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Anjuman Tarhi Mushaira(Ghazal-101)

ग़ज़ल दोस्तो, अपनी 950वीं ग़ज़ल आप सबों के सामने पेश करते हुए मुझे बेहद ख़ुशी हो रही है. हस्ब-ए-मामूल ये ग़ज़ल ग़ालिब साहब की ज़मीन पर कही गई है (मैंने अपनी हर 50 वीं ग़ज़ल उनकी ज़मीन पर कही है); उनकी ग़ज़ल भी इस पोस्ट के साथ दी गई है. ग़ालिब साहब ने अपनी ग़ज़ल में 8 अशआर कहे हैं,मैंने क़ाफ़िर क़ाफ़िये को छोड़कर ग़ालिब साहिब की ग़ज़ल में प्रयुक्त सभी क़वाफ़ी पर अशआर कहे हैं,जिनका शेर क्रमांक 7 से लेकर 15 तक है,शेर क्रमांक 1 से लेकर 6 तक के अशआर में मैंने अपने क़वाफ़ी का प्रयोग किया है! क़ाफ़िर क़ाफ़िये पर मैंने कोई शेर इसलिए नहीं बाँधा क्योंकि क़ाफ़र कहने पर ही इसकी तुक ग़ज़ल में प्रयुक्त क़वाफ़ी की तुक अर से मिलेगी,अन्यथा नहीं! पिछले ज़माने में क़ाफ़िर को क़ाफ़र कहते होंगे शायद,मगर वर्तमान में तो ऐसा नहीं कहते हैं,इसलिए मैंने इस पर कोई शेर नहीं बाँधा! आप मिर्ज़ा ग़ालिब और मेरी दोनों ही ग़ज़लों का लुत्फ़ उठाएं,अर्ज़ किया है- तू बर्ग-ए-गुल है तो दम-ए-ख़ंजर नहीं हूँ मैं अर्ज़-ए-वफ़ा पे चर्ख़-ए-सितमगर नहीं हूँ मैं//1 दीवार-ओ-दर पे कर्ब का साया हो जिस जगह माज़ी के टूटे इश्क़ का वो घर नहीं हूँ मैं//2 मुझसे न पूछ लापता उश्शाक़ के मकान ख़ुद ढूंढता हूँ रास्ता,रहबर नहीं हूँ मैं//3 दिल कैसे उसका जीत लूँ माइल नहीं है जो इंसान हूँ हक़ीर,फ़ुसूँगर नहीं हूँ मैं//4 आज़ाद हूँ परिंदा वो गर्दूँ है जिसका घर क़ाएम हो जिसकी छत वो कबूतर नहीं हूँ मैं//5 यारो है शाइरी मेरी अहद-ए-क़दीम की राहत,वसीम,या कि मुनव्वर नहीं हूँ मैं//6 क्यूँ चुन रहा है तू मुझे दीवार-ए-हिज्र में कंकड़ या रेग,ईंट या पत्थर नहीं हूँ मैं//7 जम्हूरियत का भूत यूँ चढ़ने लगा है सर नौकर भी कहने लग गए नौकर नहीं हूँ मैं//8 क्यों ढूंढ़ता है मुझमें तू जन्नत की ताज़गी दर्या हूँ अर्ज़-ए-ग़ुब्र में, कौसर नहीं हूँ मैं//9 शाइर बड़ा हूँ या कि मैं छोटा नहीं पता है बात ये कि तेरे बराबर नहीं हूँ मैं//10 'पैसे के ही जुगाड़ में बाहर गया है वो' क़ारिज़ से मेरे कह दो कि घर पर नहीं हूँ मैं//11 'ग़ालिब' भी आये लौट के गर्चे कहा था 'maahir' "लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं"//12 इतनी लगावटें न रख मुझसे ऐ मेरे दोस्त जिसमें हो ख़म्र-ए-इश्क़ वो साग़र नहीं हूँ मैं//13 पाबंद गर्चे रस्म-ओ-क़वा'इद का मैं नहीं हो बात इल्म-ए-दीं की तो कमतर नहीं हूँ मैं//14 मुझमें तमाम नुक़्स हैं ज़िंदा बशर के 'Maahir' कोई नगीना या कोई गौहर नहीं हूँ मैं//15 'Maahir' تو برگ گل ہے تو دم خنجر نہیں ہوں، میں عرض وفا پے چرخ ستمگر نہیں ہوں، میں //1 دیوار ودر پے کرب کا سایا ہو جس جگہ ماضی کے ٹوٹے عشق کا وہ گھر نہیں ہوں، میں //2 مجھ سے نہ پوچھ لاپتہ عشاق کے مکان خود ڈھونڈتا ہوں، راستا، رہبر نہیں ہوں، میں //3 دل کیسے اسکا جیت لوں مائل نہیں ہے جو انسان ہوں، حقیر، فسونگر نہیں ہوں، میں //4 آزاد ہوں، پرندہ وہ گردوں ہے جس کا گھر قائم ہو جسکی چھت وہ کبوتر نہیں ہوں، میں //5 یارو ہے شاعری میری 'احد قدیم کی راحت، وسیم، یا کہ منور نہیں ہوں، میں //6 کیوں چن رہا ہے تو مجھے دیوار ہجر میں کنکڑ یا ریگ، اینٹ یا پتھر نہیں ہوں، میں //7 جمہوریت کا بھوت یوں چڑھنے لگا ہے سر نوکر بھی کہنے لگ گئے نوکر نہیں ہوں، میں //8 کیوں ڈھونڑھتا ہے مجھ میں تو جنت کی تازگی دریا ہوں، عرض غبر میں، کوثر نہیں ہوں، میں //9 شاعر بڑا ہوں، یا کہ میں چھوٹا نہیں پتہ ہے بات یہ کہ تیرے برابر نہیں ہوں، میں //10 'پیسے کے ہی جگاڑ میں باہر گیا ہے وہ' کارض سے میرے کہہ دو کہ گھر پر نہیں ہوں، میں //11 'غالب' بھی آئے لوٹ کے گرچے کہا تھا 'راز' "لوح جہاں پے حرف مقرر نہیں