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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:34 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
गले में बार-बार कफ जमने का क्या कारण हो सकता है, इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है ? इसका सबसे आम कारण (commonest reason)अलर्जी (allergy)है, जिसे ज्यादातर "वाइरल" कह कर जाना जाता है। यदि बुखार नहीं है तो 90%लोगों में अलर्जी ही इसका कारण होती है। क्योंकि यह हर साल लगभग दो बार होती है और बहुत लोग प्रभावित होते हैं इसलिए अक्सर इसके लिए "वायरल हो गया है", "वायरल चल रहा है", "वायरल हो गया था" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। यदि यह वायरस के कारण होगा तो साथ में हाथ पैरों में दर्द, सिर/सिर व जोड़/शरीर व कमर/ में भी काफ़ी दर्द महसूस हो सकता है। आम तौर से वायरल की शुरूआत ही बुखार व दर्द से होती हैऔर इसमें सिर्फ़ पेरासिटेमोल लेने से दर्द व बुखार में आराम मिलता है। पर जब तक वायरस की संख्या पर शरीर काबू नहीं पा लेता बुखार पेरासिटामोल के असर खत्म होने पर बार-2 आता रहता है। वाइरल बुखार में हमें ऐसा लगता है कि तबियत ठीक नहीं है और हम बीमार हैं।इसमें खांसी मुख्य लक्षण ज़्यादातर नहीं होता है। पर वाइरल के साथ यदि खांसी भी मुख्य लक्षण है तो वायरल के साथ-2 अलर्जी भी होने की संभावना होती है। बुखार, सिर्फ़ अलर्जी में भी आता है जब हम इसका शुरूआती मात्र ख़राश या सूखी खांसी की स्टेज में इलाज शुरू नहीं करते हैं। पर अधिकतर केसेज़ में, अलर्जी की शुरूआत खांसी, ख़राश, गले में सूखापन, गले में छिलन या खुजली से ही शुरू होती है। यदि इसी समय एंटिअलर्जिक इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है। जिस भी चीज़ से हमें अलर्जी हो उसे अलर्जन(Allergen) कहते हैं। इनको पता करने के लिए चमड़ी में विभिन्न अलर्जन्स को प्रवेश करा कर पैच टैस्ट किया जाता है। सीधे खून-सैंपल से भी यह पता लगाया जा सकता है। पर आमतौर से व्यवहारिक जीवन में इसकी उपयोगिता कम ही होती है।ऐसा इसलिए, कि जो अलर्जन हवा में होते हैं, भले ही वे टैस्ट से पता किए जा सकते हैं; पर जिस हवा को, हम चौबीसों घंटे सांस से श्वसन तंत्र से हमारे शरीर में ले रहे हैं, उसे अलर्जन से मुक्त करना लगभग असंभव/अव्यवहारिक ही होता है। हमारे द्वारा जाने कितने स्थानों में आने-जाने से सभी जगहों की हवा से अलर्जन को हटाना संभव ही नहीं है। ऐसा सिर्फ़ तभी संभव होता है जब वह अलर्जन किसी सीमित स्थान की हवा के अलावा हर जगह बिमारी पैदा करने लायक मात्रा में उपलब्ध न हो। ये व्यवसायिक गतिविधियों से उत्पन्न अलर्जंस के केस में संभव है। मरीज को उस वातावरण से दूर करने से समस्या सुलझ सकती है। यही बात स्थान परिवर्तन से अलर्जी का समाधान होने का आधार है। ऐसे मरीज़ हैं जिन्हे राजस्थान में अलर्जी की परेशानी होती है पर मुम्बई में नहीं क्योंकि वहॉ की हवा में उनको तकलीफ़ पहुँचाने वाला अलर्जन नहीं है। यदि किसी खाने की चीज़ या विशिष्ट क्रिया से अलर्जन से संपर्क होना कारण है तब भी उससे बचने की संभावना होती है।पर हवा को कौन साफ़ कर सकता है और फिर हमारे द्वारा वायु प्रदूषण भी तो है! अक्सर साल के शुरू में फरवरी से अप्रैल व अगस्त से दिवाली तक वायु में वनस्पतियों से उत्पन्न पराग कणों व विभिन्न कीट-पतंगों की भरमार होती है। इसीलिए बहुत लोगों को इन्हीं मौसमी समयों में हर साल खॉसी ज़ुकाम हो जाता है। पर साल भर तक या इन समयों के अलावा भी लोगों को अलर्जी हो सकती है। अलर्जी एक व्यक्ति के शरीर की अति संवेदनशीलता को कहते हैं। जिन चीज़ों से किसी को अलर्जी होती है अधिकांश जनता को उससे कोई तकलीफ़ नहीं होती, बावजूद इसके कि वह अलर्जन उनके भी संपर्क में आता ही है; क्योंकि जो हवा मरीज को उपलब्ध है वही दूसरों को भी उपलब्ध है। अलर्जन से मरीज़ को डिसेन्ज़िटाइज़ करना भी एक समाधान है पर अक्सर ये असफल हो जाता है। सेनज़िटिविटी टैस्टस् व डीसेन्ज़िटिविटी की प्रक्रियाएः महंगी पर उतनी लाभकारी