Pavan Kumar Paavan Personal Blog Pavan Kumar Paavan Personal Blog Pavan Kumar Paavan Personal Blog
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Geeta-15

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे: अध्याय ५ : क्रमश : श्लोक ६ : कर्मयोग की सीढ़ी से ही संन्यास और ब्रह्म प्राप्ति : संन्यास : तु महाबाहो दु:खम् आप्तुम् अयोगत: योगयुक्त: मुनि: ब्रह्म नचिरेण अधिगच्छति ॥६॥ हे महाबाहो ! परंतु योग के अभाव में संन्यास-साधन कष्टकर । ब्रह्म का मननकर्ता कर्मयोगी शीघ्र ही प्राप्त होता ब्रह्म को ॥६॥ कर्मयोग से कैसे है सुगम ब्रह्म की प्राप्ति : दूसरों का हित कैसे हो? इस प्रकार मनन करने से राग छूट जाता है ।राग का सर्वथा अभाव होने पर स्वत:सिद्ध परमात्म-तत्व की अनुभूति हो जाती है । संत ज्ञानेश्वर ने व्यंग्योक्ति करते हुए कहा है: “किन्तु जो योग-साधन का आश्रय नहीं लेते वे वृथा खटपट करते रहते हैं और उन्हें कभी सच्चा संन्यास नहीं मिलता । 'Paavan Teerth'

Kavita

जलाओ न दुनिया को ! मोहब्बत की दुनिया बसा करके देखो, हाथ से हाथ तू मिला करके देखो। सूखे पत्ते के जैसे न जलाओ जहां को, नफ़रत का परदा हटा करके देखो। गिराओ न मिसाइलें इस कदर गगन से, उजड़ते जहां को बसा करके देखो। अमन-शान्ति से रहना तो सीखो, खुशबू लबों से चुरा करके देखो। नहीं रुक रहा वो सिलसिला जंग का, कोई अपना दिल बढ़ा करके देखो। लावा हुआ देखो गुस्सा सभी का, बगावत का शोला बुझा करके देखो। मुट्ठी भर लोगों के हाथों में दुनिया, साजिशों का जाल जला करके देखो। खुशियों के नाम पे वो गमों को न बेचे, जब डूब रही कश्ती बचा करके देखो। आंसुओं का कर्ज है तेरे सर पे बहुत, जुबानी जंग जरा घटा करके देखो। बागों की देखभाल न उल्लू को सौंपो, न घटे उम्र जंग की,बढ़ा करके देखो। 'aavan'

Geeta-14

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ५: कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ५ : कर्मयोग और सांख्य दोनों का अन्तिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति: यत् सांख्ये: प्राप्यते स्थानम् तत् योगै : अपि गम्यते । एकम् सांख्यम् च योगम् च य: पश्यति स: पश्यति ॥५॥ सांख्य- साधन पहुँचाता जहाँ योग। भी पहुँचाता वहाँ । सांख्य और योग को एकसा जो जानता वही सच में यथार्थ को है देखता ॥५॥ ध्यान दीजिए : पूर्व श्लोक चार में जो बात व्यतिरेक से कही गयी थी उसी को इस श्लोक में सकारात्मक रूप से कहा गया है । सांख्ययोगी और कर्मयोगी- दोनों का ही अन्त में कर्मों से अर्थात क्रियाशील प्रकृति से सम्बन्ध-विच्छेद होता है । सांख्ययोग का विवेक प्रकृति-पुरुष का सम्बन्ध-विच्छेद करने के लिए होता है और कर्मयोग का ज्ञान कर्म अपने लिए न कर संसार की सेवा के लिए समर्पित करने में रहता है । 'Paavan Teerth'

Urdu Poetry.tarahi mushayara!

जिंदगी किस तरह बसर होगी दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में// जिंदगी किस,तरह बसर/होगी दिल नहीं लग/ रहा मुहब्बत में // जौन एलिया पूरी ग़ज़ल सर ही अब फोड़िए नदामत में नींद आने लगी है फ़ुर्क़त में//1 हैं दलीलें तिरे ख़िलाफ़ मगर सोचता हूँ तिरी हिमायत में//2 रूह ने इश्क़ का फ़रेब दिया जिस्म को जिस्म की अदावत में//3 अब फ़क़त आदतों की वर्ज़िश है रूह शामिल नहीं शिकायत में//4 इश्क़ को दरमियाँ न लाओ कि मैं चीख़ता हूँ बदन की उसरत में//5 ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम रूठते अब भी हैं मुरव्वत में//6 वो जो ता'मीर होने वाली थी लग गई आग उस इमारत में//7 ज़िंदगी किस तरह बसर होगी दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में//8 हासिल-ए-कुन है ये जहान-ए-ख़राब यही मुमकिन था इतनी उजलत में//9 फिर बनाया ख़ुदा ने आदम को अपनी सूरत पे ऐसी सूरत में//10 और फिर आदमी ने ग़ौर किया छिपकिली की लतीफ़ सनअ'त में//11 ऐ ख़ुदा जो कहीं नहीं मौजूद क्या लिखा है हमारी क़िस्मत में//12 जौन एलिया