ہوں، میں" //12 اتنی لگاوٹیں نہ رکھ مجھ سے اے میرے دوست جسمیں ہو خمر عشق وہ ساغر نہیں ہوں، میں //13 پابند گرچے رسم وقویٰ'اد کا میں نہیں ہو بات علم دیں کی تو کمتر نہیں ہوں، میں //14 مجھ میں تمام نقص ہیں زندہ بشر کے 'راز' کوئی نگینہ یا کوئی گوھر نہیں ہوں، میں //15 'Maahir' बर्ग-ए-गुल-गुलाब की पंखड़ी,फूल की पंखुड़ियाँ (लाक्षणिक)प्रेमिका के होंट दम-ए-ख़ंजर-ख़ंजर की धार,(लाक्षणिक)कठिनाई,मुश्किल,दुख,मुसीबत अर्ज़-ए-वफ़ा-वफ़ा रूपी पृथ्वी चर्ख़-ए-सितमगर-अत्याचारी रूपी आकाश दीवार-ओ-दर-घर का अहाता,चारदीवारी,घेराबंदी,प्रतीकात्मक:घर,मकान,निवासस्थान कर्ब-दुख,दर्द,रंज,पीड़ा माज़ी-अतीत,पास्ट,गुज़रा हुआ कल लापता उश्शाक़ के मकान-खोए हुए आशिकों के घर रहबर-मार्गदर्शक,पथ प्रदर्शक,राह दिखाने वाला माइल-आकृष्ट,दीवाना,मोहित हक़ीर-बहुत ही कम,तुच्छ;हेय,क्षुद्र,बहुत थोड़ा,छोटा,अदना,मामूली,ग़ैर अहम फ़ुसूँगर-जादूगर परिंदा-पक्षी,पंछी,चिड़िया गर्दूँ-आसमान,व्योम अहद-ए-क़दीम-प्राचीन काल या युग,भूतकाल,पुराना ज़माना,पिछला दौर क़ाएम-नियत,निश्चित,लगा हुआ,किसी नियत स्थान पर टिका या ठहरा हुआ,अपनी जगह पर रहना,दृढ़, मजबूत, पायदार,स्थायी,टिकाऊ,बरक़रार,जो स्थापित हो,स्थिर,यथावत,शेष दीवार-ए-हिज्र-वियोग की दीवार रेग-रेत,बालू जम्हूरियत-लोकतंत्र,गणतन्त्र,जनतंत्र,प्रजातंत्र,जमहूरी हुकूमत दर्या- नदी अर्ज़-ए-ग़ुब्र-dusty tract of land,धूल भरी ज़मीन कौसर-स्वर्ग के एक कुंड,हौज़ या नहर का नाम (साहित्य में संकेतित प्रसंग के तौर पर प्रयुक्त),कौसर का पानी क़ारिज़-उधार देनेवाला,उत्तमर्ण,क़र्ज देनेवाला,ऋणदाता लौह-ए-जहाँ-संसार रूपी तख़्ती हर्फ़-ए-मुकर्रर-दुबारा आया हुआ शब्द,दो बार कही हुई बात लगावट-लगाव,संबंध प्रेमिका की दिल को लुभाने वाली बातें,प्रेम-भाव के साथ अपनी ओर आकर्षित करने वाले नखरे,प्रेम,चाहत ख़म्र-ए-इश्क़-प्रेम की शराब साग़र-शराब का प्याला पाबंद-किसी नियम,वचन,समय या सिद्धांत आदि का पूर्ण रूप से पालन करने वाला या मानने वाला,अनुशासन-प्रिय गर्चे-यद्यपि रस्म-प्रथा,चाल,चलन,प्रचलन,रीति,परिपाटी क़वा'इद-उसूल,किसी काम को करने की युक्ति,विधान,नियम,व्याकरण,सर्फ़-ओ-नहव इल्म-ए-दीं-धर्म का ज्ञान कमतर-अल्पतर,बहुत थोड़ा अथवा निम्न स्तरीय(तुलनात्मक)स्तर या पद-प्रतिष्ठा इत्यादि में छोटा या थोड़ा हीन तमाम नुक़्स-सभी त्रुटियाँ ज़िंदा बशर-ज़िंदा आदमी नगीना-नग,रत्न,मणि,जवाहर,बहुमूल्य पत्थर,अँगूठी पर जड़ा जाने वाला पत्थर गौहर-मोती,रत्न,बहुमूल्य पत्थर मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब की ग़ज़ल ------------------------- दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं//1 क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल इंसान हूँ पियाला ओ साग़र नहीं हूँ मैं//2 या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुकर्रर नहीं हूँ मैं//3 हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते आख़िर गुनाहगार हूँ काफ़र नहीं हूँ मैं//4 किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे लअ'ल ओ ज़मुर्रद ओ ज़र ओ गौहर नहीं हूँ मैं//5 रखते हो तुम क़दम मिरी आँखों से क्यूँ दरेग़ रुत्बे में महर-ओ-माह से कम-तर नहीं हूँ मैं//6 करते हो मुझ को मनअ-ए-क़दम-बोस किस लिए क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं//7 'ग़ालिब'वज़ीफ़ा-ख़्वार हो दो शाह को दुआ वो दिन गए कि कहते थे नौकर नहीं हूँ मैं//8 मिर्ज़ा ग़ालिब मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब की ग़ज़ल का रेख़्ता लिंक- https://www.rekhta.org/ghazals/daaim-padaa-huaa-tire-dar-par-nahiin-huun-main-mirza-ghalib-ghazals?lang=hi Pavan Sharma 14:58 (3 hours ago) to pavansharma1956

