skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
7:57 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- हुस्न पे आ गया है ताब ज़रा, हो रहा इश्क़ कामयाब ज़रा। ताब=तेज, चमक कितने नादां हैं जो ये कहते हैं, इश्क़ का कीजिए हिसाब ज़रा। नादां= नादान हम भी बाइस हैं इसके, सोचें तो, दिख रहा कुछ, कहीं, ख़राब ज़रा। बाइस=कारण वो जो दुश्मन बने हुए हैं मेरे, कर रहे मुझको कामयाब ज़रा। पूछते हैं हया का मानी वो, आ रहा उन पे अब शबाब ज़रा। हया=लज्जा, संकोच बढ़ गईं मुश्किलें ज़मीं पर कुछ, पास आया जो आफ़ताब ज़रा। हुस्न है मुंतज़िर हर इक शय में, डालिए तो नज़र जनाब ज़रा। मुंतज़िर=इंतज़ार करने वाला, इच्छुक, बेज़ुबानी मेरी असर लाई, दिख रहा उनमें इज़्तराब ज़रा। बेज़ुबानी=न बोलना, चुप रहना, इज़्तराब= व्याकुलता, बेचैनी 'Maahir'
![]() |
Post a Comment