skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
8:09 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- तू हुलिया देख के कमतर समझ रहा है जिसे वो इक नगीना है, पत्थर समझ रहा है जिसे //1 तू उसको देख फ़रिश्ते की आँख से ऐ दोस्त वो हमसे अच्छा है, बंदर समझ रहा है जिसे //2 अमीरी और ग़रीबी की शादी का है फल है उसकी बीवी तू दुख़्तर समझ रहा है जिसे //3 है गिर्द-ओ-पेश में उसके भी झाड़ काँटों की तू सिर्फ़ फूल की झालर समझ रहा है जिसे //4 जहाँ मैं रहता हूँ उसकी ज़ियारतों के लिए दयार-ए-ग़म है, मेरा घर समझ रहा है जिसे //5 हँसा हँसा के वो करता है सबके ग़म का इलाज है सच में हीरो तू जोकर समझ रहा है जिसे //6 हयात अपने ही कर्मों का आइना है'maahir' तेरा किया है, मुक़द्दर समझ रहा है जिसे //7 تو حلیہ دیکھ کے کمتر سمجھ رہا ہے جسے وہ اک نگینہ ہے، پتھر سمجھ رہا ہے جسے //1 تو اسکو دیکھ فرشتے کی آنکھ سے اے دوست وہ ہم سے اچھا ہے، بندر سمجھ رہا ہے جسے //2 امیری اور غریبی کی شادی کا ہے پھل ہے اسکی بیوی تو دختر سمجھ رہا ہے جسے //3 ہے گرد وپیش میں اسکے بھی جھاڑ کانٹوں کی تو صرف پھول کی جھالر سمجھ رہا ہے جسے //4 جہاں میں رہتا ہوں، اسکی زیارتوں کے لیے دیار غم ہے، میرا گھر سمجھ رہا ہے جسے //5 ہنسا ہنسا کے وہ کرتا ہے سب کے غم کا علاج ہے سچ میں ہیرو تو جوکر سمجھ رہا ہے جسے //6 حیات اپنے ہی کرموں کا آئنہ ہے 'راز' تیرا کیا ہے، مکدر سمجھ رہا ہے جسے //7 'Maahir' हुलिया- मुखाकृति, चेहरा, शक्लो सूरत दुख़्तर- बेटी, कन्या, पुत्री ज़ियारत- दीदार, दर्शन, मुलाक़ात (किसी आदर योग्य व्यक्तित्व से) दयार-ए-ग़म- दुख का गृह गिर्द-ओ-पेश- आसपास, चारों ओर, क़रीब में सोज़-ए-हिज्र का ऐवाँ- वियोग के जलन का महल हयात- जीवन, ज़िंदगी
![]() |
Post a Comment