Anjuman Tarahi Mushaira(Ghazal-100)

ग़ज़ल दोस्तो,मुझे ठीक-ठीक याद नहीं है मैंने यह ग़ज़ल कितने समय पहले लिखी थी!परसों जब मैं बंदर और तोते के एक बहुत ही प्यारे वीडियो को पोस्ट कर रहा था,और साथ में पोस्ट करने के लिए अपनी ग़ज़लों में से बंदर पर लिखा कोई शेर ढूंढ रहा था,तब मुझे मेरे ग़ज़ल-आर्काइव से यह ग़ज़ल मिली!कल मैंने इस ग़ज़ल पर थोड़ा काम किया और अब आप सबों की नज़्र कर रहा हूँ! बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- तू हुलिया देख के कमतर समझ रहा है जिसे वो इक नगीना है,पत्थर समझ रहा है जिसे//1 तू उसको देख फ़रिश्ते की आँख से ऐ दोस्त वो हमसे अच्छा है,बंदर समझ रहा है जिसे//2 अमीरी और ग़रीबी की शादी का है फल है उसकी बीवी तू दुख़्तर समझ रहा है जिसे//3 है गिर्द-ओ-पेश में उसके भी झाड़ काँटों की तू सिर्फ़ फूल की झालर समझ रहा है जिसे//4 जहाँ मैं रहता हूँ उसकी ज़ियारतों के लिए दयार-ए-ग़म है,मेरा घर समझ रहा है जिसे//5 हँसा हँसा के वो करता है सबके ग़म का इलाज है सच में हीरो तू जोकर समझ रहा है जिसे//6 हयात अपने ही कर्मों का आइना है 'Maahir' तेरा किया है,मुक़द्दर समझ रहा है जिसे//7 تو حلیہ دیکھ کے کمتر سمجھ رہا ہے جسے وہ اک نگینہ ہے، پتھر سمجھ رہا ہے جسے //1 تو اسکو دیکھ فرشتے کی آنکھ سے اے دوست وہ ہم سے اچھا ہے، بندر سمجھ رہا ہے جسے //2 امیری اور غریبی کی شادی کا ہے پھل ہے اسکی بیوی تو دختر سمجھ رہا ہے جسے //3 ہے گرد وپیش میں اسکے بھی جھاڑ کانٹوں کی تو صرف پھول کی جھالر سمجھ رہا ہے جسے //4 جہاں میں رہتا ہوں، اسکی زیارتوں کے لیے دیار غم ہے، میرا گھر سمجھ رہا ہے جسے //5 ہنسا ہنسا کے وہ کرتا ہے سب کے غم کا علاج ہے سچ میں ہیرو تو جوکر سمجھ رہا ہے جسے //6 حیات اپنے ہی کرموں کا آئنہ ہے 'راز' تیرا کیا ہے، مکدر سمجھ رہا ہے جسے //7 'Maahir' हुलिया-मुखाकृति,चेहरा,शक्लो सूरत दुख़्तर-बेटी,कन्या,पुत्री ज़ियारत-दीदार,दर्शन,मुलाक़ात(किसी आदर योग्य व्यक्तित्व से) दयार-ए-ग़म-दुख का गृह गिर्द-ओ-पेश-आसपास,चारों-ओर,क़रीब में सोज़-ए-हिज्र का ऐवाँ-वियोग के जलन का महल हयात-जीवन,ज़िंदगी

Anjuman, Tarhi Mushaira(Ghazal-99)

दोस्तो,पेश-ए-ख़िदमत है एक नयी ग़ज़ल, अर्ज़ किया है- अब नहीं कुछ रखा कहानी में हो गयी हर ख़ता जवानी में//1 वो ही जीतेगा जलपरी का दिल जो लगाएगा आग पानी में//2 वो मणीपुर की,और मगध का मैं था यही मसअला कहानी में//3 हो चुके हैं चुनाव,रहने दो कौन जाता है गाँव ढाणी में//4 मुझको सुन लो ब गोश-ए-ख़ामोशी मुंकशिफ़ हूँ मैं बेज़ुबानी में//5 हम यूँ रहते हैं इश्क़ में डूबे जैसे रहता है माही पानी में//6 गिर गयी मुंतख़ब सरकार गहमागहमी है राजधानी में//7 اب نہیں کچھ رکھا کہانی میں ہو گئی ہر خطا جوانی میں //1 وہ ہی جیتیگا جل پری کا دل جو لگائیگا آگ پانی میں //2 وہ منیپر کی، اور مگدھ کا میں تھا یہی مسئلہ کہانی میں //3 ہو چکے ہیں چناؤ، رہنے دو کون جاتا ہے گاؤں ڈھانی میں //4 مجھ کو سن لو بہ گوش خاموشی منکشف ہوں، میں بیزبانی میں //5 ہم یوں رہتے ہیں عشق میں ڈوبے جیسے رہتا ہے ماہی پانی میں //6 گر گئی 'راز' منتخب سرکار گہماگہمی ہے راجدھانی میں //7 'Maahir'(collected by) ख़ता-चूक,ग़लती,जुर्म,अपराध,दोष,पाप,भूल,त्रुटि मणीपुर-मणिपुर,पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य मगध-बिहार का एक पुराना अंचल जहाँ मैं पैदा हुआ मसअला-कोई भी मुद्दा जो कार्रवाई या समाधान चाहता है,समस्या ब गोश-ए-ख़ामोशी-मौन के कान से मुनकशिफ़-प्रकट,व्यक्त,ज़ाहिर,खुलने वाला,खुला हुआ बेज़ुबानी-चुप रहना,कोई शिकायतआदि न करना माही-मछली,मत्स्य,मीन मुंतख़ब-चुनाव जीतने वाला,चुना हुआ,चयनित,निर्वाचित चहल पहल,गर्म बाजारी,रौनक,धूमधाम गहमा-गहमी-भीड़ भाड़,काँटे का टक्कर,मार-काट,जोश-ओ-ख़रोश

Anjuman Tarhi Mushaira(Ghazal-98)

'तुम तो ठहरे परदेसी, प्रीत क्या निभाओगे' मेरी इस ग़ज़ल को पढ़ने से पहले इस बह्र में लिखे एवं गाये गये इस फ़िल्मी गाने को आप एक बार मन ही मन गुनगुना लें,आप मेरी ग़ज़ल का सही आनंद उठा सकेंगे! दोस्तो,मैं अंजुमन टीम को ज़ाती तौर पर इस बात की बधाई देता हूँ कि उन्होंने इस बार के अंजुमन मुशायरे के लिए इस बह्र का चुनाव किया! इस बह्र में मैंने एकाध ग़ज़ल कही है,बस!दिल कभी माइल नहीं हुआ इसकी जानिब!मगर जब मैंने कल देखा कि यही बह्र दी गई है इस बार की मश्क़-ए-सुख़न के लिए,तो मैंने ये फ़ैसला किया कि मैं भी इस बह्र में कुछ लिखूँगा!नतीजा ये हुआ कि आज सुब्ह उठते ही लिखने का काम शुरू हो गया और फ़ौरी तौर पर ये ग़ज़ल'अंजुमन'की बज़्म में पेश है! बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- ग़ज़ल:- हर तरफ़ मरारत है,हर तरफ़ उदासी है ज़िन्दगी किसी की हो,फ़रहतों की प्यासी है//1 जिसने दी तुम्हें हस्ती जिसने दीं तुम्हें साँसें उस का शुक्रिया करना कार-ए-हक़-शनासी है//2 करना पड़ता है पर्दा देखने ही वालों को आजकल की औरत में कितनी कम-लिबासी है//3 तुमसे यार मजनूँ की क्या कहें हिकायत हम आज के समय में भी जंगलों का बासी है//4 हश्र है पता हमको सोहबत-ए-बुताँ का पर ख़ुश हमेशा रहते हैं,ख़ू-ए-ख़ुश-कयासी है//5 क्या रखें तवक़्क़ो,हम'Maahir'ब्याह करने की जिससे प्यार करते हैं वो तो देवदासी है//6 'Maahir' मरारत-कड़वाहट,कटुता,कड़वा पन,तल्ख़ी ज़ीस्त-जीवन फ़रहतों की प्यासी-ख़ुशी/प्रसन्नता की प्यासी हस्ती-अस्तित्व,जीवन हक़-शनासी-जिसका जो हक़ निकलता हो खुशी से इसे स्वीकार करना,सत्य को पहचानना,ईश्वर को पहचानना,कृतज्ञता,शुक्रगुज़ारी कम-लिबासी-कम कपड़े पहनना हिकायत-किसी दिलचस्प घटना का विवरण,कथा,कहानी,क़िस्सा,दास्तान,मिथक हश्र- अंत,नतीजा,परिणाम,क़यामत का दिन सोहबत-ए-बुताँ-सुंदरियों का साहचर्य ख़ू-आदत ख़ुश-कयासी- good,right estimate,guess,अच्छे की उम्मीद करना तवक़्क़ो-इच्छा,अभिलाषा आशा,आस,भरोसा,उम्मीद देवदासी-प्रभु प्रेम में मंदिर में नाचने वाली नर्तकी

