प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- काँधों पर जब घर होता है, दुस्सह वो मंज़र होता है। गागर में सागर होता है, कविता में अक्सर होता है। छेड़-छाड़ धरती से होती, गुस्से में अम्बर होता है। बीमारी के नाम रखे पर, मौतों का नम्बर होता है। रहबर जब गफ़लत में होता, ख़तरे में लश्कर होता है। बंद हुुए थे काम जगत के, किसने सोचा, पर होता है। उनका पत्थर मेरे सर पर, ऐसा तो अक्सर होता है। झुक कर इज़्ज़त करने वाला, सचमुच कद्दावर होता है। पल पल बदले, कण कण 'शेखर', क़ायम बस क्षणभर होता है। जिसका कांधों पर घर हो=खानाबदोश, मंज़र=दृश्य, रहबर=नेतृत्व देने वाला, लश्कर= सैनिकों का समूह, क़ाफ़िला=traveller's group. 'Maahir'