Ghazal-13

ग़ज़ल- बदजुबानी से जो दिन बसर कर रहा, जो है उस में, उसी से गुज़र कर रहा। बद=बुरा ख़ासजन कुछ न कुछ बस छिपाते रहे, आमजन ही यहाँ बाख़बर कर रहा। बाख़बर करना=सूचना देना सूर्य के सामने है वो कुछ भी नहीं, काम अपना तो फिर भी शरर कर रहा। शरर=चिंगारी वक़्त है मुंसिफ़ों का भी मुंसिफ़ यहाँ, वो जो ज़र्रे को देखो क़मर कर रहा। काम ऐसे भी हैं कुछ जिन्हें आदमी, मानता तो ग़लत है, मगर कर रहा। हो मिलावट का यारो भला सब कहें, ज़ह्र अपने असर में कसर कर रहा। ज़ह्र= ज़हर बात नारे की उसके ग़ज़ब ये लगी, मर गया जो, उसे वो, अमर कर रहा। जो लड़ा आधे मन से वो जीतेगा क्या, हारता सा वो देखो समर कर रहा। समर=युद्ध आलसी के लिए कब थी जम्हूरियत, बोल मेरा जो है वो असर कर रहा। जम्हूरियत=प्रजातंत्र था बसेरा परिंदों का, ईंधन बना; काम कट के भी अपना शजर कर रहा। शजर=वृक्ष कुछ कमी रह गई है जहाँ में कोई, मुश्किलों में बशर जो सफ़र कर रहा। बशर=आदमी 'Maahir'

Geeta-13

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे: अध्याय ५ : क्रमश : श्लोक ६ : कर्मयोग की सीढ़ी से ही संन्यास और ब्रह्म प्राप्ति : संन्यास : तु महाबाहो दु:खम् आप्तुम् अयोगत: योगयुक्त: मुनि: ब्रह्म नचिरेण अधिगच्छति ॥६॥ हे महाबाहो ! परंतु योग के अभाव में संन्यास-साधन कष्टकर । ब्रह्म का मननकर्ता कर्मयोगी शीघ्र ही प्राप्त होता ब्रह्म को ॥६॥ कर्मयोग से कैसे है सुगम ब्रह्म की प्राप्ति : दूसरों का हित कैसे हो? इस प्रकार मनन करने से राग छूट जाता है ।राग का सर्वथा अभाव होने पर स्वत:सिद्ध परमात्म-तत्व की अनुभूति हो जाती है । संत ज्ञानेश्वर ने व्यंग्योक्ति करते हुए कहा है: “किन्तु जो योग-साधन का आश्रय नहीं लेते वे वृथा खटपट करते रहते हैं और उन्हें कभी सच्चा संन्यास नहीं मिलता । 'Paavan Teerth'

Ghazal-12

ग़ज़ल- ग़जब है शायरी इसकी अजब ही राह होती है, किसी की आह पे इसमें,किसी की वाह होती है। सँवरना रोज पड़ता है बिगड़ हम खुद ही जाते हैं, मगर यारो,तरक़्क़ी की इसी से राह होती है। न रखना याद पड़ता सच,न होते झूठ के हैं पैर, मगर झूठे को सच्चे से कसकती डाह होती है। डरो मत मुश्किलों से तुम बढ़ो आगे,करो हिम्मत, जहाँ रस्ते नहीं दिखते होते,वहाँ भी राह होती है। कभी जो लड़खड़ाओ तो,करो कोशिश सँभलने की, निकलती कोशिशों से जो,हसीं वो राह होती है। मुझे भी करने दो वो सब जिन्हें तुम करते थे अब तक, तजारिब से जो मिलती है,सही वो राह होती है। जहाँ के वास्ते “मैं” है,न "मैं"होता,न कुछ होता, सभी हैं फलसफे"मैं"से इसी से आह होती है। हराया "मैं"ने ही मुझको न"मैं"होता न ग़म होता, बिना इसके न कोई ज़िन्दगी में चाह होती है। 'Maahir'(collection)