Ghazal-97

ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें दिलों में उल्फ़त नई नई है, अभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तुगू में अभी मोहब्बत नई-नई है!! अभी न आएगी नींद तुम को अभी न हम को सुकूँ मिलेगा, अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा अभी ये चाहत नई-नई है!! बहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँ, फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई-नई है!! जो ख़ानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना, तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई-नई है!! ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा कि आ के बैठे हो पहली सफ़ में, अभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई-नई है!! बमों की बरसात हो रही है पुराने जाँबाज़ सो रहे हैं, ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिस की ताक़त नई-नई है!! 'Maahir'

Ramayan Choupais For Different Purposes

तुलसीदास जी ने जब रामचरित मानस की रचना की, तब उनसे किसी ने पूंछा कि बाबा!आप ने इसका नाम रामायण क्यों नहीं रखा?क्योकि इसका नाम रामायण ही है,बस आगे पीछे नाम लगा देते है,वाल्मीकि रामायण,आध्यात्मिक रामायण!आपने रामचरित मानस ही क्यों नाम रखा? बाबा ने कहा-क्योकि रामायण और राम चरित मानस में एक बहुत बड़ा अंतर है।रामायण का अर्थ है राम का मंदिर,राम का घर,जब हम मंदिर जाते है तो एक समय पर जाना होता है,मंदिर जाने के लिए नहाना पडता है,जब मंदिर जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल,फल साथ लेकर जाना होता है।मंदिर जाने कि शर्त होती है,मंदिर साफ सुथरा होकर जाया जाता है! और मानस अर्थात सरोवर,सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती,समय की पाबंधी नहीं होती,जाति का भेद नहीं होता कि केवल हिंदू ही सरोवर में स्नान कर सकता है,कोई भी हो,कैसा भी हो? और व्यक्ति जब मैला होता है,गन्दा होता है तभी सरोवर में स्नान करने जाता है!माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है। रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है। इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करें प्रभु श्रीराम आप के जीवन को सुखमय बना देगे। 1.रक्षा के लिए- मामभिरक्षक रघुकुल नायक । घृत वर चाप रुचिर कर सायक ।। 2.विपत्ति दूर करने के लिए- राजिव नयन धरे धनु सायक । भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ।। 3.सहायता के लिए- मोरे हित हरि सम नहि कोऊ । एहि अवसर सहाय सोई होऊ ।। 4.सब काम बनाने के लिए- वंदौ बाल रुप सोई रामू । सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ।। 5.वश मे करने के लिए- सुमिर पवन सुत पावन नामू । अपने वश कर राखे राम ।। 6.संकट से बचने के लिए- दीन दयालु विरद संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। 7.विघ्न विनाश के लिए- सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही। राम सुकृपा बिलोकहि जेहि।। 8.रोग विनाश के लिए- राम कृपा नाशहि सव रोगा। जो यहि भाँति बनहि संयोगा।। 9.ज्वर ताप दूर करने के लिए- दैहिक दैविक भोतिक तापा। राम राज्य नहि काहुहि व्यापा।। 10.दुःख नाश के लिए- राम भक्ति मणि उस बस जाके। दुःख लवलेस न सपनेहु ताके।। 11.खोई चीज पाने के लिए- गई बहोरि गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।। 12.अनुराग बढाने के लिए- सीता राम चरण रत मोरे। अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे।। 13.घर मे सुख लाने के लिए- जै सकाम नर सुनहि जे गावहि। सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं।। 14.सुधार करने के लिए- मोहि सुधारहि सोई सब भाँती। जासु कृपा नहि कृपा अघाती।। 15.विद्या पाने के लिए- गुरू गृह पढन गए रघुराई। अल्प काल विधा सब आई।। 16.सरस्वती निवास के लिए- जेहि पर कृपा करहि जन जानी। कवि उर अजिर नचावहि बानी।। 17.निर्मल बुद्धि के लिए- ताके युग पदं कमल मनाऊँ। जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ।। 18.मोह नाश के लिए- होय विवेक मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरण अनुरागा।। 19.प्रेम बढाने के लिए- सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती।। 20.प्रीति बढाने के लिए- बैर न कर काह सन कोई। जासन बैर प्रीति कर सोई।। 21.सुख प्रप्ति के लिए- अनुजन संयुत भोजन करही। देखि सकल जननी सुख भरहीं।। 22.भाई का प्रेम पाने के लिए- सेवाहि सानुकूल सब भाई। राम चरण रति अति अधिकाई।। 23.बैर दूर करने के लिए- बैर न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।। 24.मेल कराने के लिए- गरल सुधा रिपु करही मिलाई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। 25.शत्रु नाश के लिए- जाके सुमिरन ते रिपु नासा। नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा।। 26.रोजगार पाने के लिए- विश्व भरण पोषण करि जोई। ताकर नाम भरत अस होई।। 27.इच्छा पूरी करने के लिए- राम सदा सेवक रूचि राखी। वेद पुराण साधु सुर साखी।। 28.पाप विनाश के लिए- पापी जाकर नाम सुमिरहीं। अति अपार भव भवसागर तरहीं।। 29.अल्प मृत्यु न होने के लिए- अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा। सब सुन्दर सब निरूज शरीरा।। 30.दरिद्रता दूर के लिए- नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना। नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना।। 31.प्रभु दर्शन पाने के लिए- अतिशय प्रीति देख रघुवीरा । प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ।। 32.शोक दूर करने के लिए- नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी । आए जन्म फल होहिं विशोकी ।। 33.क्षमा माँगने के लिए- अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता । क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ।। इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए और जो शुद्ध होना चाहते है वे राम चरित मानस में आ जाए।रामकथा जीवन के दोष मिटाती है। "रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा।" गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस राम दर्शन की,राम मिलन की सीढी है,जिसके प्रथम डंडे पर पैर रखते ही श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन होने लगते है,अर्थात यदि कोई बालकाण्ड ही पढ़ ले,तो उसे राम जी का दर्शन हो जायेगा। "सत्य है,शिव हैऔर सुन्दर है" जय सियाराम Pavan Kumar Sharma.

