श्रीमद्भगवद्गीता  :

कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४ :
 ज्ञानकर्मसंन्यास योग  :
क्रमश :  श्लोक १५  :

कर्मयोग के माध्यम से मोक्ष :

एवम् ज्ञात्वा कृतम् कर्म
पूर्वै : अपि  मुमुक्षुभि : ।
कुरु कर्म एव तस्मात् त्वम्
पूर्वै : पूर्वतरम्। कृतम्  ॥१५॥

इस प्रकार ही जानकर पूर्व में भी 
कर्मों को किया मुमुक्षुओं ने भी ।
तू भी पूर्वजों का अनुकरण  कर
निष्काम होकर  कर्म  कर ॥१५॥

निष्कर्ष  :

पूर्व श्लोक चौदह मे कहे अनुसार 
कर्मों में आसक्ति और फलाशा की सभी कामनाओं को त्याग कर कर्म करते रहना ही कर्मयोग है ।
PAAVAN