अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVII: तत्व ज्ञानी निर्मम:निरहंकार: न किंचित् इति निश्चित: अन्तर्गलितसर्वांश: कुर्वन् अपि करोति न ॥१९॥ अन्तर की सभी कामनाएँ सर्वांश में जिसकी हो गईं विनिष्ट ऐसा व्यक्ति ममता और अहंकार त्याग कर सब कार्य करते हुए भी कुछ करता नहीं॥१९॥ मन:प्रकाश:सम्मोह,स्वप्न जाड्य विवर्जित:। दशाम् कामपि संप्राप्त: भवेत् गलित मानस: ॥२०॥ सम्मोह,स्वप्न,जड़ता त्याग दी जिसने जिसका मन हो गया है प्रकाश से उद्भासित। ऐसे मन:शून्य की दशा का वर्णन कैसे किया जा सकता है॥२०॥ ऐसे ही सिद्ध पुरुष का वर्णन करते हुए श्रीमद्भागवदगीता में कहा: तस्मात् असक्त:सततम् कार्यम् कर्म समाचर:। असक्त:हि आचरन् कर्म परम् आप्नोति पूरुष: ॥१९/३ अध्याय ॥ अष्टावक्र संहिता का सत्रहवाँ अध्याय समाप्त हरिॐ तत्सत,हरिॐ तत्सत,हरिॐ तत्सत!