Geeta-12

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे- रणक्षेत्रे :अध्याय ५ : कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ४ : सांख्य (संन्यास) और कर्मयोग दोनों का लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति: सांख्ययोगौ पृथक् बाला : प्रवदन्ति न पण्डिता : । एकम् अपि आस्थित: सम्यक उभयो : विन्दते फलम् ॥४॥ नासमझ ही सांख्य और योग को पृथक कर हैं जानते न कि ज्ञानी हैं कभी । एक में ही भली विधि स्थित हुआ नर परमात्म-फल पाता सुनिश्चित ॥४॥ युद्ध के परिप्रेक्ष्य में समझिए : सारे विकल्पों के असफल होने पर धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में खड़े होकर अर्जुन का परिस्थिति से निराश होकर शस्त्र छोड़ कर शास्त्र का आधार लेकर पलायन करने और उसे उचित ठहराते देख भगवान श्री कृष्ण ने दूसरे अध्याय में सांख्य की चर्चा कर अर्जुन को स्थितप्रज्ञ के रूप के दर्शन कराए । इसके बाद परवर्ती अध्यायों में विस्तार से कर्मयोग के विभिन्न पहलुओं पर अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया । इस पर विचार करते हुए विनोबा जी के अनुसार: “कर्मयोग मार्ग में भी है और मुकाम पर भी है ।परन्तु संन्यास सिर्फ़ मुक़ाम पर ही है, मार्ग में नहीं । यदि यही बात शास्त्र की भाषा में कहनी हो, तो कर्मयोग साधन भी है और निष्ठा भी , परन्तु संन्यास सिर्फ़ निष्ठा है, निष्ठा का अर्थ है, अंतिम अवस्था । 'Paavan'

Ghazal-11

ग़ज़ल- हुस्न पे आ गया है ताब ज़रा, हो रहा इश्क़ कामयाब ज़रा। ताब=तेज, चमक कितने नादां हैं जो ये कहते हैं, इश्क़ का कीजिए हिसाब ज़रा। नादां= नादान हम भी बाइस हैं इसके, सोचें तो, दिख रहा कुछ, कहीं, ख़राब ज़रा। बाइस=कारण वो जो दुश्मन बने हुए हैं मेरे, कर रहे मुझको कामयाब ज़रा। पूछते हैं हया का मानी वो, आ रहा उन पे अब शबाब ज़रा। हया=लज्जा, संकोच बढ़ गईं मुश्किलें ज़मीं पर कुछ, पास आया जो आफ़ताब ज़रा। हुस्न है मुंतज़िर हर इक शय में, डालिए तो नज़र जनाब ज़रा। मुंतज़िर=इंतज़ार करने वाला, इच्छुक, बेज़ुबानी मेरी असर लाई, दिख रहा उनमें इज़्तराब ज़रा। बेज़ुबानी=न बोलना, चुप रहना, इज़्तराब= व्याकुलता, बेचैनी 'Maahir'

Geeta-11

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ५: कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ५ : कर्मयोग और सांख्य दोनों का अन्तिम लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति: यत् सांख्ये: प्राप्यते स्थानम् तत् योगै : अपि गम्यते । एकम् सांख्यम् च योगम् च य: पश्यति स: पश्यति ॥५॥ सांख्य- साधन पहुँचाता जहाँ योग। भी पहुँचाता वहाँ । सांख्य और योग को एकसा जो जानता वही सच में यथार्थ को है देखता ॥५॥ ध्यान दीजिए : पूर्व श्लोक चार में जो बात व्यतिरेक से कही गयी थी उसी को इस श्लोक में सकारात्मक रूप से कहा गया है । सांख्ययोगी और कर्मयोगी- दोनों का ही अन्त में कर्मों से अर्थात क्रियाशील प्रकृति से सम्बन्ध-विच्छेद होता है । सांख्ययोग का विवेक प्रकृति-पुरुष का सम्बन्ध-विच्छेद करने के लिए होता है और कर्मयोग का ज्ञान कर्म अपने लिए न कर संसार की सेवा के लिए समर्पित करने में रहता है ।

