दोस्तो,हलके फुल्के मिज़ाज की ये ग़ज़ल उम्मीद है आपको पसंद आएगी- अर्ज़ किया है- हम आपसे ही नैन लड़ाने में लगे हैं और आप हमें छोड़ के जाने में लगे हैं//1 बाज़ार से ले आइए इक अपने लिए भी क्यों दूसरों की बकरी भगाने में लगे हैं//2 जो बीच में नफ़रत की खड़ी कर दी गयी है हम कब से वो दीवार गिराने में लगे हैं//3 जैसे कि हसद, जात, धरम और छुआछूत कुछ रोग शुरू से ही ज़माने में लगे हैं//4 गैरों की शिकायत का कोई अर्थ नहीं जब अपने ही मेरी लुटिया डुबाने में लगे हैं//5 कह दीजिओ सब से ही नवादे में मियाँ हम परदेस में दो रोटी कमाने में लगे हैं//6 ग़ज़लों के गुलिस्तान में कुछ ऐसे भी हैं 'राज़' जो दूसरों के शेर चुराने में लगे हैं//7 'Maahir'