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PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
तन्हाई ने मेरी रूह को घेरा है,
ख़ामोश है रात उदासी का डेरा है। १
इसरार की ज़ुल्मतों को मैं क्या जानूँ,
रब ने लिखा ज़िंदगी में ग़म तेरा है। २
होती है सहर से शाम पर रातों की,
क़िस्मत का न होता फिर कभी फेरा है। ३
हर एक क़दम पे तू बगूलों को तोड़,
मंज़िल का सही ये रास्ता तेरा है। ४
ग़म को मेरे तुम कभी नहीं बहलाओ,
रहने दो बचा खुचा जो भी मेरा है। ५
"माशूक़" बड़े सुकून की हैं साँसें,
रिश्तों में मुझे तुम्ही ने अब झेरा है। ६
इसरार=ज़िद करना, हठ, ज़िद
ज़ुल्मतों=darkness, region of darkness, dark place
बगूलों=धूल भरी आँधी, बवंडर
झेरा=झंझट, बखेड़ा, झेर
'MAAHIR'
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