Geeta-10

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे- रणक्षेत्रे : अध्याय ४: ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ३६ : ज्ञान की महत्ता : अपि चेत् असि पापेभ्य : सर्वेभ्य : पापकृत्तम : । सर्वम् ज्ञानप्लवेन एव वृजिनम् सन्तरिष्यसि ॥३६॥ यदि सभी पाप- कर्मियों से अधिक पाप को करने वाला मनुज । ज्ञान-रूप नौका में आरूढ़ हो तो पाप के समुद्र को भी तर जाता भली विधि ॥३६॥ ज्ञानी में पाप नहीं रहता : पैंतीसवें श्लोक में कहा गया है कि ज्ञान अर्थात विवेक होने पर फिर मोह नहीं रहता तो पाप कहाँ टिकेगा जैसे दीपक जलाते ही अंधकार तत्काल ही विनिष्ट हो जाता है । कार्य(शरीर)- करण (संसार से संबंध) का ज्ञान के प्रकाश से नाश होते ही परमात्मा से स्वत : सिद्ध ज्ञानरूप नौका प्राप्त हो जाती है । नवें अध्याय के २९-३१ वें श्लोकों में भी - अपि चेत् सुदुराचार : भजते माम् अनन्यभाक् । साधु एव स: मन्तव्य : सम्यक् व्यवसित : हि स: ॥३०/अध्याय ९॥ क्योंकि एक बार परमात्मा में अनन्य भाव वाले व्यक्ति को साधु ही मानना चाहिए । Paavan Teerth

Geeta-09

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४: ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ३७ : ज्ञानाग्नि में सभी कर्म भस्म हो जाते हैं: यथ एधांसि समिद्ध: अग्नि : भस्मसात् कुरुते अर्जुन। ज्ञानाग्नि : सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरुते तथा ॥३७॥ हे अर्जुन ! प्रज्ज्वलित अग्नि की लपटों में ईंधन भस्मसात् होता जैसे । सभी कर्म ज्ञान की अग्नि में भस्मसात् होते वैसे ॥३७॥ ज्ञान-विषयक दृष्टान्त का अंतिम चरण : पिछले छत्तीसवें श्लोक मे ज्ञान रूपी नौका से पाप-समुद्र से सहज ही पार हो जाने की बात की। इस पर कोई जिज्ञासु कह सकता है कि फिर भी पाप का महान समुद्र तो ज्यों का त्यों बना ही रहा । इस शंका के निवारणार्थ यहाँ कहा गया है कि कर्म -ईंधन प्रज्ज्वलित ज्ञानाग्नि में पूरी तरह भस्म हो जाता है और साधक को परमात्मा का तत्वदर्शन हो जाता है । PAAVAN TEERTH

Geeta-08

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे -रणक्षेत्रे : अध्याय ४: ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश: श्लोक ४० : ज्ञान प्राप्ति का अयोग्य व्यक्ति: अज्ञ : च अश्रद्धान: च संशयात्मा विनश्यति । नअयम् लोक : अस्ति न पर: न सुखम् संशयात्मन : ॥४०॥ श्रद्धा- विरहित अज्ञानी जन संशय नित करने वाले परमार्थ मार्ग से भ्रष्ट हुए जन को, न इस जग में सुख मिलता फिर परलोक सुखों की कौन कहे। ? ॥४०॥ संदर्भ : पिछलेउन्तालीसवें श्लोक में जो बात जितेन्द्रिय, श्रद्धावान और ज्ञानी के लिए परम शान्ति की बात पूर्णत :सकारात्मक रूप से कही गयी थी उसी को उसके विपरीत आचरण करने वाले अज्ञानी, अश्रद्धावान और साथ ही संशायालु पुरुष के लिये उतनी ही दृढ़ता से उसके इस लोक और परलोक दोनों में ही पूर्ण विनाश कह कर कही गयी है । संत ज्ञानेश्वर ने तो यहाँ तक कह दिया कि: “जिस प्राणी के मन में इस ज्ञान को पाने की अभिलाषा न हो, उसका जीवन धारण करने की अपेक्षा मर जाना ही उचित है । जैसे उजड़ा हुआ घर अथवा प्राण-शून्य देह होता है, वैसे ही ज्ञान-शून्य जीवन भी सिर्फ़ भ्रम से ही भरा होता है ।” ऐसे संशयात्मक व्यक्तियों के लिए किसी ने कहा है: कुछ श्रद्धा, कुछ दुष्टता ,कुछ संशय, कुछ ज्ञान । घर का रहा न घाट का, ज्यों धोबी का श्वान ॥ निष्कर्ष में कह सकते हैं कि संशय को गुरु, तत्वदर्शी अथवा शास्त्र के परिशीलन से श्रद्धापूर्वक तुरन्त समूल नष्ट करना आवश्यक है । Paavan Teerth

