प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- कहाँ कुछ सोच में बदला है यारो, ज़माना जैसा था वैसा है यारो। सियासत हो गई जबसे तिज़ारत, बशर इक वोट सा लगता है यारो। तिजारत= व्वापार, बशर= व्यक्ति, दबाने से रबड़ तक चोट करती, सँभल जाओ अभी मौक़ा है यारो। जो लगती शांति, सन्नाटा न हो वो, मुझे इस बात का खटका है यारो। खटका= आशंका। ज़रूरत से अधिक झुकता है जो वो , यक़ीनन दे रहा धोखा है यारो। 'Maahir'