Ghazal ग़ज़ल- सच्ची ग़ज़लों में होती है,माटी की बू-बास ज़रा, कल की झलक सहित होता है,वर्तमान,इतिहास ज़रा। मर्म भाव का जब जानोगे तब ही कुछ पा सकते हो, समझो इसको,पा जाओगे,जीवन का उल्लास ज़रा। जीवन के वो सूत्र मिलेंगे,जो जागृत कहते आये, सब ऋषि,मुनि,जैन,बौद्ध,कबीर,मार्क्स और रैदास ज़रा। कितने चढ़े मुलम्मे इस पर,जीवन को कुछ समझो तो आम आदमी की पीड़ा का तब होगा अहसास ज़रा। सच कहने-सुनने वाले ख़तरे में खुद को डाल रहे, ऐसे लोगों के कामों से दिखती हमको आस ज़रा। मीठा बोलें,सज धज के,जो दोषी हैं अपराधों के, देवतुल्य उनको कहते हैं,जो हैं चमचे ख़ास ज़रा। वो कहते हैं सत्य वही है,जो वो कहते अपने मुख से। गर्मी को अब कहना सीखो तुम मादक मधुमास ज़रा।