ग़ज़ल- कुछ अगर पूछता नहीं होता, उनको मुझसे गिला नहीं होता। इश्क़ में कुछ मज़ा नहीं होता, उनसे जब फ़ासला नहीं होता। ऊँची कुर्सी मुझे भी मिल जाती, मैं अगर बोलता नहीं होता। इश्क़ अक्सर फ़रेब देता है, कम मगर हौसला नहीं होता। बीज बोता अगर मैं नफ़रत के, ख़त्म फिर सिलसिला नहीं होता। इश्क़ का दर्द ही वो दर्द है जो, कुछ भी हो, बेमज़ा नहीं होता। सोच जब तक अमल न बन जाए, सोचने से भला नहीं होता। ग़मज़दा है बशर यहाँ जितना काश! उतना हुआ नहीं होता। दर्द-ए-दिल एक बार उट्ठा तो, मौत से भी जुदा नहीं होता। तुम नहीं जान पाए क्या अब तक, इश्क़ का कुछ सिला नहीं होता। बात अब ख़त्म भी हो जल्वों की, तज़किरों से भला नहीं होता। इश्क़ में अब ख़बर नहीं " ", दर्द होता है या नहीं होता। मार