ग़ज़ल पेशे ख़िदमत है, मुलाहिज़ा फ़रमाएँ, अर्ज़ किया है- जब तुम्हारे हुस्न की ताबिश के दिन थे, शब बिरिश्ता थी कभी आतिश के दिन थे//१ सुर्ख़ आरिज़ शाम का जब आइना थ,ा नरगिसे रा'ना तेरी नाज़िश के दिन थे//२ आज भी ख़ू-ए-वफ़ा छूटी नहीं है. ग़ुर्बतों में भी तेरी ख़्वाहिश के दिन थे//३ मातम-ए-अफ़सुर्दगी इतना भी क्या है, वो तो तब था जबकि आसाइश के दिन थे//४ जब दरीचे पे नज़र तुमसे मिली थी, याद है मुझको कि वो बारिश के दिन थे //५ वो हों,रक्से मय हो,पिघली चांदनी हो वो दिन भी अजब ख़्वाहिश के दिन थे//६ ताबिश-तपन,उष्णता,गर्मी,ज्योति,प्रकाश,ताबानी,जगमगाहट,चमक-दमक,तपिश,रोशनी,धूप की चमक शब-रात बिरिश्ता-दग्ध,जला हुआ आतिश-आग सुर्ख़-आरिज़-रक्तिम गाल,रुख़सार,कपोल नरगिसे रा'ना-नरगिस के फूल की तरह सुंदर,मोहक और जवान नाज़िश-नाज़,घमंड,अभिमान,रश्क,हाव-भाव,गर्व ख़ू-ए-वफ़ा-वफ़ा करने की आदत ग़ुर्बतों में-ग़रीबी/निर्धनता में मातम-ए-अफ़सुर्दगी-बेरौनक़ी,शोभाहीनता,उदासी,और कुम्लाहट का मातम आसाइश-सुख-चैन,आराम,सुगमता,सुविधा,सुहूलत,समृद्धि,खुशहाली दरीचे पे-खिड़की पर रक्से मय-मदिरा का नृत्य 'Maahir'(collected by)