Article Published by :
PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल-
भला इंसांनियत का चाहती हो,
ज़ुबां पे आज बस वो शायरी हो।
सुने जो भी, लगे उसको कि जैसे,
ग़ज़ल में बात उसकी ही कही हो।
ख़ुदा से बस मेरी ये इल्तिज़ा है,
न मुश्किल में किसी की ज़िन्दगी हो।
मेरी कोशिश यही है दोस्तो बस,
हर इक की ज़िन्दगी में रोशनी हो।
हुआ है इश्क़ जब से, बस ये चाहा,
तेरी ख़ुशियों से ही मुझको ख़ुशी हो।
सियासत देख के कहता है दिल ये,
ग़ज़ल अब जो लिखूँ वो आग - सी हो।
सुनेगा ग़ौर से तुमको ज़माना,
तुम्हारी बात में कुछ बात भी हो।
'MAAHIR'
This entry was posted on October 4, 2009 at 12:14 pm, and is filed under
. Follow any responses to this post through
RSS. You can
leave a response, or trackback from your own site.
Post a Comment