Geeta-07

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्ष्त्रे-रणक्षेत्रे :अध्याय ४ : ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ३८ : कर्मयोगी को तत्त्वज्ञान की स्वत : प्राप्ति : न हि ज्ञानेन सदृशम् पवित्रम् इह विद्यते । तत् स्वयम् योगसंसिद्ध : कालेन आत्मनि विन्दते ॥३८॥ ज्ञान के जैसा कुछ भी नहीं पवित्र करने वाला इस संसार में उसी को काल कितने से प्राप्त करते योगी आरूढ़ होकर योग में ॥३८॥ समझिए : जब निष्काम कर्मयोगी अपने कर्मों का प्रवाह निज से हटा कर संसार की और प्रवाहित कर देता है अर्थात मेरे लिए कुछ भी नहीं हे भगवन् तुम्हारी वस्तुयें तुमको ही संपूर्ण भाव से समर्पित: त्वदीय वस्तु गोविन्दम तुभ्यमेव समर्पयेत।जब साधक का संबंध जड़ से सर्वथा छूट जाता है तब वह “तत् स्वयं योग संसिद्ध “ तत्वज्ञान को प्राप्त कर लेता है । Paavan Teerth

Geeta-06

श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे :अध्याय ४ : ज्ञानकर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ३९ : पहले जानिए फिर मानिए: श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् तत्पर : संयत्न्द्रिय : । ज्ञानम् लब्ध्वा पराम् शान्तिम् अचिरेण अधिगच्छति ॥३९॥ इन्द्रियाँ संयत हेों जिसकी योग तत्पर जो सदा श्रद्धावान साधक वह ऐसा ।— प्राप्त होता ज्ञान को ज्ञान को कर प्राप्त निज में परमशांति पा लेता तुरत ॥३९॥ पराम् शान्ति की प्राप्ति का मार्ग: श्लोक में तत्व ज्ञान की प्राप्ति और पराम् शांति प्राप्त (लब्ध्वा) के लिए तीन बातों की आवश्यकता बताई है । १.शरीर के स्तर पर : इन्द्रिय संयम मे तत्परता । २.मन के स्तर पर : परमात्मा को पूर्ण समर्पण । ३.विवेक के स्तर पर :श्रद्धा । इसी को इसी अध्याय के चौंतीसवें श्लोक के गुरु के पास ज्ञान प्राप्त करने के संदर्भ में देखिए जहाँ कहा है कि “उपदेश्यन्ति ते ज्ञानम्” अर्थात गुरु उपदेश करेगा लेकिन यह निश्चय नहीं कि ज्ञान प्राप्त हो ही जाएगा । लेकिन यहाँ “लब्ध्वा” कह कर पूर्ण निश्चय है कि ज्ञान प्राप्त होकर परम शान्ति को पाएगा ।

Ghazal-10

ग़ज़ल- ज़िन्दगी की जुस्तज़ू में, आ गई जाने किधर ? पत्थरों के जंगलों में, आदमी ढूँढे, नज़र। लूटने और लुटने वाले, में रहा है फ़र्क क्या ? आज जो दिखता इधर है, कल वो दिखता था उधर। जल चुकेगी घास तब तो, आग भी बुझ जाएगी, आग को भी चाहिए है, घास, अपनी उम्रभर। मरने, जीने से किसी के कब रुकी है ज़िन्दगी ? वो सितारे कह रहे हैं आसमां से टूटकर। एक प्रस्तर क़ायदे का लिख न पाएं, आज जो, डिग्रियाँ लेकर युवा वो, फिर रहे हैं, दरबदर। वो कोई भी काम ढँग से मित्र कर सकता नहीं जो भरोसा ही नहीं, करता हैं अपने आप पर। वोट उसने दे दिया था बंद रख के आँख-कान, रहबरों की रहबरी में, खो गई है रहगुज़र। MAAHIR जुस्तजू=खोज, चाह, प्रस्तर= पैराग्राफ़, रहबर-नेता, रहगुजर= राह

Ghazal -09

ग़ज़ल- कभी देखा नहीं दिन-रात के उसको उजालों में बसा इक उम्र से है एक जो चेहरा ख़यालों में। भलाई जो किसी में है,उजागर कर रहे बेशक़, दिखा करते हैं खुल के ऐब भी लेकिन,उजालों में। उजागर करना=स्पष्ट करना,ऐब=कमियां,दोष किया करते थे जो बातें ग़रीबी को हटाने की, ग़रीबी हट गई उनकी,वो लेकिन हैं सवालों में। कभी सच बोलना हो तो नज़र पैनी ज़रा रखना, लगे हैं घात में अब भेड़िए,भेड़ों की खालों में। अगर जनता की सेवा का कभी मौका मिला उनको, नज़ाकत देख लेना झूमती फिर उनकी चालों में। हक़ीक़त देखनी है तो ज़रा ए सी से निकलो जी, मिलेगी आमजनता के वो कुछ उलझे सवालों में। हकीकत=सच्चाई अमीरी बढ़ रही उनकी,सभी की कीमतों पर अब, हुआ है बंद धन तो कार्पोरेट दुनिया के तालों में! 'Maahir'(collection)

