प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- सभी से वो दिखे है कुछ ख़फ़ा सा, मिला उसको कोई क्या आइना सा? मेरा महबूब है सबसे अलग कुछ, मिला हर बार पहली मर्तबा सा। हुआ वर्षों पुराना इश्क़ अपना, लगे है वाक़या हो हालिया सा। जो अपने होश में यारो नहीं है, कहीं वो ही न हो अब नाख़ुदा सा। जुबां का काम वो लेता नज़र से, किसी से इश्क़ क्या उसको हुआ सा। किया है इश्क़ इतनी सादगी से, कभी लगता मुझे वो बेवफा सा। न बोले देर तक आपस में वो पर, लगा हर लम्हा जैसे बोलता सा। नहीं जो कह सका, वो वक़्त ए रुख़सत, दिखा अधरों पे कुछ सहमा हुआ सा। नाख़ुदा= नाव चलाने वाला (नेतृत्व प्रदान करने वाला) 'Maahir'(collection by)