Ghazal-96

हिज्र में दिन भी बरस हो जैसे दिल की वादी में उमस हो जैसे/1 हाय ! करती ही नहीं मुझको रिहा तेरी हर याद क़फ़स हो जैसे/2 चूम कर होंठ तेरे ऐसा लगा तल्ख़ जीवन भी सरस हो जैसे/3 मुझ से दिल उलझे यूं तेरी ख़ातिर इस पे अब तेरा ही बस हो जैसे/4 उसकी फ़ुर्क़त में तड़पती हूं यूं मैं बदन औ'र वो नफ़स हो जैसे/5 मंज़िलों पर भी कहां है तस्कीन यहां हर शय ही अबस हो जैसे/6 "Maahir"जल रही है हसरत यूं क़ल्ब में आतिश-ए-ख़स हो जैसे/7 'Maahir' उमस=humidity,घुटन भरी गरमी क़फ़स=पिंजरा अबस=व्यर्थ क़ल्ब=दिल आतिश-ए-ख़स=सूखी घास को

Chand Ashaar

प्रस्तुत हैं कुछ और मुतफ़र्रिक शेर- ध्यान देना है ज़मीनी असलियत पर अब, ज़िन्दगी किसको मिली है आसमानों में ? दूल्हे-बाराती सभी करके सुनिश्चित, वो बजाने को हमें बस ढोल देंगे। क्यूँ क़यामत के मुझे तुम, अद्ल से बहका रहे, ज़िन्दगी में भी,गुनाहों की सज़ा है दोस्तो। रंग-रोगन से बहुत दिन दिल बहल सकता नहीं, मान्यवर, कुछ सादगी से दिल लगा के देखिए। ज़िन्दगी की जुस्तजू में,आ गई जाने किधर ? पत्थरों के जंगलों में,आदमी ढूँढे, नज़र। खोजता रब को रहा बाहर ही,जो, ख़ुद को धोख़ा दे रहा वो दोस्तो। इश्क़ में इन्कार वो करते रहे, नासमझ,उनका इशारा और है। चाहतों की लौ जलानी चाहिए, ज़िंदगी की लौ बचाने के लिए। अति सरलता से भी किसको मिल सका ? धान्य-धन जीवन चलाने के लिए।- पारपत्रों पर मिलीं सुविधाएं उनको, दरबदर तो बी पी एल वाले हुए हैं। 'Maahir'(collected by)

Chand Ashaar

प्रस्तुत हैं कुछ और मुतफ़र्रिक शेर- वो हैं सूरज और मैं जुगनू फ़क़त, पर अँधेरों से अदावत है तो है। हो रहा मुझसे हुजूम-ए-ग़म ख़फ़ा, मुस्कुराने की जो आदत है तो है। जुर्म कुछ इस बात पर भी तो हुए, माफ़ करना उसकी आदत है तो है। बात हक़ की ही तो बस कहता हूँ मैं, वो इसे कहते बग़ावत है, तो है। कर चुका लम्हा सनक में इक ख़ता, फिर जो सदियों की मुसीबत है तो है। नासमझ कितने हैं वो जो आज 'शेखर'? लम्हे के आगे सदी को भूलते हैं। सोच पर भी लगा बंद अब दोस्तो, आदमी की कहाँ ज़िन्दगी आ गई। आज मक़्तूल पे जुर्म साबित करे, किस गिरावट पे यह मुंसिफ़ी आ गई। ज़िन्दगी की जुस्तज़ू में,आ गई जाने किधर ? पत्थरों के जंगलों में,आदमी ढूँढे, नज़र। एकअल्हड़ सी मचलती,फिर ठिठकती,दौड़ती, पर्वतों की नद्दियों के नीर सी होती ग़ज़ल! 'Maahir'

Ghazal-95

दोस्तों पेश-ए-ख़िदमत है मेरी लिखी नयी ग़ज़ल!आज सुब्ह मेरी नींद भी नहीं टूटी थी जब इस ग़ज़ल का एक मिसरा मेरे मन में कौंध गया जिस पर पहले मैंने ग़ज़ल का मतला बनाया और फिर पूरी ग़ज़ल कह दी! - मिसरा इस प्रकार है- 'मिलने तू आ जा कभी शाम ढले घर मेरे' पेश है पूरी ग़ज़ल,अर्ज़ किया है- तेरी भी प्यास बुझा देंगे लब-ए-तर मेरे, मिलने तू आ जा कभी शाम ढले घर मेरे//1 मेरा मंज़िल की तशफ़्फ़ी से सरोकार नह,ीं मुझको भटका दे रह-ए-इश्क़ में रहबर मेरे//2 फ़ौक़ियत अब मेरी क़ुनबे में कहाँ बाक़ी रही, हो गये तिफ़्ल भी अब क़द में बराबर मेरे//3 देते हैं उनको तो तनख़्वाह मेरे बच्चे अब, अब मेरी बात कहाँ सुनते हैं नौकर मेरे//4 अब तो 'इरशाद' भी करते नहीं महफ़िल में कभी, लोग जो सुनते थे अशआर मुकर्रर मेरे//5 रह गये लफ़्ज़ मेरे ख़ाली मकानों की तरह, ले गया कौन ख़्यालात चुरा कर मेरे//6 तूने क्या छू दिया चाहत की हरी डाली को, हो गये ग़ुंचा-ए-अहसास मो'अत्तर मेरे//7 करनी होगी तुझे मर कर भी तलाफ़ी इक दिन, कब तलक ख़ुश रहेगा पैसे दबाकर मेरे//8 'Maahir'आएगा पस-ए-मर्ग तेरे मयख़ाने, घूँट दो पीने को ऐ साक़ी-ए-कौसर मेरे//9 'Maahir'

Holi (Kavita)

