ग़ज़ल- बदजुबानी से जो दिन बसर कर रहा, जो है उस में, उसी से गुज़र कर रहा। बद=बुरा ख़ासजन कुछ न कुछ बस छिपाते रहे, आमजन ही यहाँ बाख़बर कर रहा। बाख़बर करना=सूचना देना सूर्य के सामने है वो कुछ भी नहीं, काम अपना तो फिर भी शरर कर रहा। शरर=चिंगारी वक़्त है मुंसिफ़ों का भी मुंसिफ़ यहाँ, वो जो ज़र्रे को देखो क़मर कर रहा। काम ऐसे भी हैं कुछ जिन्हें आदमी, मानता तो ग़लत है, मगर कर रहा। हो मिलावट का यारो भला सब कहें, ज़ह्र अपने असर में कसर कर रहा। ज़ह्र= ज़हर बात नारे की उसके ग़ज़ब ये लगी, मर गया जो, उसे वो, अमर कर रहा। जो लड़ा आधे मन से वो जीतेगा क्या, हारता सा वो देखो समर कर रहा। समर=युद्ध आलसी के लिए कब थी जम्हूरियत, बोल मेरा जो है वो असर कर रहा। जम्हूरियत=प्रजातंत्र था बसेरा परिंदों का, ईंधन बना; काम कट के भी अपना शजर कर रहा। शजर=वृक्ष कुछ कमी रह गई है जहाँ में कोई, मुश्किलों में बशर जो सफ़र कर रहा। बशर=आदमी 'Maahir'