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PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता :
कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ४ :
ज्ञानकर्मसंन्यास योग :
क्रमश : श्लोक १५ :
कर्मयोग के माध्यम से मोक्ष :
एवम् ज्ञात्वा कृतम् कर्म
पूर्वै : अपि मुमुक्षुभि : ।
कुरु कर्म एव तस्मात् त्वम्
पूर्वै : पूर्वतरम्। कृतम् ॥१५॥
इस प्रकार ही जानकर पूर्व में भी
कर्मों को किया मुमुक्षुओं ने भी ।
तू भी पूर्वजों का अनुकरण कर
निष्काम होकर कर्म कर ॥१५॥
निष्कर्ष :
पूर्व श्लोक चौदह मे कहे अनुसार
कर्मों में आसक्ति और फलाशा की सभी कामनाओं को त्याग कर कर्म करते रहना ही कर्मयोग है ।
PAAVAN
This entry was posted on October 4, 2009 at 12:14 pm, and is filed under
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