रंगों के पर्व होली की आप सबको बहुत-बहुत बधाई,हार्दिक शुभकामनाएं। कुमति होलिका जल गई,बचे भक्त प्रह्लाद। नाचें- गायें भक्त सब,छाया मन आल्हाद।। रँग पिचकारी भर लिये,हाथों लीन्ह गुलाल। नर नारी सब खेलते,हुए गुलाबी गाल।। लड्डू फूले बाँटते,गुझिया पपड़ी थाल। ठंडाई भी घुट गई,पीकर करे धमाल।। नमन बड़ों को कीजिए,छोटों से कर प्यार। गले लगायें मीत सब,प्रीत भरा त्योहार।। भेद भाव सब के मिटें,रहें राष्ट्र जन एक। अनुपम छवि हो विश्व में,रखें बिहारी टेक।। 'Paavan Teerth'

Kataat

मुहब्बत को अभी कुछ रोज़ यूं ही रंग लाने दो ! कली को फूल बनने दो चमन को मुस्कुराने दो !! सुना है ख़ुद ब ख़ुद आशिक़ वो हो जायेगा मीना का ! कि मदिरा और छलकने दो नशा भरपूर छाने दो 'Maahir'

Kabootar Baaji

कबूतरबाज जब अपने कबूतरों को उड़ाते हैं तो कुछ कबूतर इतनी ऊँचाई पर चले जाते हैं कि आखों से दिखना बन्द हो जाते हैं। कबूतरबाज इसको आकाशबन्द होना कहते हैं। उस वक्त किसी के लिये यह अनुमान लगाना मुश्किल ही होता है कि कबूतर की वास्तविक पोजीशन क्या है? वह जानता है कि उसका कबूतर चाहे जितना भी उँचा उड़ ले मगर बैठेगा अपने ही "अड्डे" पर। (अड्डा उसको कहते हैं जो कबूतरबाज द्वारा अपनी छत पर दो खड़े बांसों पर दो बेड़े बांस बाँध कर खड़ा किया गया होता है जिस पर कबूतर बैठते हैं।) वापस आकार बैठता भी अपने अड्डे पर है। कभी कभी अपने साथ किसी अन्य आकाशबन्द कबूतर को भी साथ लेकर उड़ता दिखायी देता है। जब कभी कबूतर मालिक को अपने कबूतर के साथ दूसरे कबूतर को उड़ते देखता है तो अपने कबूतर व साथ उड़ रहे कबूतर का ध्यान आकर्षित करने के लिये अपने अन्य कबूतरों को भी दरबे से बाहर निकाल कर अपनी छत पर लगे अड्डे पर अन्य कबूतरों को बैठा देता है। जमीन पर दाना पानी डालता है। (इस प्रक्रिया को "भड़ी मारना" कहते हैं जो नये कबूतर को बहकाने के लिये किया जाता है।) अक्सर ऐसा होता है कि साथ उड़ रहा कबूतर इस "भड़ी" में फंस कर अपना अड्डा छोड़कर नये साथी कबूतर के अड्डे पर बैठ जाता है। थोड़ी देर अलग अलग हिकमत से अड्डे का मालिक जमीन पर उतार ही लेता है कबूतर को। अगर कोई हिकमत ना काम आ रही हो तो इस नये कबूतर के पंख पर लग्गी की सहायता से "लासा" मार देता है। (लासा एक प्रकार का लसलसा पदार्थ होता है जो कबूतरबाज गुड़ या शक्कर से बनाते हैं) जब कबूतर के पंख पर लासा लग जाता है तो पंख चिपक जाते हैं और कबूतर चाह कर भी उड़ नहीं पाता है। उड़ने की कोशिश भी करे तो जमीन पर गिर जाता है। जमीन पर कबूतर आने के बाद कबूतर मालिक के हाथों में आ जाता है। इसके बाद मालिक इस नये कबूतर का पंख काट कर दरबे में डाल देता है। अब तक कबूतर को असलियत समझ में तो आ गयी होती है कि जिस ऊँचे अड्डे और दाना पानी को देखकर अपने नये साथी कबूतर के अड्डे पर उतर गया, उसकी असलियत क्या है। मगर अब तो उसके पंख भी काट दिये गये। एक दो दिन तक दाना पानी भी नहीं खाता है। साथ में बन्द पुराने कबूतर उसके साथ मार काट भी करते रहते हैं। इस मार काट के वक्त वह पुराना कबूतर जिसके साथ वह इस नये अड्डे पर उतरा है, अलग बैठ कर आंख बन्द करके उड़ान की थकान उतार रहा होता है। दो चार दिन बाद उसी घर में दाना पानी लेने ही लगता है। इस बीच अड्डे का मालिक किसी मादा/नर कबूतर के साथ उसका जोड़ा भी बना देता है। महीनों बाद जब तक इस नये कबूतर के पंख उड़ने लायक होते हैं तब तक उसके दरबे में एक जोड़ी अण्डा भी हो जाता है। अब पंख मिले तो अंडों की वजह से भी अपने पुराने घर वापस नहीं जा पाता है। एक दो महीने बाद वह भी इसी अड्डे से उड़कर आकाशबन्द होता है। मौका मिलते ही किसी नये नये आकाशबन्द हुए कबूतर को भी अपने साथ इसी नये अड्डे पर उतार देता है। दूसरे कबूतर द्वारा लाये गये नये कबूतर को डराने के लिये दरबे में मार काट करता है। आप और आपके बच्चे भी एक कबूतर हैं।नये वाले कबूतर। आपके आस पास खुरार्ट कबूतर/ कबुतरियां उड़ रही हैं। अपने अड्डे को पहिचाने रहिये। अपने अड्डे के प्रति प्रतिबद्ध रहिये। क्योंकि जावेद अख्तर खूब ऊचा उड़ा,लंबे समय तक आकाशबन्द रहा।मगर उतरा अपने ही अड्डे पर। राहत इंदौरी भी आकाशबन्द रहा,मगर उतरा अपने ही अड्डे पर। मुफ्ती मोहम्मद सईद भी ठीक समय पर अपने अड्डे पर ही उतरा। हामिद अंसारी तो दूसरों के अड्डे वाले ना जाने कितने कबूतरों को ठिकाने लगाने के बाद उतरा अपने ही अड्डे पर। इन्हीं खुरार्ट कबूतरों के साथ कुछ कबूतर/कबुतरियां भी उनके अड्डे पर उतर गये। अभी अभी भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी भी लंबे समय से आकाशबन्दी के बाद उतर गये हैं अपने अड्डे पर। लम्बी लिस्ट है और लम्बी ही होती जानी है। बस आप अपने आपको मजबूत रखें और अपने बच्चों को अपना अड्डा बखूबी पहचानना सिखायें ! Pavan Kumar Sharma.

