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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:31 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- भले पैरों तले साहिल नहीं है, करें कोशिश तो क्या हासिल नहीं है। भुलाते जा रहे चटनी की लज़्ज़त, रसोईघर में जब से सिल नहीं है। उसी को ढूँढ़ते हैं हम सभी में, जो अब तक हो सका हासिल नहीं है। वो कहते क्या करोगे वेद पढ़ कर, अक़ीदा उनका जो कामिल नहीं है। गरजते मेघ हैं,काली घटा है, गो चुप है आमजन,ग़ाफ़िल नहीं है। ख़ुशी के वास्ते दुनिया बनी है, दुखी रहने का कुछ हासिल नहीं है। जो अंदर है वही दिखता है बाहर, नया कुछ और तो शामिल नहीं है। कमी हर शख़्स में तुमको मिलेगी, कहीं भी, कोई भी,कामिल नहीं है। किसी गफ़लत में ‘’ तुम न रहना, कहाँ तूफाँ ? कहाँ साहिल नहीं है ? Maahir(collection by)
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