अभी तक जी रहे मुझमें कई संसार माज़ी के,
रुला देते हैं कुछ तो आज तक किरदार माज़ी केl
माज़ी = भूतकाल, विगत के, किरदार=चरित्र
पहुँच जाते हैं अक्सर हम उन्हीं गुजरे ज़मानों में
जुड़े हैं रूह से अब तक कई वो तार माज़ी केl
महज माज़ी नहीं है ज़िन्दगी में, आज कल भी हैं,
निकलना तो तुम्हें होगा कभी तो पार माज़ी केl
यही फ़ितरत है उनकी, वो तुम्हारी राह रोकेंगे,
वहीं भूलो उन्हें क़स्दन, मिलें जब ख़ार माज़ी केl
फ़ितरत=प्रकृति, ख़ार=कांटे
बहुत ही मुख़्तसर है ज़िन्दगी मिलती न ये फिर से,
भुला के हम चले आए सभी आज़ार माज़ी केl
मैं जैसा भी हूँ इसमें भूमिका कुछ आपकी भी है,
उतर सकते कहाँ सब आपके उपकार माज़ी केl
बहुत जाना, बहुत सीखा, उन्हीं से यश मिला मुझको,
बहुत मशकूर हूँ उनका, जो मेरे यार माज़ी केl
मशकूर=शुक्रगुजार
बदलती है, हर इक शय वक़्त के सँग, लोग कहते हैं,
कहाँ बदले हैं आज तक किरदार माज़ी के।
MAAHIR
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