Ghazal-94

ख़मोश लब हैं झुकी हैं पलकें दिलों में उल्फ़त नई नई है, अभी तकल्लुफ़ है गुफ़्तुगू में अभी मोहब्बत नई नई है.!! अभी न आएगी नींद तुम को अभी न हम को सुकूँ मिलेगा, अभी तो धड़केगा दिल ज़ियादा अभी ये चाहत नई नई है.!! बहार का आज पहला दिन है चलो चमन में टहल के आएँ, फ़ज़ा में ख़ुशबू नई नई है गुलों में रंगत नई नई है.!! जो ख़ानदानी रईस हैं वो मिज़ाज रखते हैं नर्म अपना, तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई नई है.!! ज़रा सा क़ुदरत ने क्या नवाज़ा कि आ के बैठे हो पहली सफ़ में, अभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है.!! बमों की बरसात हो रही है पुराने जाँबाज़ सो रहे हैं, ग़ुलाम दुनिया को कर रहा है वो जिस की ताक़त नई नई है.!! 'Maahir'

Ghazal-93

मुख़्तसर बात कर और इतना बता, साबित आख़िर तुझे यार!करना है क्या!/1 दोस्ती था,मुहब्बत था या था जुनूं , तर्क जो हो गया वो था क्या राब्ता!/2 दिल में जो दर्द है,बेशक बेदर्द है, डर है मुझको न कर दे कहीं ये फ़ना!/3 पोंछ पाई नहीं उसके आंसू मैं तब, जब खड़ी कठघरे में थी मेरी वफ़ा!/4 जुड़ता दिल तो जुदा तुझसे कर देती मैं, तुझसे तो जुड़ चुकी है मेरी आत्मा!/5 तेरी मूरत को सजदे किए थे जहां, कैसे तोडूं बता अब मैं वो बुतकदा!/6 दिन वो अच्छे थे जब हम ज़रा दूर थे, क़ुर्बतें क्या बढ़ीं हो गया फ़ासला!/7 पास आना सबब दूरियों का सही, फिर भी कहता है दिल पास आ पास आ!/8 चांद के पहलू में कल सितारा था जो, गर्दिश-ए-वक्त में वो कहीं खो गया!/9 छू के हंसती थी दोनों की नज़रें जिसे, तेरे बिन अब रुलाता है वो चन्द्रमा!/10 थाम कर हाथ तेरा थी जिस पर चली, अब चिढ़ाता है मुझको वही रास्ता!11 क्या कहूं ?पूछता है चमन मुझसे जब, क्यूं हो तन्हा?कहां है तेरा बेलिया?12 मैंने पतवार ख़ामोशी की थाम ली, दिल में जब शोर का इक तलातुम उठा!/13 दर्द-ए-दिल जाते जाते ही जाएगा अब, सीख ले सहना और मुस्कुरा!/14 'Maahir'(collected by)

Ghazal--92

मंज़िल से ही सफ़र में नहीं आशना* हुआ काँटे चटान गर्द से भी साबिक़ा हुआ /1 (परिचय,सामना) मुंसिफ़ ने हर सुबूत को तस्लीम* कर लिया फिर क्यों न मेरे हक़ में बता फ़ैसला हुआ /2 (स्वीकार) या तो सुबूत दे कि तेरा क़त्ल हो गया या मान ले कि साथ तेरे हादिसा हुआ /3 कुछ साँप रेंगते हुए जंगल में घुस गये तफ़्सील* से लकीरों का फिर तब्सिरा**हुआ /4 (*विस्तार**समीक्षा) कुछ ख़त पुराने और ये दीवान छोड़ कर जाता हूँ मैं ये माल तमाम आप का हुआ /5 इक बदहवास शख़्स हुआ फिर से रू-ब-रू 'maahir'आइने को देख के हैरत-ज़दा हुआ / 'Maahir'

Ghazal-92

मंज़िल से ही सफ़र में नहीं आशना* हुआ काँटे चटान गर्द से भी साबिक़ा हुआ /1 (परिचय ,सामना) मुंसिफ़ ने हर सुबूत को तस्लीम* कर लिया फिर क्यों न मेरे हक़ में बता फ़ैसला हुआ /2 (स्वीकार) या तो सुबूत दे कि तेरा क़त्ल हो गया या मान ले कि साथ तेरे हादिसा हुआ /3 कुछ साँप रेंगते हुए जंगल में घुस गये तफ़्सील* से लकीरों का फिर तब्सिरा** हुआ /4 (*विस्तार**समीक्षा) कुछ ख़त पुराने और ये दीवान छोड़ कर जाता हूँ मैं ये माल तमाम आप का हुआ /5 इक बदहवास शख़्स हुआ फिर से रू-ब-रू 'maahir' आइने को देख के हैरत-ज़दा हुआ / 'Maahir'

Anjuman Tarhi Mushaira(Ghazal -91)

