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PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता :
कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ३ :
क र्म यो ग :
क्रमश : श्लोक ४१ :
तस्मात् त्वम् इन्द्रियाणि
आदौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानम् प्रजहि हि एनम्
ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥४१॥
इसलिए सुनो हे भरतश्रेष्ठ !
सर्वप्रथम तू कर नियमन
इन्द्रियों का ।
इस ज्ञान और विज्ञान- नाशक
महापापी काम को बलपूर्वक तू
मार दे ॥४१॥
काम को नष्ट करने की सीढ़ी का पहला चरण:
पिछले श्लोक (श्लोक सं०४०) में कहा कि इन्द्रियाँ , मन और बुद्धि इसके स्थान हैं । इसलिए सबसे पहले स्थान इन्द्रियों का नियमन कर उसे मन और बुद्धि की ओर बढ़ने और अपना डेरा जमाने का अवसर ही न दिया जाए ।
PAAVAN
This entry was posted on October 4, 2009 at 12:14 pm, and is filed under
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