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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:09 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVIII:शान्ति असंसारस्य तु क्वापि न हर्ष:न विषादता । स:शीतलमना नित्यम् विदेह इव राजते॥२२॥ असंसारी जन के लिए हर्ष कहाँ,शोक कहाँ। वह तो सदा शीतल मन से विदेह हो विचरता इस संसार में॥२२॥ कुत्रापि न जिहासा अस्ति नाश:वा अपि न कुत्रचित् आत्मारामस्य धीरस्य शीतलाच्छतरात्मन: ॥२३॥ शीतल,शान्त,स्वच्छंद मन वाले आत्माराम के लिए न रहता कहीं कुछ त्यागने को न कहीं कुछ खोने को ॥२३॥ प्रकृत्या शून्यचित्तस्य कुर्वत:अस्य यदृच्छया। प्राकृतस्य इव धीरस्य न मान:नअवमानता ॥२४॥ (निज)प्रकृतिवश शून्य चित्त वाला करता वही जो भाता उसे धीर-प्रकृति पुरुष के लिए न कहीं मान न अवमानना ही॥२४॥
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