कबूतरबाज जब अपने कबूतरों को उड़ाते हैं तो कुछ कबूतर इतनी ऊँचाई पर चले जाते हैं कि आखों से दिखना बन्द हो जाते हैं। कबूतरबाज इसको आकाशबन्द होना कहते हैं। उस वक्त किसी के लिये यह अनुमान लगाना मुश्किल ही होता है कि कबूतर की वास्तविक पोजीशन क्या है? वह जानता है कि उसका कबूतर चाहे जितना भी उँचा उड़ ले मगर बैठेगा अपने ही "अड्डे" पर। (अड्डा उसको कहते हैं जो कबूतरबाज द्वारा अपनी छत पर दो खड़े बांसों पर दो बेड़े बांस बाँध कर खड़ा किया गया होता है जिस पर कबूतर बैठते हैं।) वापस आकार बैठता भी अपने अड्डे पर है। कभी कभी अपने साथ किसी अन्य आकाशबन्द कबूतर को भी साथ लेकर उड़ता दिखायी देता है। जब कभी कबूतर मालिक को अपने कबूतर के साथ दूसरे कबूतर को उड़ते देखता है तो अपने कबूतर व साथ उड़ रहे कबूतर का ध्यान आकर्षित करने के लिये अपने अन्य कबूतरों को भी दरबे से बाहर निकाल कर अपनी छत पर लगे अड्डे पर अन्य कबूतरों को बैठा देता है। जमीन पर दाना पानी डालता है। (इस प्रक्रिया को "भड़ी मारना" कहते हैं जो नये कबूतर को बहकाने के लिये किया जाता है।) अक्सर ऐसा होता है कि साथ उड़ रहा कबूतर इस "भड़ी" में फंस कर अपना अड्डा छोड़कर नये साथी कबूतर के अड्डे पर बैठ जाता है। थोड़ी देर अलग अलग हिकमत से अड्डे का मालिक जमीन पर उतार ही लेता है कबूतर को। अगर कोई हिकमत ना काम आ रही हो तो इस नये कबूतर के पंख पर लग्गी की सहायता से "लासा" मार देता है। (लासा एक प्रकार का लसलसा पदार्थ होता है जो कबूतरबाज गुड़ या शक्कर से बनाते हैं) जब कबूतर के पंख पर लासा लग जाता है तो पंख चिपक जाते हैं और कबूतर चाह कर भी उड़ नहीं पाता है। उड़ने की कोशिश भी करे तो जमीन पर गिर जाता है। जमीन पर कबूतर आने के बाद कबूतर मालिक के हाथों में आ जाता है। इसके बाद मालिक इस नये कबूतर का पंख काट कर दरबे में डाल देता है। अब तक कबूतर को असलियत समझ में तो आ गयी होती है कि जिस ऊँचे अड्डे और दाना पानी को देखकर अपने नये साथी कबूतर के अड्डे पर उतर गया, उसकी असलियत क्या है। मगर अब तो उसके पंख भी काट दिये गये। एक दो दिन तक दाना पानी भी नहीं खाता है। साथ में बन्द पुराने कबूतर उसके साथ मार काट भी करते रहते हैं। इस मार काट के वक्त वह पुराना कबूतर जिसके साथ वह इस नये अड्डे पर उतरा है, अलग बैठ कर आंख बन्द करके उड़ान की थकान उतार रहा होता है। दो चार दिन बाद उसी घर में दाना पानी लेने ही लगता है। इस बीच अड्डे का मालिक किसी मादा/नर कबूतर के साथ उसका जोड़ा भी बना देता है। महीनों बाद जब तक इस नये कबूतर के पंख उड़ने लायक होते हैं तब तक उसके दरबे में एक जोड़ी अण्डा भी हो जाता है। अब पंख मिले तो अंडों की वजह से भी अपने पुराने घर वापस नहीं जा पाता है। एक दो महीने बाद वह भी इसी अड्डे से उड़कर आकाशबन्द होता है। मौका मिलते ही किसी नये नये आकाशबन्द हुए कबूतर को भी अपने साथ इसी नये अड्डे पर उतार देता है। दूसरे कबूतर द्वारा लाये गये नये कबूतर को डराने के लिये दरबे में मार काट करता है। आप और आपके बच्चे भी एक कबूतर हैं।नये वाले कबूतर। आपके आस पास खुरार्ट कबूतर/ कबुतरियां उड़ रही हैं। अपने अड्डे को पहिचाने रहिये। अपने अड्डे के प्रति प्रतिबद्ध रहिये। क्योंकि जावेद अख्तर खूब ऊचा उड़ा,लंबे समय तक आकाशबन्द रहा।मगर उतरा अपने ही अड्डे पर। राहत इंदौरी भी आकाशबन्द रहा,मगर उतरा अपने ही अड्डे पर। मुफ्ती मोहम्मद सईद भी ठीक समय पर अपने अड्डे पर ही उतरा। हामिद अंसारी तो दूसरों के अड्डे वाले ना जाने कितने कबूतरों को ठिकाने लगाने के बाद उतरा अपने ही अड्डे पर। इन्हीं खुरार्ट कबूतरों के साथ कुछ कबूतर/कबुतरियां भी उनके अड्डे पर उतर गये। अभी अभी भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी भी लंबे समय से आकाशबन्दी के बाद उतर गये हैं अपने अड्डे पर। लम्बी लिस्ट है और लम्बी ही होती जानी है। बस आप अपने आपको मजबूत रखें और अपने बच्चों को अपना अड्डा बखूबी पहचानना सिखायें ! Pavan Kumar Sharma.