GHAZAL-8

ग़ज़ल - मस्लेहत जब भी सर उठाती है, ज़िन्दगी मेरी कसमसाती है। मस्लहत=सांसारिक धूर्तता, सीखते पुस्तकों से हम बेशक़, पर अधिक ज़िन्दगी सिखाती है। जब कोई रास्ता नहीं दिखता, तीरगी से चमक सी आती है। लौट के फिर ज़मीं पे आना है, याद ठोकर हमें दिलाती है आस्तिक-नास्तिक कोई भी हो, ज़िन्दगी सब को आज़माती है। आज़माने से ज़िन्दगी यारो, रंंग अक्सर नए दिखाती है। बात जम्हूरियत की करते हैं, आपकी टिप्पणी तो ज़ाती है। जम्हूरियत=प्रजातंत्र, ज़ाती= निजी जोश के साथ जो नहीं होती, नेक कोशिश वो हार जाती है। कुछ कदम साथ थे जहाँ हम-तुम, वो जगह याद कुछ दिलाती है। अंश कुछ ब्रह्म का भी है मुझ में, मेरी आवारगी जताती है। आज तक यह समझ नहीं पाये, याद जाती कहाँ, जो आती है। दिल लगी दिल्लगी नहीं 'maahir', इक हँसी सारे ग़म भुलाती है। Maahir

