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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:44 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
'तुम तो ठहरे परदेसी, प्रीत क्या निभाओगे' मेरी इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले इस बह्र में लिखे एवं गाये गये इस फ़िल्मी गाने को आप एक बार मन ही मन गुनगुना लें,आप मेरी ग़ज़ल का सही आनंद उठा सकेंगे! दोस्तो,मैं अंजुमन टीम को ज़ाती तौर पर इस बात की बधाई देता हूँ कि उन्होंने इस बार के अंजुमन मुशायरे के लिए इस बह्र का चुनाव किया! इस बह्र में मैंने एकाध ग़ज़ल कही है,बस!दिल कभी माइल नहीं हुआ इसकी जानिब!मगर जब मैंने कल देखा कि यही बह्र दी गई है इस बार की मश्क़-ए-सुख़न के लिए,तो मैंने ये फ़ैसला किया कि मैं भी इस बह्र में कुछ लिखूँगा!नतीजा ये हुआ कि आज सुब्ह उठते ही लिखने का काम शुरू हो गया और फ़ौरी तौर पर ये ग़ज़ल'अंजुमन'की बज़्म में पेश है! बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- ग़ज़ल:- हर तरफ़ मरारत है,हर तरफ़ उदासी है ज़िन्दगी किसी की हो,फ़रहतों की प्यासी है//1 जिसने दी तुम्हें हस्ती जिसने दीं तुम्हें साँसें उस का शुक्रिया करना कार-ए-हक़-शनासी है//2 करना पड़ता है पर्दा देखने ही वालों को आजकल की औरत में कितनी कम-लिबासी है//3 तुमसे यार मजनूँ की क्या कहें हिकायत हम आज के समय में भी जंगलों का बासी है//4 हश्र है पता हमको सोहबत-ए-बुताँ का पर ख़ुश हमेशा रहते हैं,ख़ू-ए-ख़ुश-कयासी है//5 क्या रखें तवक़्क़ो,हम'Maahir'ब्याह करने की जिससे प्यार करते हैं वो तो देवदासी है//6 'Maahir' मरारत-कड़वाहट,कटुता,कड़वा पन,तल्ख़ी ज़ीस्त-जीवन फ़रहतों की प्यासी-ख़ुशी/प्रसन्नता की प्यासी हस्ती-अस्तित्व,जीवन हक़-शनासी-जिसका जो हक़ निकलता हो खुशी से इसे स्वीकार करना,सत्य को पहचानना,ईश्वर को पहचानना,कृतज्ञता,शुक्रगुज़ारी कम-लिबासी-कम कपड़े पहनना हिकायत-किसी दिलचस्प घटना का विवरण,कथा,कहानी,क़िस्सा,दास्तान,मिथक हश्र- अंत,नतीजा,परिणाम,क़यामत का दिन सोहबत-ए-बुताँ-सुंदरियों का साहचर्य ख़ू-आदत ख़ुश-कयासी- good,right estimate,guess,अच्छे की उम्मीद करना तवक़्क़ो-इच्छा,अभिलाषा आशा,आस,भरोसा,उम्मीद देवदासी-प्रभु प्रेम में मंदिर में नाचने वाली नर्तकी
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