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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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6:19 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- कभी देखा नहीं दिन-रात के उसको उजालों में बसा इक उम्र से है एक जो चेहरा ख़यालों में। भलाई जो किसी में है,उजागर कर रहे बेशक़, दिखा करते हैं खुल के ऐब भी लेकिन,उजालों में। उजागर करना=स्पष्ट करना,ऐब=कमियां,दोष किया करते थे जो बातें ग़रीबी को हटाने की, ग़रीबी हट गई उनकी,वो लेकिन हैं सवालों में। कभी सच बोलना हो तो नज़र पैनी ज़रा रखना, लगे हैं घात में अब भेड़िए,भेड़ों की खालों में। अगर जनता की सेवा का कभी मौका मिला उनको, नज़ाकत देख लेना झूमती फिर उनकी चालों में। हक़ीक़त देखनी है तो ज़रा ए सी से निकलो जी, मिलेगी आमजनता के वो कुछ उलझे सवालों में। हकीकत=सच्चाई अमीरी बढ़ रही उनकी,सभी की कीमतों पर अब, हुआ है बंद धन तो कार्पोरेट दुनिया के तालों में! 'Maahir'(collection)
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