FROM THE DESK OF A NATUROPATH-

गले में बार-बार कफ जमने का क्या कारण हो सकता है, इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है ? इसका सबसे आम कारण (commonest reason)अलर्जी (allergy)है, जिसे ज्यादातर "वाइरल" कह कर जाना जाता है। यदि बुखार नहीं है तो 90%लोगों में अलर्जी ही इसका कारण होती है। क्योंकि यह हर साल लगभग दो बार होती है और बहुत लोग प्रभावित होते हैं इसलिए अक्सर इसके लिए "वायरल हो गया है", "वायरल चल रहा है", "वायरल हो गया था" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। यदि यह वायरस के कारण होगा तो साथ में हाथ पैरों में दर्द, सिर/सिर व जोड़/शरीर व कमर/ में भी काफ़ी दर्द महसूस हो सकता है। आम तौर से वायरल की शुरूआत ही बुखार व दर्द से होती हैऔर इसमें सिर्फ़ पेरासिटेमोल लेने से दर्द व बुखार में आराम मिलता है। पर जब तक वायरस की संख्या पर शरीर काबू नहीं पा लेता बुखार पेरासिटामोल के असर खत्म होने पर बार-2 आता रहता है। वाइरल बुखार में हमें ऐसा लगता है कि तबियत ठीक नहीं है और हम बीमार हैं।इसमें खांसी मुख्य लक्षण ज़्यादातर नहीं होता है। पर वाइरल के साथ यदि खांसी भी मुख्य लक्षण है तो वायरल के साथ-2 अलर्जी भी होने की संभावना होती है। बुखार, सिर्फ़ अलर्जी में भी आता है जब हम इसका शुरूआती मात्र ख़राश या सूखी खांसी की स्टेज में इलाज शुरू नहीं करते हैं। पर अधिकतर केसेज़ में, अलर्जी की शुरूआत खांसी, ख़राश, गले में सूखापन, गले में छिलन या खुजली से ही शुरू होती है। यदि इसी समय एंटिअलर्जिक इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है। जिस भी चीज़ से हमें अलर्जी हो उसे अलर्जन(Allergen) कहते हैं। इनको पता करने के लिए चमड़ी में विभिन्न अलर्जन्स को प्रवेश करा कर पैच टैस्ट किया जाता है। सीधे खून-सैंपल से भी यह पता लगाया जा सकता है। पर आमतौर से व्यवहारिक जीवन में इसकी उपयोगिता कम ही होती है।ऐसा इसलिए, कि जो अलर्जन हवा में होते हैं, भले ही वे टैस्ट से पता किए जा सकते हैं; पर जिस हवा को, हम चौबीसों घंटे सांस से श्वसन तंत्र से हमारे शरीर में ले रहे हैं, उसे अलर्जन से मुक्त करना लगभग असंभव/अव्यवहारिक ही होता है। हमारे द्वारा जाने कितने स्थानों में आने-जाने से सभी जगहों की हवा से अलर्जन को हटाना संभव ही नहीं है। ऐसा सिर्फ़ तभी संभव होता है जब वह अलर्जन किसी सीमित स्थान की हवा के अलावा हर जगह बिमारी पैदा करने लायक मात्रा में उपलब्ध न हो। ये व्यवसायिक गतिविधियों से उत्पन्न अलर्जंस के केस में संभव है। मरीज को उस वातावरण से दूर करने से समस्या सुलझ सकती है। यही बात स्थान परिवर्तन से अलर्जी का समाधान होने का आधार है। ऐसे मरीज़ हैं जिन्हे राजस्थान में अलर्जी की परेशानी होती है पर मुम्बई में नहीं क्योंकि वहॉ की हवा में उनको तकलीफ़ पहुँचाने वाला अलर्जन नहीं है। यदि किसी खाने की चीज़ या विशिष्ट क्रिया से अलर्जन से संपर्क होना कारण है तब भी उससे बचने की संभावना होती है।पर हवा को कौन साफ़ कर सकता है और फिर हमारे द्वारा वायु प्रदूषण भी तो है! अक्सर साल के शुरू में फरवरी से अप्रैल व अगस्त से दिवाली तक वायु में वनस्पतियों से उत्पन्न पराग कणों व विभिन्न कीट-पतंगों की भरमार होती है। इसीलिए बहुत लोगों को इन्हीं मौसमी समयों में हर साल खॉसी ज़ुकाम हो जाता है। पर साल भर तक या इन समयों के अलावा भी लोगों को अलर्जी हो सकती है। अलर्जी एक व्यक्ति के शरीर की अति संवेदनशीलता को कहते हैं। जिन चीज़ों से किसी को अलर्जी होती है अधिकांश जनता को उससे कोई तकलीफ़ नहीं होती, बावजूद इसके कि वह अलर्जन उनके भी संपर्क में आता ही है; क्योंकि जो हवा मरीज को उपलब्ध है वही दूसरों को भी उपलब्ध है। अलर्जन से मरीज़ को डिसेन्ज़िटाइज़ करना भी एक समाधान है पर अक्सर ये असफल हो जाता है। सेनज़िटिविटी टैस्टस् व डीसेन्ज़िटिविटी की प्रक्रियाएः महंगी पर उतनी लाभकारी नहीं होतीं। हॉ कुछ सौभाग्यशाली में सफल भी हो सकती हैं। अलर्जन, नाक-गला,नाक के पास दोनों तरफ़ की खोखली हड्डियों (Nasal Sinuses), स्वर यंत्र(Larynx), मुख्य श्वसन नलिका(Trachea), छोटी-बड़ी श्वसन-नलियों(Bronchial tree),आँखों व कानों में हवा के ज़रिये, जैसे चमड़ी के संपर्क में आते हैं, वैसे ही इनके संपर्क में भी आते हैं। यहाँ पहुँचकर ये इन अंगों की अंदरूनी श्लेषमा झिल्ली(Mucous Membrane) पर, उस ही झिल्ली में उपस्थित सूक्ष्म(Microscopic) श्लेष्मा-ग्रंथियों(Mucus Glands) से उत्पन्न श्लेष्मा(म्यूकस/Mucus/एक सफ़ेद पदार्थ जो बहते मोम से गाढ़े गोंद जैसा चिपकने वाला होता है)से चिपकने के द्वारा रोक लिये जाते हैं। जहाँ-2 ये काफ़ी मात्रा में जमा हो जाते हैं वहाँ इनसे प्रतिरोधात्मक तंत्र(Immune System)के द्वारा प्रतिक्रया के कारण सूजन हो जाती है और हमें लक्षण महसूस होने लगते हैं।