नहीं होतीं। हॉ कुछ सौभाग्यशाली में सफल भी हो सकती हैं। अलर्जन, नाक-गला,नाक के पास दोनों तरफ़ की खोखली हड्डियों (Nasal Sinuses), स्वर यंत्र(Larynx), मुख्य श्वसन नलिका(Trachea), छोटी-बड़ी श्वसन-नलियों(Bronchial tree),आँखों व कानों में हवा के ज़रिये, जैसे चमड़ी के संपर्क में आते हैं, वैसे ही इनके संपर्क में भी आते हैं। यहाँ पहुँचकर ये इन अंगों की अंदरूनी श्लेषमा झिल्ली(Mucous Membrane) पर, उस ही झिल्ली में उपस्थित सूक्ष्म(Microscopic) श्लेष्मा-ग्रंथियों(Mucus Glands) से उत्पन्न श्लेष्मा(म्यूकस/Mucus/एक सफ़ेद पदार्थ जो बहते मोम से गाढ़े गोंद जैसा चिपकने वाला होता है)से चिपकने के द्वारा रोक लिये जाते हैं। जहाँ-2 ये काफ़ी मात्रा में जमा हो जाते हैं वहाँ इनसे प्रतिरोधात्मक तंत्र(Immune System)के द्वारा प्रतिक्रया के कारण सूजन हो जाती है और हमें लक्षण महसूस होने लगते हैं।इस प्रतिक्रिया मैं हिसटेमीन नाम का रसायन भी उत्पन्न होता है, जो लक्षणों को बढ़ाता है।यदि इसी स्तर पर एंटिहिसटेनिमिक दवा ले ली जाए तो लक्षण कंट्रोल हो जाते हैं। दवा तबतक लेनी होती है जब तक अलर्जन तकलीफ़ दे रहा है। यदि दवा बंद करने से तकलीफ़ वापस लौटने लगे तो इसका मतलब है कि अलर्जन अभी भी हानिकारक मात्रा में हवा में उपलब्ध है। जब एंटिहिसटैमिनिक दवा के बग़ैर भी कोई लक्षण नहीं महसूस हो; तब समझना चाहिए कि अब अलर्जन हमारे संपर्क में नहीं है या हानिकारक मात्रा से कम है। पर यदि अलर्जन की हानिकारक मात्रा वापस बढ़ जाए तो लक्षण फिर शुरू हो जाएंगे और दवा फिर लेनी पड़ेगी।यदि पहले दवा से लक्षणों में आराम मिला और बिना दवा हमेशा ही लक्षण रहते हैं तो फिर यह वर्षपर्यंत(Perennial) अलर्जी है। इसके लिए या तो ऐसी जगह निवास करें जहाँ अलर्जन से संपर्क संभव ही न हो या पूरे साल दवा लेनी ही पड़ेगी। अलर्जी के लक्षण ठ्डी हवा की मार,बर्फ़ जैसे ठंडे पदार्थ/पेय खाने-पीने से बढ़ जाते हैं। यदि ऐसी चीज़ों का सेवन बंद नहीं कर सकते तो आईसक्रीम-कप के साथ आनेवाले नन्हें चम्मच में जितना माल आए उतना ही माल एक निवाले में खाना चाहिए।दो निवालों के बीच इतना समय बीतना चाहिए कि पहले निवाले को निगलते समय जो नाक,मुँह व गले का तापक्रम बर्फ़ के समान हो गया था, वह नॉरमल हो जाए। ठंडे पेय पीने के समय थोड़ी-2 मात्रा, एक-2 घूंट में, रूक-2 कर लेना चाहिए; ताकि गले का तापक्रम बर्फ़ जैसा ठंडा न हो जाए। वातानुकूलित वातावरण से बाहर आते समय श्वास लेने के अंगों को तापक्रम के भारी अंतर का झटका नहीं महसूस हो इसलिए या तो गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर थोड़ा ठहरकर उतरना चाहिए या जहाँ उतरना हो उससे पहले ही एसी बंद कर देना चाहिए।दुपहिया वाहन उपयोग करते समय गला, चेहरा व नाक को ठंडी हवा की मार से सुरक्षित रखना चाहिए। यदि ठंड से संवेदनशीलता ज़्यादा हो तो मुँह में लोंग चूसते रहने से राहत रहेगी। ए.सी.या कूलर की हवा सीधी अपने ही ऊपर न आये इस तरह हवा की दिशा के लिए फ़िन्स का उपयुक्त उपयोग करना चाहिए। फ़्रिज के पानी को ऊपर से उंडेलकर सीधा गले में डाल कर नहीं गटकना चाहिए।अत्यधिक ठंड से सामना हो तो पैरों को ठंडे होने से बचाने के लिए गर्म मौज़े के साथ पैर को अधिक से अधिक ढ़के ऐसे जूते बेहतर रहते हैं। ये लक्षण सभी लोगों में उतनी ही तीव्रता के नहीं होते । कई लोगों को खॉसी की चूसनेवाली गोलियां ,हल्दी का दूध लेने से ही आराम मिल जाता है।एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नमक घोल कर गरारे (gargles) करने से गले में अच्छा महसूस होता है। जो पहले से ही, अलर्जी होने की संभावना को अनुभव से जानते हैं; उन्हें ऐसा होने से पहले ही बचाव में दवा व दूसरी सावधानियों का ध्यान रखना समझदारी होगी। पालतू जानवर भी अलर्जी का कारण हो सकते हैं। उन पर भी इस दृष्टि से सोचना ठीक बात है।इन सब बातों के अलावा डाक्टरी सलाह तो है ही। एंटिअलर्जिक दवाएं एविल,सिट्राजीन,ऐलेग्रा आदि काफ़ी काम में ली जाती हैं
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