skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
6:56 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ५: कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ५ : कर्मयोग और सांख्य दोनों का अन्तिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति: यत् सांख्ये: प्राप्यते स्थानम् तत् योगै : अपि गम्यते । एकम् सांख्यम् च योगम् च य: पश्यति स: पश्यति ॥५॥ सांख्य- साधन पहुँचाता जहाँ योग। भी पहुँचाता वहाँ । सांख्य और योग को एकसा जो जानता वही सच में यथार्थ को है देखता ॥५॥ ध्यान दीजिए : पूर्व श्लोक चार में जो बात व्यतिरेक से कही गयी थी उसी को इस श्लोक में सकारात्मक रूप से कहा गया है । सांख्ययोगी और कर्मयोगी- दोनों का ही अन्त में कर्मों से अर्थात क्रियाशील प्रकृति से सम्बन्ध-विच्छेद होता है । सांख्ययोग का विवेक प्रकृति-पुरुष का सम्बन्ध-विच्छेद करने के लिए होता है और कर्मयोग का ज्ञान कर्म अपने लिए न कर संसार की सेवा के लिए समर्पित करने में रहता है । 'Paavan Teerth'
![]() |
Post a Comment