँ,इसी बीच में घर से बाहर चला गया, पत्नी के कहने पर बाहर दूर कहीं पीपल का पेड़ है वहाँ दूध चढ़ा आया,उसके बाद मौसम अच्छा था तो थोड़ी दूर निकल गया और एक छोटे से ढाबे में बैठकर आलू बड़े खाए और फिर घर आ गया! घर आने के बाद फिर से मेरे चिंतन की प्रक्रिया शुरू हो गई. इस बार कुछ जिद्दो जहद के बाद एक दूसरा मतला बना जो इस प्रकार है.मगर इसके बनने की प्रक्रिया ये थी कि पहले मैंने सानी मिसरा लिखा जो पहले मतले के सानी मिसरे की तरह था मगर उससे अलग भी था! मिसरा इस प्रकार है- घर में मेरे छत या कोई दीवार नहीं है //1 दरअस्ल, मैं ये कहना चाह रहा हूँ कि सामान्य अर्थ में जिस तरह लोगों के अपने घर होते हैं उस अर्थ में मेरे पास मेरा अपना कोई घर नहीं है और देखा जाए तो मैं बेघर हूँ! मगर साथ-साथ मैं ये भी कहना चाह रहा हूँ कि क्योंकि मैं बेघर हूँ, मेरे घर की कोई दीवार या कोई छत नहीं है, इसलिए और इसी कारण मेरा घर जहाँ मैं रहता हूँ, वो एक असीमित घर है और आम अर्थ में सभी लोगों के घर से बड़ा है!😃जब ये अर्थ और इससे जुड़ी भावना मेरे अंदर घर कर गई तो मेरा ऊला मिसरा भी निकल कर आ गया जो इस प्रकार है- जैसा है मेरा आपका क़ददार नहीं है! क़ददार का अर्थ होता है डील डॉल वाला, बड़ा, बड़े क़द वाला, इत्यादि! इस तरह मेरा दूसरा मतला इस प्रकार बन गया- जैसा है मेरा आपका क़ददार नहीं है घर में मेरे छत या कोई दीवार नहीं है //1 अब अभी-अभी इस मतले के बन जाने के बाद, एक और नई युक्ति का मन में उदय हुआ और अब नये रूप में मेरा दूसरा मतला इस प्रकार बन गया! जैसा है तेरा घर मेरा क़ददार नहीं है लेकिन मेरे घर में कोई दीवार नहीं है //1 अब,बड़े घर होने की बात दूसरों के लिए कही जा रही है, मगर साथ में यह कहा जा रहा है कि मेरा घर बेहतर है क्योंकि इस घर में कोई दीवार नहीं है!लेकिन शब्द के आ जाने के बाद से इसमें एक पंच भी आ गया! अब जो बात कही जा रही है उसका अर्थ कुछ इस प्रकार है कि आपके घर की तरह मेरा घर बड़ा नहीं है, मगर ये बात भी सच है कि मेरे घर में कोई दीवार नहीं ह तो आज जो ग़ज़ल लिखी जा रही है, उसकी अभी तक की लेखन प्रक्रिया कुछ इसी तरह रही है जो मैंने आपसे अभी अभी बयाँ की! ये सब लिखने का उद्देश्य ये है कि मैं चाहता हूँ कि आपको भी मेरे ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया के अनुभव से आपको अपनी ग़ज़ल लेखन की प्रक्रिया को समझने में मदद मिल सके! इस ग़ज़ल के लिखने की प्रक्रिया अभी भी जारी है,और ग़ज़ल के मुकम्मल होते ही मैं उसे आप सबों की महफ़िल में अपनी 928 वीं ग़ज़ल के रूप में पेश करूंगा! तब तक के लिए आपसे विदा लेता हूँ! 'Maahir'
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