एक ग़ज़ल- 


भुला के हक़ीक़त जो सोता रहेगा,
वो अश्क़ों से दामन भिगोता रहेगा।

लुटा तू, मरा तू, मगर कह रहे वो,
तमाशा हुआ है, ये होता रहेगा।

उसे फ़स्ल वो काटनी ही पड़ेगी,
जिसे ज़िन्दगानी में बोता रहेगा।

ग़रीबों को ज़ालिम सताते रहे हैं, 
न जागे वो, तब तो यह, होता रहेगा। 

किनारे-किनारे ही तैरा जो, उसको,
डुबोता है दरिया, डुबोता रहेगा।
 
तरक्की वही कर सका है जो इंसां, 
इरादों में ख़्वाबों को बोता रहेगा। 

 अदीबो क़लम सच की ख़ातिर उठाओ,
नहीं तो ग़लत है जो, होता रहेगा।

अदीब= साहित्यकार

MAAHIR