प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- जह्न में कुछ अगर अना रखना, वास्ते ख़ुद के फिर दुआ रखना। अना-अहंकार दोस्ती में कभी झगड़ना तो, वापसी का भी रास्ता रखना। तापना है उन्हें तो जाड़ों में, घर जले गर, जला हुआ रखना। रोकने से कभी रुका है कुछ? जह्नोदिल को ज़रा खुला रखना। वक़्त के साथ सब बदलता है, सोच को इसलिए नया रखना। जो सँवारा नहीं तो बिखरेगा, इसलिए घर बना-ठना रखना। ये ख़ुदा की अहम् अमानत है, दिल में मासूमियत सदा रखना। 'Maahir'