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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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6:44 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे: अध्याय ५ : क्रमश : श्लोक ६ : कर्मयोग की सीढ़ी से ही संन्यास और ब्रह्म प्राप्ति : संन्यास : तु महाबाहो दु:खम् आप्तुम् अयोगत: योगयुक्त: मुनि: ब्रह्म नचिरेण अधिगच्छति ॥६॥ हे महाबाहो ! परंतु योग के अभाव में संन्यास-साधन कष्टकर । ब्रह्म का मननकर्ता कर्मयोगी शीघ्र ही प्राप्त होता ब्रह्म को ॥६॥ कर्मयोग से कैसे है सुगम ब्रह्म की प्राप्ति : दूसरों का हित कैसे हो? इस प्रकार मनन करने से राग छूट जाता है ।राग का सर्वथा अभाव होने पर स्वत:सिद्ध परमात्म-तत्व की अनुभूति हो जाती है । संत ज्ञानेश्वर ने व्यंग्योक्ति करते हुए कहा है: “किन्तु जो योग-साधन का आश्रय नहीं लेते वे वृथा खटपट करते रहते हैं और उन्हें कभी सच्चा संन्यास नहीं मिलता । 'Paavan Teerth'
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