ग़ज़ल- होश क़ायम रख सके जब उलझनों के दर्मियां, रास्ते मुझको मिले तब मुश्किलों के दर्मियां। जुर्रतों से जन्म पाया जुर्रतों से चल रही, ज़िन्दगी परवाज़ पाती आंंधियों के दर्मियां। ज़र्रे ज़र्रे को अलग सबसे बनाता है ख़ुदा, और कुछ सम्बन्ध रखता हरकतों के दर्मियां। क्या ग़जब का दोस्तो है इश्क़ का अंदाज़ ये, फ़ासले महसूस होते कुर्बतों के दर्मियां। वो मिलें या दूर हों मिलता कहाँ है चैन अब, राहतें किसको मिली हैं चाहतों के दर्मियां। एक को देेकर ज़ियादा,दूसरों से दोस्तो, बाप-माँ ने फूट डाली भाइयों के दर्मियां। रंग में तब भंग हो जाता है 'र' देख लो, नासमझ आ बैठते जब शायरों के दर्मियां। - र