इस प्रतिक्रिया मैं हिसटेमीन नाम का रसायन भी उत्पन्न होता है, जो लक्षणों को बढ़ाता है।यदि इसी स्तर पर एंटिहिसटेनिमिक दवा ले ली जाए तो लक्षण कंट्रोल हो जाते हैं। दवा तबतक लेनी होती है जब तक अलर्जन तकलीफ़ दे रहा है। यदि दवा बंद करने से तकलीफ़ वापस लौटने लगे तो इसका मतलब है कि अलर्जन अभी भी हानिकारक मात्रा में हवा में उपलब्ध है। जब एंटिहिसटैमिनिक दवा के बग़ैर भी कोई लक्षण नहीं महसूस हो; तब समझना चाहिए कि अब अलर्जन हमारे संपर्क में नहीं है या हानिकारक मात्रा से कम है। पर यदि अलर्जन की हानिकारक मात्रा वापस बढ़ जाए तो लक्षण फिर शुरू हो जाएंगे और दवा फिर लेनी पड़ेगी।यदि पहले दवा से लक्षणों में आराम मिला और बिना दवा हमेशा ही लक्षण रहते हैं तो फिर यह वर्षपर्यंत(Perennial) अलर्जी है। इसके लिए या तो ऐसी जगह निवास करें जहाँ अलर्जन से संपर्क संभव ही न हो या पूरे साल दवा लेनी ही पड़ेगी। अलर्जी के लक्षण ठ्डी हवा की मार,बर्फ़ जैसे ठंडे पदार्थ/पेय खाने-पीने से बढ़ जाते हैं। यदि ऐसी चीज़ों का सेवन बंद नहीं कर सकते तो आईसक्रीम-कप के साथ आनेवाले नन्हें चम्मच में जितना माल आए उतना ही माल एक निवाले में खाना चाहिए।दो निवालों के बीच इतना समय बीतना चाहिए कि पहले निवाले को निगलते समय जो नाक,मुँह व गले का तापक्रम बर्फ़ के समान हो गया था, वह नॉरमल हो जाए। ठंडे पेय पीने के समय थोड़ी-2 मात्रा, एक-2 घूंट में, रूक-2 कर लेना चाहिए; ताकि गले का तापक्रम बर्फ़ जैसा ठंडा न हो जाए। वातानुकूलित वातावरण से बाहर आते समय श्वास लेने के अंगों को तापक्रम के भारी अंतर का झटका नहीं महसूस हो इसलिए या तो गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर थोड़ा ठहरकर उतरना चाहिए या जहाँ उतरना हो उससे पहले ही एसी बंद कर देना चाहिए।दुपहिया वाहन उपयोग करते समय गला, चेहरा व नाक को ठंडी हवा की मार से सुरक्षित रखना चाहिए। यदि ठंड से संवेदनशीलता ज़्यादा हो तो मुँह में लोंग चूसते रहने से राहत रहेगी। ए.सी.या कूलर की हवा सीधी अपने ही ऊपर न आये इस तरह हवा की दिशा के लिए फ़िन्स का उपयुक्त उपयोग करना चाहिए। फ़्रिज के पानी को ऊपर से उंडेलकर सीधा गले में डाल कर नहीं गटकना चाहिए।अत्यधिक ठंड से सामना हो तो पैरों को ठंडे होने से बचाने के लिए गर्म मौज़े के साथ पैर को अधिक से अधिक ढ़के ऐसे जूते बेहतर रहते हैं। ये लक्षण सभी लोगों में उतनी ही तीव्रता के नहीं होते । कई लोगों को खॉसी की चूसनेवाली गोलियां ,हल्दी का दूध लेने से ही आराम मिल जाता है।एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच नमक घोल कर गरारे (gargles) करने से गले में अच्छा महसूस होता है। जो पहले से ही, अलर्जी होने की संभावना को अनुभव से जानते हैं; उन्हें ऐसा होने से पहले ही बचाव में दवा व दूसरी सावधानियों का ध्यान रखना समझदारी होगी। पालतू जानवर भी अलर्जी का कारण हो सकते हैं। उन पर भी इस दृष्टि से सोचना ठीक बात है।इन सब बातों के अलावा डाक्टरी सलाह तो है ही। एंटिअलर्जिक दवाएं एविल,सिट्राजीन,ऐलेग्रा आदि काफ़ी काम में ली जाती हैं

Ghazal-7

ग़ज़ल- भले पैरों तले साहिल नहीं है, करें कोशिश तो क्या हासिल नहीं है। भुलाते जा रहे चटनी की लज़्ज़त, रसोईघर में जब से सिल नहीं है। उसी को ढूँढ़ते हैं हम सभी में, जो अब तक हो सका हासिल नहीं है। वो कहते क्या करोगे वेद पढ़ कर, अक़ीदा उनका जो कामिल नहीं है। गरजते मेघ हैं,काली घटा है, गो चुप है आमजन,ग़ाफ़िल नहीं है। ख़ुशी के वास्ते दुनिया बनी है, दुखी रहने का कुछ हासिल नहीं है। जो अंदर है वही दिखता है बाहर, नया कुछ और तो शामिल नहीं है। कमी हर शख़्स में तुमको मिलेगी, कहीं भी, कोई भी,कामिल नहीं है। किसी गफ़लत में ‘’ तुम न रहना, कहाँ तूफाँ ? कहाँ साहिल नहीं है ? Maahir(collection by)

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