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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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6:46 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४: ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ३७ : ज्ञानाग्नि में सभी कर्म भस्म हो जाते हैं: यथ एधांसि समिद्ध: अग्नि : भस्मसात् कुरुते अर्जुन। ज्ञानाग्नि : सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा ॥३७॥ हे अर्जुन ! प्रज्ज्वलित अग्नि की लपटों में ईंधन भस्मसात् होता जैसे । सभी कर्म ज्ञान की अग्नि में भस्मसात् होते वैसे ॥३७॥ ज्ञान-विषयक दृष्टान्त का अंतिम चरण : पिछले छत्तीसवें श्लोक मे ज्ञान रूपी नौका से पाप-समुद्र से सहज ही पार हो जाने की बात की। इस पर कोई जिज्ञासु कह सकता है कि फिर भी पाप का महान समुद्र तो ज्यों का त्यों बना ही रहा । इस शंका के निवारणार्थ यहाँ कहा गया है कि कर्म -ईंधन प्रज्ज्वलित ज्ञानाग्नि में पूरी तरह भस्म हो जाता है और साधक को परमात्मा का तत्वदर्शन हो जाता है । PAAVAN TEERTH
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