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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:53 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
अष्टावक्र संहिता; अध्याय XVII: तत्त्व ज्ञानी न मुक्त:विषयद्वेष्टा न वा विषयलोलुप:। असंसक्तमना नित्यम् प्राप्तम् प्राप्तम् उपाश्रुते ॥१७॥ मुक्त-पुरुष न करता द्वेष विषयों से न विषयलोलुप बना रहता अनासक्त होकर सदा जो होता प्राप्त उसी में रहता आनन्द से॥१७॥ समाधान असमाधान हित अहित विकल्पना। शून्य-चित्त:न जानाति कैवल्यम् इव संस्थित: ॥१८॥ समस्या के समाधान होने या उलझ जाने काम बनने या बिगड़ जाने को सोचकर असंपृक्त मन वाला सदा निर्लेप बना रहता ॥१८॥
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