दोस्तो, कल इस ग़ज़ल के लिखने की शुरुआत कुछ यूँ हुई कि मैं दोपहर को जब खाना खाने के बाद अपने बिस्तर में लेटा हुआ था तो कुछ निकट भूतकाल में गुज़रे हुए दिनों की याद आ गई, ख़ास कर गुज़श्ता माहे दिसंबर, जिस दरमियान मैं कई परेशानियों से गुज़रा, यहाँ तक कि अपनी कार और अपना स्कूटर भी बेचना पड़ा। मैं उनकी कमियाँ महसूस कर रहा था गोया मेरा कोई प्यारा घोड़ा मुझसे बिछड़ गया हो, हालांकि उनका शुमार जीवित चीज़ों में नहीं है, मगर मैं अक्सर उनसे बातें करता था, उनसे उनकी परेशानियां पूछता था, उनका भरसक ख़्याल रखता था. मैं सोच रहा था वो कहाँ, किनके पास और किस हाल में होंगे और मैं बरबस विछोह के आँसुओं से भर गया, और मेरे दिल से ये अशआर निकले जिनको आप सबों की समा'अतों के हवाले कर रहा हूँ. बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ, अर्ज़ किया है - वो अंतिम बार था मैं घर से अपनी कार से निकला फिर उसको बेच कर रोते हुए बाज़ार से निकला//१ وہ انتم بار تھا میں گھر سے اپنی کار سے نکلا پھر اسکو بیچ کر روتے ہوئے بازار سے نکلا // थी चेहरे पे उदासी और दिल में साधुओं सा भाव नया इक आदमी उस दिन मेरे किरदार से निकला //२ تھی چہرے پے اداسی اور دل میں سادھوؤں سا بھاؤ نیا اک آدمی اس دن میرے کردار سے نکلا //٢ ज़ियादातर तो मेरे आँसुओं में बह गया दुखड़ा बचा था थोड़ा जो दिल में, मेरे अशआर से निकला //३ زیاداتر تو میرے آنسوؤں میں بہہ گیا دکھڑا بچا تھا تھوڑا جو دل میں، میرے اشعار سے نکلا //٣ फ़साने होशवालों नें हज़ारों झूठ लिख डाले जो सच था वाक़या वो तो लबे मयख़्वार से निकला //४ فسانے ہوشوالوں نیں ہزاروں جھوٹھ لکھ ڈالے جو سچ تھا واقعہ وہ تو لب میخوار سے نکلا // अमूमन हम बहुत कम बोलते हैं बज़्म में लेकिन तुम्हारा ज़िक्र जब निकला बहुत विस्तार से निकला//५ عموماً ہم بہت کم بولتے ہیں بزم میں لیکن تمہارا ذکر جب نکلا بہت وستار سے نکلا //٥ तुम्हारे नाम का ठप्पा लगा था मेरे माथे पर बहुत बचते हुए मैं कूचा-ए-अग़्यार से निकला //६ تمہارے نام کا ٹھپہ لگا تھا میرے ماتھے پر بہت بچتے ہوئے میں کوچۂ اغیار سے نکلا //٦ नयी क्या बात थी ग़ालिब सी है मेरी कहानी भी मेरे सुख का हर इक क़िस्सा लबे आज़ार से निकला //७ نئی کیا بات تھی غالب سی ہے میری کہانی بھی میرے سکھ کا ہر اک قصہ لب آزار سے نکلا //٧ डुबाये हम गये जिसमें उसी दर्या नें बोला ये हमारे खून का धब्बा तेरी तलवार से निकला //८ ڈبایے ہم گئے جسمیں اسی دریا نیں بولا یہ ہمارے خون کا دھبا تیری تلوار سے نکلا //٨ जो निकली रूह मेरी जिस्म से तो ये लगा मुझको कि जैसे जिन्न कोई ईंट की दीवार से निकला //८ جو نکلی روح میری جسم سے تو یہ لگا مجھ کو کہ جیسے جن کوئی اینٹ کی دیوار سے نکلا //٨ मिली ना 'राज़' को इक पल की भी ख़ुशियाँ कि दुन्या से वो यूँ निकला कि जैसे ग़म दिले अफ़्गार से निकला //१० ملی نا 'راز' کو اک پل کی بھی خوشیاں کہ دنیا سے وہ یوں نکلا کہ جیسے غم دلے افگار سے نکلا //١٠ 'Maahir' किरदार-चरित्र, नाटक के पात्र अशआर-शेर का बहुवचन लफ़्ज़-शब्द लबे मयख़्वार से-शराबी के मुँह से अमूमन-अनुमानतः,सामान्यतया,प्रायः,बहुधा बज़्म-सभा,महफ़िल कूचा-ए-अग़्यार-दुश्मन/प्रतिद्वंद्वी की गली लबे आज़ार से-कष्ट/पीड़ा/दुख/तकलीफ़ के मुँह से दर्या-नदी रूह-आत्मा,जान,प्राण जिस्म-शरीर जिन्न-(शाब्दिक)छुपा हुआ (लाक्षणिक)एक मनुष्य से भिन्न एक प्रजाति पवित्र क़ुरआन में इस का वर्णन'अल-जिन्न'अध्याय में आया है,भूत-प्रेत जैसा एक प्राणी जिसकी उत्पत्ति अग्नि से मानी जाती है,ऐसा व्यक्ति जो किसी काम में पूरे नब से जुटा रहे,दृढ़ चित्त,स्थिरनिश्चयी;शक्तिशाली या बलवान व्यक्ति दिले अफ़्गार-घायल हृदय

Ghazal-90

ग़ज़ल बराए मेहरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- तू हुलिया देख के कमतर समझ रहा है जिसे वो इक नगीना है, पत्थर समझ रहा है जिसे //1 तू उसको देख फ़रिश्ते की आँख से ऐ दोस्त वो हमसे अच्छा है, बंदर समझ रहा है जिसे //2 अमीरी और ग़रीबी की शादी का है फल है उसकी बीवी तू दुख़्तर समझ रहा है जिसे //3 है गिर्द-ओ-पेश में उसके भी झाड़ काँटों की तू सिर्फ़ फूल की झालर समझ रहा है जिसे //4 जहाँ मैं रहता हूँ उसकी ज़ियारतों के लिए दयार-ए-ग़म है, मेरा घर समझ रहा है जिसे //5 हँसा हँसा के वो करता है सबके ग़म का इलाज है सच में हीरो तू जोकर समझ रहा है जिसे //6 हयात अपने ही कर्मों का आइना है'maahir' तेरा किया है, मुक़द्दर समझ रहा है जिसे //7 تو حلیہ دیکھ کے کمتر سمجھ رہا ہے جسے وہ اک نگینہ ہے، پتھر سمجھ رہا ہے جسے //1 تو اسکو دیکھ فرشتے کی آنکھ سے اے دوست وہ ہم سے اچھا ہے، بندر سمجھ رہا ہے جسے //2 امیری اور غریبی کی شادی کا ہے پھل ہے اسکی بیوی تو دختر سمجھ رہا ہے جسے //3 ہے گرد وپیش میں اسکے بھی جھاڑ کانٹوں کی تو صرف پھول کی جھالر سمجھ رہا ہے جسے //4 جہاں میں رہتا ہوں، اسکی زیارتوں کے لیے دیار غم ہے، میرا گھر سمجھ رہا ہے جسے //5 ہنسا ہنسا کے وہ کرتا ہے سب کے غم کا علاج ہے سچ میں ہیرو تو جوکر سمجھ رہا ہے جسے //6 حیات اپنے ہی کرموں کا آئنہ ہے 'راز' تیرا کیا ہے، مکدر سمجھ رہا ہے جسے //7 'Maahir' हुलिया- मुखाकृति, चेहरा, शक्लो सूरत दुख़्तर- बेटी, कन्या, पुत्री ज़ियारत- दीदार, दर्शन, मुलाक़ात (किसी आदर योग्य व्यक्तित्व से) दयार-ए-ग़म- दुख का गृह गिर्द-ओ-पेश- आसपास, चारों ओर, क़रीब में सोज़-ए-हिज्र का ऐवाँ- वियोग के जलन का महल हयात- जीवन, ज़िंदगी

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